डॉक्टर भीमराव आंबेडकर : ‘मैं किसी समाज की तरक़्क़ी इस बात से देखता हूं कि वहां महिलाओं ने कितनी तरक़्क़ी की है’
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर : ‘मैं किसी समाज की तरक़्क़ी इस बात से देखता हूं कि वहां महिलाओं ने कितनी तरक़्क़ी की है’
10 दिसम्बर2023, आगरा।
‘मैं किसी समाज की तरक़्क़ी इस बात से देखता हूं कि वहां महिलाओं ने कितनी तरक़्क़ी की है’
ये कथन बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का है।
उन्हें दलित और पिछड़ों का मसीहा माना जाता है, लेकिन महिला अधिकारों के लिए उनका संघर्ष किसी आंदोलन से कम नहीं था।
बाबासाहेब ने राजनीति और संविधान के जरिए भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष के बीच असमानता की गहरी खाई पाटने की भरपूर कोशिश की। और इसका सबसे बड़ा उदाहरण हिंदू कोड बिल था, जिसे संसद में पारित करवाने को लेकर वे खुद काफी चिंतित थे।
उनका कहना था कि, ‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिंदू कोड बिल पास कराने में है।’
एक ओर मनुस्मृति जहां महिलाओं को वश में रखने की बात करती थी, उन्हें कभी भी स्वतंत्र नहीं होने देने की पैरवी करती थी, वहीं बाबासाहेब आंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा, जब महिलाएं अपने लिए फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होगीं, वो शिक्षा हासिल कर सकेंगी। उन्हें पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार मिलेंगे। महिलाओं की उन्नति तभी होगी, जब उन्हें परिवार-समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा।
बाबासाहेब ने अपने प्रयासों से सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर महिलाओं की ज़िंदगी आसान बनाने और उन्हें उनके अधिकारों तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया है।
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