शिक्षा माफिया और उसके संहारक

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शिक्षा माफिया और उसके संहारक

 

आगरा के डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय की काली कहानियों का कोई अंत नहीं। तंत्र से जुड़ा कोई व्यक्ति यदि ईमानदार है तो भ्रष्ट उसे चैन नहीं लेने देते। छात्र समस्याओं का अंबार है, पर हल कोई नहीं। फिलहाल मेडिकल परीक्षा में गड़बड़ी से करोड़ों कमाने वाले माफिया और उसकी जड़ों की बात।

 

Anil Dixit


छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक को अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा का प्रभार मिला। कई विश्वविद्यालयों में ढेरों उपलब्धियों के दम पर कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने उन्हें प्रदेश का सबसे सक्षम कुलपति मानते हुए प्रदेश के सबसे जर्जर विश्वविद्यालय की दशा सुधारने का जिम्मा सौंपा। छात्र समस्याएं और परीक्षाओं की शुचिता परेशानी का सबब थीं। मुझे नजारा याद है, जब प्रो. पाठक से मिलकर गुहार लगाने के लिए कुलपति सचिवालय में लंबी-लंबी लाइनें लगा करती थीं। उम्मीदों के कुलपति ने पहली प्रायोरिटी तय की, कि सबसे पहले परीक्षा तंत्र सुधारेंगे तो छात्रों की 90 फीसदी समस्याएं खुद-ब-खुद सुलझ जाएंगी।

विश्वविद्यालय के एक संस्थान में मेडिकल की सारी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। परीक्षाओं में नजारे भी अजब होते थे। मेडिकल के छात्र हाइटेक ब्लूटूथ डिवाइस से जमकर नकल करते थे। गले में स्मार्ट ताबीज, स्मार्ट वॉच और नकल करने के ना जाने कौन-कौन से आधुनिकतम तरीके। चूंकि ऐसा केंद्र की संलिप्तता बगैर संभव नहीं तो सख्ती अंदरूनी प्रभावशाली लोगों पर भी हुई। नकल में पकड़े गए छात्रों के खिलाफ एफआईआर कराने में नानुकुर से शक और गहरा गया। तत्काल बदलाव किया गया। और, यहीं से विरोध और साजिश की पटकथा तैयार होना शुरू हो गई। लेकिन अविचल और अडिग प्रो. पाठक नकल बंद कराने कामयाब साबित हो गए।

आश्चर्य की बात है विश्वविद्यालय का तंत्र ऐसी परीक्षाओं में धांधली को प्रश्रय दे रहा था जो भविष्य के डॉक्टर बनाती है। अब डॉक्टर यदि नकल से पास होंगे तो बताइए कैसे इलाज करेंगे और कैसे सर्जरी! न जाने कितने मरीजों की तो जान ही ले लेंगे। बहरहाल, बौखलाए माफिया ने तत्काल नया रास्ता अख्तियार किया। लाखों रुपए लेकर कॉपियां बदलने की रूपरेखा तैयार हो गई। परीक्षा बाद केंद्र से कॉपियों को ले जाते वक्त रास्ते में उन्हें बदल दिया जाता। प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्त में आया माफिया डेविड मारियो मास्टरमाइंड था। बताते हैं कि मददगार लोगों को मोटी राशियां अदा की गईं।

यही खेल बीएएमएस की परीक्षाओं में भी किया गया। राशि थोड़ी कम थी लेकिन छात्रों की संख्या यहां भी कम नहीं थी।प्रो. पाठक के कार्यकाल में बदनाम विश्वविद्यालय के दामन से सबसे बड़ा दाग हट गया। उनकी ईमानदारी और अडिगता ने परीक्षा तंत्र के सारे बुरों को बड़ी मात दी। प्रो. पाठक ने छात्रों का अंबेडकर विश्वविद्यालय पर खोया भरोसा लौटाने का एक बड़ा प्रयास किया है। भविष्य के डॉक्टरों की आड़ में समाज से कुठाराघात रोकने के उनके प्रयास साधुवाद के पात्र हैं। अपने सत्य के साथ वो असत्य पर विजय हासिल कर रहे हैं।

 

अनिल दीक्षित 

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद है )

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