21 या 22 अक्टूबर? गोवर्धन पूजा का सही मुहूर्त और कृष्ण की अद्भुत लीला

Sun, 21 Sep 2025 02:30 PM IST, आगरा, भारत।

गोवर्धन पूजा 2025: पांच दिन के दीपावली महापर्व में गोवर्धन महाराज की पूजा-अर्चना करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दीपावली उत्सव का एक बेहद अहम हिस्सा है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन करने का विधान है। हालांकि, इस साल गोवर्धन पूजन की तारीख को लेकर कई लोगों में असमंजस बना हुआ है कि गोवर्धन पूजा 21 या 22 अक्टूबर को है। यह पर्व सीधे भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर गोकुल के सभी लोगों और पशुओं की रक्षा इंद्र देव के प्रकोप से की थी। आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और इसकी विस्तृत पूजा विधि।

गोवर्धन पूजा के अवसर पर गाय के गोबर से बनी गोवर्धन महाराज की आकृति, जिसे फूल और रोली से सजाया गया है और दीप जलाकर परिक्रमा की जा रही है।
गोवर्धन पूजा के अवसर पर गाय के गोबर से बनी गोवर्धन महाराज की आकृति

गोवर्धन पूजा 2025 की सही तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। इस तिथि को लेकर ही असमंजस की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि प्रतिपदा तिथि दो दिन तक व्याप्त हो रही है।

विवरणसमय और तिथि
प्रतिपदा तिथि का आरंभ21 अक्टूबर 2025, मंगलवार को शाम 5:54 मिनट पर
प्रतिपदा तिथि का समापन22 अक्टूबर 2025, बुधवार को रात 8:16 मिनट पर

चूंकि उदया तिथि (जिस तिथि में सूर्योदय होता है) को धार्मिक कार्यों के लिए अधिक महत्व दिया जाता है, और गोवर्धन पूजा पारंपरिक रूप से दोपहर के समय या प्रदोष काल में भी की जाती है, इसलिए ज्यादातर पंचांगों और धार्मिक जानकारों के अनुसार, गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से 22 अक्टूबर 2025, बुधवार को करना अत्यंत शुभ माना जाएगा।

गोवर्धन पूजा 2025 के शुभ मुहूर्त

पूजा की अवधि और स्थानीय परंपराओं को देखते हुए 22 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा के लिए दो प्रमुख शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं:

  1. पहला शुभ मुहूर्त (प्रातः काल):
    • समय: सुबह 6:26 मिनट से लेकर 8 बजकर 42 मिनट तक
    • अवधि: लगभग 2 घंटे 16 मिनट
  2. दूसरा शुभ मुहूर्त (अपराह्न/प्रदोष काल):
    • समय: दोपहर 2:39 मिनट से शुरू होकर शाम 5 बजकर 44 मिनट तक
    • अवधि: लगभग 3 घंटे 5 मिनट

श्रद्धालु अपनी सुविधा और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इन दोनों में से किसी भी मुहूर्त में गोवर्धन महाराज और गाय की पूजा कर सकते हैं।

गोवर्धन पूजा का पौराणिक महत्व: अन्नकूट और द्वापर युग की कथा

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है। इसका महत्व द्वापर युग की एक महत्वपूर्ण लोककथा से जुड़ा है:

  • इंद्र देव का प्रकोप: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में ब्रजवासियों ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर इंद्र देव की पूजा बंद कर दी थी। इससे कुपित होकर इंद्र देव ने गोकुल और ब्रजमंडल में भयंकर वर्षा शुरू कर दी, जिससे भारी तबाही मचने लगी।
  • गोवर्धन लीला: भगवान श्रीकृष्ण ने तब ब्रजवासियों और उनके पशुओं की रक्षा के लिए अपनी कनिष्ठिका (छोटी) उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। सभी ब्रजवासी और पशु सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत के नीचे आश्रय लेकर इंद्र के प्रकोप से बचे रहे।
  • पर्व की शुरुआत: सातवें दिन इंद्र का अहंकार टूटा और उन्होंने अपनी गलती स्वीकार की। तभी से भगवान श्रीकृष्ण की लीला को याद करते हुए गोवर्धन पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूजा की शुरुआत ब्रज में हुई थी और धीरे-धीरे यह पूरे भारत में प्रचलित हो गई।
  • अन्नकूट भोग: इस दिन ब्रजवासी इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करते हैं, और श्रीकृष्ण को छप्पन भोग या अन्नकूट का भोग तैयार कर समर्पित करते हैं। अन्नकूट में विभिन्न प्रकार की सब्जियां, दालें और मिठाई शामिल होती हैं, जो प्रकृति की प्रचुरता को दर्शाती हैं।

यह पर्व प्रकृति, गौ माता और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है।

गोवर्धन पूजा की विस्तृत विधि

गोवर्धन पूजा की प्रक्रिया बेहद पारंपरिक और भक्तिपूर्ण होती है, जिसमें गाय के गोबर का विशेष महत्व होता है।

  1. आकृति निर्माण: सबसे पहले, पूजा स्थल (आंगन, घर के बाहर का साफ स्थान) पर गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति बनाई जाती है। इसमें पर्वत का आकार दिया जाता है, और अक्सर मानव व पशु आकृतियाँ भी बनाई जाती हैं।
  2. अलंकरण: गोवर्धन महाराज की इस गोबर की आकृति को फूलों, दूब घास, रोली (कुमकुम) और चावल (अक्षत) से सजाया जाता है। कई स्थानों पर गाय के गोबर से बनी मानव आकृतियों को कपड़े और आभूषणों से भी सजाया जाता है।
  3. पूजा सामग्री: पूजा के लिए महाराज के पास दीपक जलाया जाता है। इसके अलावा, पूजा में फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य (मिठाई, दही, दूध), और विशेष रूप से तैयार अन्नकूट का भोग रखा जाता है।
  4. परिक्रमा और लोक गीत: पूजा संपन्न होने के बाद, गोवर्धन महाराज की आकृति की परिक्रमा की जाती है। इस दौरान महिलाएं और श्रद्धालु भक्तिभाव से लोक गीत भी गाती हैं, जो भगवान कृष्ण की लीलाओं का गुणगान करते हैं।
  5. आरती और वितरण: अंत में, गोवर्धन महाराज की आरती की जाती है और उसके बाद अन्नकूट का प्रसाद सभी भक्तों और परिवारजनों में वितरित किया जाता है।

गोवर्धन पूजा के दिन विशेष रूप से गाय की पूजा करने का भी विधान है, क्योंकि हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और वह कृषि तथा जीवनयापन का आधार है। उनकी पूजा कर उनका आभार व्यक्त किया जाता है।

यह पर्व हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में प्रकृति (पर्वत), पशुधन (गाय) और अन्न का सम्मान करना चाहिए।

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संपादन: ठाकुर पवन सिंह | pawansingh@tajnews.in

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