China’s Water Bomb on Brahmaputra: 168 अरब डॉलर का ड्रैगन प्रोजेक्ट बढ़ाएगा भारत की धड़कनें; पूर्वोत्तर पर मंडराया ‘जल-प्रलय’ का खतरा, जानें क्या है भारत का ‘मास्टर प्लान’

Thursday, 18 December 2025, 08:30:00 PM. New Delhi/Agra

नई दिल्ली/आगरा। सीमा पर चल रही तनातनी के बीच चीन (China) ने भारत के खिलाफ एक और मोर्चा खोल दिया है। यह मोर्चा बंदूकों या मिसाइलों का नहीं, बल्कि ‘पानी’ का है। चीन तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (Yarlung Tsangpo) नदी पर, जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra) के नाम से जाना जाता है, दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो-पावर प्रोजेक्ट बनाने जा रहा है।

करीब 168 अरब डॉलर (लगभग 14 लाख करोड़ रुपये) की लागत वाली इस परियोजना को रक्षा विशेषज्ञ और पर्यावरणविद भारत के लिए एक ‘Water Bomb’ (जल बम) मान रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू इसे पहले ही “टिकिंग टाइम बम” करार दे चुके हैं। आशंका है कि चीन इस बांध के जरिए पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, खासकर अरुणाचल प्रदेश और असम में तबाही मच सकती है।

China water dam on brambputr river

इस विस्तृत रिपोर्ट में हम जानेंगे कि चीन का यह प्रोजेक्ट आखिर है क्या? इससे भारत को क्या खतरे हैं? और इस ‘जल-युद्ध’ (Water War) से निपटने के लिए भारत सरकार की क्या तैयारी है?


क्या है चीन का ‘महासंकट’ वाला प्रोजेक्ट? (What is China’s Mega Dam Project?)

चीन अपनी महत्वाकांक्षी 14वीं पंचवर्षीय योजना के तहत तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) में यारलुंग त्सांगपो नदी के निचले हिस्से पर एक विशाल बांध का निर्माण कर रहा है।

  1. लोकेशन (Location): यह परियोजना ‘ग्रेट बेंड’ (Great Bend) के पास स्थित है, जहां नदी भारत में प्रवेश करने से पहले एक गहरा यू-टर्न (U-Turn) लेती है। यहाँ नदी की ऊंचाई में करीब 2,000 मीटर का अंतर आता है, जो बिजली उत्पादन के लिए आदर्श है।
  2. क्षमता (Capacity): रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट की क्षमता 60 गीगावाट (60,000 मेगावाट) तक हो सकती है। यह चीन के ही ‘थ्री गॉर्जेस डैम’ (Three Gorges Dam) से तीन गुना अधिक शक्तिशाली होगा, जो अभी दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो-पावर स्टेशन है।
  3. ढांचा (Structure): सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, इसमें केवल एक बांध नहीं, बल्कि कई सुरंगें, जलाशय और भूमिगत बिजलीघर शामिल होंगे। चीन का लक्ष्य 2060 तक ‘कार्बन न्यूट्रलिटी’ हासिल करना है, और यह प्रोजेक्ट उसी का हिस्सा बताया जा रहा है।

भारत के लिए क्यों है यह ‘खतरे की घंटी’? (Why is India Worried?)

भारत की चिंताएं केवल बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं हैं। यह मुद्दा सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा, पर्यावरण और करोड़ों लोगों की आजीविका से जुड़ा है।

1. पानी का हथियार के रूप में इस्तेमाल (Hydro-Hegemony)

सबसे बड़ा डर यह है कि चीन इस बांध के जरिए पानी के बहाव को नियंत्रित कर सकता है।

  • बाढ़ का खतरा (Artificial Floods): युद्ध या तनाव की स्थिति में चीन अचानक भारी मात्रा में पानी छोड़ सकता है, जिससे अरुणाचल और असम में जल-प्रलय आ सकती है।
  • सूखा (Drought): दूसरी ओर, ‘लीन सीजन’ (शुष्क मौसम) में चीन पानी रोक सकता है, जिससे ब्रह्मपुत्र सूख सकती है और भारतीय किसानों को पानी के लिए तरसना पड़ सकता है।

2. भूकंपीय खतरा (Seismic Threat)

हिमालय दुनिया का सबसे युवा और अस्थिर पर्वत है। यह क्षेत्र ‘Zone-5’ यानी उच्चतम भूकंपीय खतरे वाले जोन में आता है।

  • वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि इतना विशाल जलाशय धरती पर भारी दबाव डालेगा। यदि कभी तेज भूकंप आया और बांध टूटा, तो नीचे बसे भारत और बांग्लादेश के इलाकों में जो तबाही होगी, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

3. पारिस्थितिकी और गाद (Ecology and Silt)

ब्रह्मपुत्र नदी अपने साथ उपजाऊ गाद (Silt) लेकर आती है, जो असम के मैदानी इलाकों को खेती योग्य बनाती है। बांध बनने से यह गाद तिब्बत में ही रुक जाएगी।

  • नतीजतन, असम की जमीन की उर्वरता कम होगी, मत्स्य पालन (Fisheries) बर्बाद होगा और नदी का इकोसिस्टम पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।

मेकॉन्ग नदी का डरावना उदाहरण (The Mekong Precedent)

भारत की चिंताएं बेवजह नहीं हैं। चीन ने दक्षिण-पूर्व एशिया में बहने वाली मेकॉन्ग नदी (Mekong River) पर भी 11 बांध बनाए हैं।

