अमरमणि: होगी राजनीति में पुनर्वापसी!

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अमरमणि: होगी राजनीति में पुनर्वापसी!

अनिल दीक्षित 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है व दैनिक जागरण से जुड़े रहे है )

 

 

 

उत्तर प्रदेश में कभी ब्राह्मण राजनीति का बड़ा चेहरा #अमरमणित्रिपाठी अब जेल से बाहर हैं। वो जमाना था अमरमणि का, दबंगई का बड़ा नाम। और काम करने की शैली दबंगई से भरी हुई, तेजतर्रार और चतुर। जो ठान लिया, वो करना है।

 

बात उन दिनों की है जब अमरमणि उत्तर प्रदेश सरकार में वित्त राज्यमंत्री थे। व्यापार कर विभाग (अब जीएसटी) उनके अधीन था। मैं दैनिक जागरण का टैक्सेशन रिपोर्टर था। एक सुबह व्यापार कर के एडिशनल कमिश्नर का फोन आया। जागरण तब आगरा की पत्रकारिता का नक्षत्र था। वो चाहते थे कि क्षेत्र के सियासी दबंग के गोदाम पर व्यापार कर छापे की मैं रिपोर्टिंग करूं। मेरा तो काम ही ये था। लेकिन, बात कुछ और ही थी। उन्हें लगता था कि अन्य अखबार साथ नहीं देंगे। मेरे लिए ये एक अवसर था। मैंने शर्त रखी कि आप किसी को यह खबर नहीं देंगे। यह खबर जागरण में एक्सक्लूसिव छपेगी।

 

अनिल दीक्षित

 और, ऐसा ही हुआ। बड़ी मात्रा में पुलिस पर लेकर गोदाम पर छापा मारा गया। कामयाबी मिली, कर चोरी करके लाया गया लाखों का माल बरामद किया गया। उस वर्ष का ये सबसे बड़ा छापा था क्योंकि छापे के सियासी मायने भी थे, खासा चर्चित भी था। लेकिन अंदर के समीकरणों से मैं अनजान तो नहीं, बेपरवाह जरूर था। सब योजनाबद्ध था। एक हस्ती दूसरी राजनीतिक हस्ती को निपटाने की तैयारी में थी। हालांकि बेपरवाही मुझे भारी भी पड़ सकती थी। लेकिन जुनून में सब हवा, कोई चिंता नहीं। धमाके से खबर छपी, पहले पेज की लीड। खबर के बाद लगातार तीन दिन तक पहले पेज पर फॉलोअप। पहले दिन अंदर फुल पेज कवरेज।

 

एक दिन काम निपटाने के बाद रात के करीब 11 बजे होंगे। लखनऊ से फोन आया। सामने से भारी भरकम दबंग आवाज, ‘जीने से मन भर गया क्या? खबरों का यह सिलसिला अब बंद हो जाना चाहिए।’ सिलसिला बंद ही हो गया था, अगर वह फोन न आया होता। सूत्र टटोले गए और फिर एक खबर लिखी गई। लेकिन खबर पूरी होने से पहले ही दोबारा फोन आ गया। बोले, ‘बेटा अब तो मन भर गया होगा खबर लिखकर। बंद कर दो। मैंने गुस्से में बोल दिया था, उसे भूल जाओ। फैक्स से अपना पक्ष भेज रहा हूं, उसे भी छाप देना।’ खबर छपी। वर्जन भी छपा और प्रकरण खत्म हो गया।

 

लेकिन बात अमरमणि को मालूम थी। कोई दो दिन बीते होंगे कि अचानक शाम को घर के फोन की घंटी बजी, उधर एक डिप्टी कमिश्नर थे। मुझे बताया कि मंत्री अमरमणि ने सैंया चेक पोस्ट पर छापा मारा है, और आपसे मिलना चाहते हैं। ऑफिस जाने का वक्त था, मैंने ये कहते हुए असमर्थता जताई, कि सैंया कौन जाएगा इस समय? बात मंत्री जी को बताई गई। मंत्री जी खुद फोन पर आ गए। विभाग और सियासत पर फोन से ही एक्सक्लूसिव इंटरव्यू हुआ। बातों का क्रम अमरमणि के इस वाक्य से पूरा हुआ, किसी तरह की चिंता मत करना, कोई भी समस्या हो तो बता देना, खबर मुझ तक तुरंत पहुंच जाएगी।

 

खैर, न मुझे कभी उनसे काम पड़ा, और न कभी मेरा काम पड़ना भी था। कुछ समय बाद मधुमिता की हत्या हुई, फिर अमरमणि जेल चले गए। अमरमणि की रिहाई की सूचना पर उन दिनों का यह रोमांचक घटनाक्रम मेरी आंखों के सामने घूम रहा है। यदि उस समय के तेवरों को याद करूं तो निश्चित मानता हूं कि अमरमणि की राजनीति में पुनर्वापसी होगी। दमखम के अमरमणि इतने कमजोर तो निश्चित ही नहीं हुए होंगे।

 

 

 

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