  • विशेषज्ञों का आरोप है कि चीन ने अपने फायदे के लिए पानी रोका, जिससे थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया और लाओस में भयंकर सूखा पड़ा।
  • भारत को डर है कि चीन ब्रह्मपुत्र के साथ भी वही ‘मॉडल’ अपनाएगा। ब्रह्मपुत्र भारत के कुल जल संसाधनों का लगभग 30% और कुल जलविद्युत क्षमता का 40% हिस्सा है।

भारत सरकार का एक्शन प्लान: ‘ईंट का जवाब पत्थर से’ (India’s Counter Strategy)

भारत सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है। चीन की इस चाल को नाकाम करने के लिए भारत ने भी अपनी रणनीतिक तैयारियां तेज कर दी हैं।

1. अपर सियांग प्रोजेक्ट (Upper Siang Project)

चीन के मेगा डैम के जवाब में, भारत ने अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग जिले में 11,000 से 12,000 मेगावाट की एक विशाल जलविद्युत परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने का फैसला किया है।

  • उद्देश्य: इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य बिजली बनाना नहीं, बल्कि जल भंडारण (Water Storage) है।
  • रणनीति: अगर भारत के पास अपना विशाल जलाशय होगा, तो चीन द्वारा अचानक पानी छोड़े जाने पर उसे यहाँ रोका जा सकेगा (बाढ़ से बचाव) और पानी रोके जाने पर यहाँ से पानी छोड़ा जा सकेगा (सूखे से बचाव)।

2. ‘फर्स्ट यूजर राइट्स’ (First User Rights)

अंतरराष्ट्रीय जल कानूनों के तहत, जो देश पहले पानी का उपयोग (Use) या भंडारण शुरू कर देता है, उसका उस नदी पर ‘प्राथमिक अधिकार’ (First User Right) बन जाता है। भारत अपनी परियोजना जल्द पूरी करके अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में अपना पक्ष मजबूत करना चाहता है।

3. कूटनीतिक दबाव

विदेश मंत्रालय (MEA) लगातार इस मुद्दे पर नजर बनाए हुए है। विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने संसद में स्पष्ट किया कि सरकार भारत के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। भारत, बांग्लादेश के साथ मिलकर भी चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है, क्योंकि बांग्लादेश इस नदी का अंतिम पड़ाव है और सबसे ज्यादा खतरा उसे ही है।


विशेषज्ञों की राय: पारदर्शिता की कमी सबसे बड़ी समस्या

स्टिमसन सेंटर के विशेषज्ञ ब्रायन आइयलर (Brian Eyler) के अनुसार, “यह अब तक की सबसे जटिल और जोखिम भरी जलविद्युत परियोजना हो सकती है।” समस्या यह है कि चीन और भारत के बीच कोई औपचारिक ‘जल संधि’ (Water Treaty) नहीं है, जैसी भारत और पाकिस्तान के बीच ‘सिंधु जल संधि’ है। चीन केवल बाढ़ के मौसम में हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करता है, वह भी कई बार रोक दिया जाता है (जैसे डोकलाम विवाद के दौरान)। पारदर्शिता की यह कमी अविश्वास की खाई को और गहरा कर रही है।


अस्तित्व की लड़ाई

चीन का यह ‘सुपर डैम’ सिर्फ कंक्रीट का ढांचा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीति (Geopolitics) को बदलने की एक कोशिश है। अगर यह प्रोजेक्ट पूरा होता है, तो ब्रह्मपुत्र का ‘स्विच’ बीजिंग के हाथ में होगा। भारत के लिए अब यह केवल कूटनीति का विषय नहीं रहा, बल्कि पूर्वोत्तर के अस्तित्व और सुरक्षा का सवाल बन गया है। समय की मांग है कि भारत अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को जल्द से जल्द पूरा करे और वैश्विक मंच पर चीन की इस ‘जल दादागिरी’ को उजागर करे।


FAQ: चीन के बांध और भारत पर प्रभाव से जुड़े सवाल

Q1: चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर कौन सा प्रोजेक्ट बना रहा है? Ans: चीन तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी के ‘ग्रेट बेंड’ पर 60 गीगावाट क्षमता वाला दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो-पावर प्रोजेक्ट बना रहा है।

Q2: इस बांध से भारत को क्या खतरा है? Ans: भारत को बाढ़ (पानी छोड़ने पर) और सूखा (पानी रोकने पर) दोनों का खतरा है। इसके अलावा, भूकंपीय खतरा और नदी की पारिस्थितिकी तंत्र के नष्ट होने का डर भी है।

Q3: भारत इस खतरे से निपटने के लिए क्या कर रहा है? Ans: भारत अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग में अपना खुद का एक विशाल बांध (11,000+ मेगावाट) बना रहा है ताकि जल भंडारण क्षमता विकसित की जा सके और चीन के प्रभाव को कम किया जा सके।

Q4: क्या भारत और चीन के बीच कोई जल संधि है? Ans: नहीं, दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक जल बंटवारा संधि (Water Sharing Treaty) नहीं है। केवल हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने के लिए कुछ समझौता ज्ञापन (MoU) हैं।

Q5: अरुणाचल के सीएम ने इस प्रोजेक्ट को क्या कहा है? Ans: अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे भारत के लिए एक “टिकिंग वॉटर बम” (Ticking Water Bomb) करार दिया है।

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Thakur Pawan Singh

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