🕒 बुधवार, 8 अक्टूबर 2025 | Updated at: शाम 05:40 बजे IST | लखनऊ, उत्तर प्रदेश
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटी हैं। कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर लखनऊ में आयोजित रैली को लेकर पार्टी ने दावा किया है कि इसमें पांच लाख से अधिक कार्यकर्ता और समर्थक शामिल होंगे। लेकिन सवाल यह है — क्या यह रैली बीएसपी को उसका खोया जनाधार वापस दिला पाएगी?

BSP Rally In Lucknow: क्या मायावती की कोशिश रंग लाएगी?
लखनऊ के कांशीराम स्मारक मैदान में गुरुवार को होने वाली रैली को बीएसपी ने शक्ति प्रदर्शन का नाम दिया है। लंबे समय से राजनीतिक हाशिए पर चल रही पार्टी अब इस रैली के ज़रिए अपनी वापसी की कोशिश कर रही है।
नीले झंडों और हाथी वाले पोस्टर्स से शहर को सजाया गया है। चौराहों पर बीएसपी के बैनर लहराते दिख रहे हैं, और मंच को नीले-सफेद पर्दों से सजाया गया है — जो बीएसपी की पहचान बन चुका है।
क्या खोया हुआ जनाधार BSP को वापस मिलेगा?
बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में चार बार सत्ता में रह चुकी है, जिसमें एक बार पूर्ण बहुमत भी मिला था। लेकिन वर्तमान में पार्टी के पास विधानसभा में सिर्फ एक विधायक है और लोकसभा में कोई सांसद नहीं।
चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी ने बीएसपी के कोर वोटर्स को चुनौती दी है। संविधान और दलित अधिकारों के मुद्दे पर चंद्रशेखर की सक्रियता ने बीएसपी की जमीन खिसकाई है। ऐसे में मायावती ने आकाश आनंद को फिर से आगे कर कोर वोटर्स को एक नया विकल्प देने की कोशिश की है।
Transition Words से लेख का प्रवाह
इस बीच, बीएसपी कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह रैली 2027 के विधानसभा चुनाव की नींव रखेगी।
वहीं दूसरी ओर, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सिर्फ भीड़ जुटा लेने से जनाधार नहीं लौटता — इसके लिए संगठित रणनीति, स्थायी नेतृत्व, और जमीनी जुड़ाव ज़रूरी है।
BSP का ग्राफ कैसे गिरा?
- 2007: पूर्ण बहुमत, मुख्यमंत्री बनीं मायावती
- 2012: 80 सीटें, विपक्ष में
- 2017: सिर्फ 19 सीटें
- 2019: सपा-बसपा गठबंधन, बीएसपी को 10 लोकसभा सीटें
- 2022: सिर्फ 1 विधानसभा सीट
- 2024: लोकसभा में शून्य
इन आंकड़ों से साफ है कि बीएसपी का ग्राफ लगातार गिरता गया है। गठबंधन की राजनीति, नेतृत्व में अस्थिरता और जमीनी कार्यकर्ताओं से दूरी — ये सभी कारण रहे हैं।
चंद्रशेखर आज़ाद: BSP के लिए सबसे बड़ा खतरा?
बिजनौर की नगीना सीट से जीतने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद ने बाबा साहब के सिद्धांतों को लेकर जो सक्रियता दिखाई है, उसने बीएसपी को सीधी चुनौती दी है।
मायावती ने भले ही उनका नाम सार्वजनिक रूप से न लिया हो, लेकिन आकाश आनंद को आगे करके उन्होंने संकेत दे दिया है कि पार्टी अब नए नेतृत्व की ओर बढ़ रही है।
लखनऊ की यह रैली बीएसपी के लिए सिर्फ एक आयोजन नहीं — बल्कि एक राजनीतिक पुनर्जन्म की कोशिश है।
भीड़, पोस्टर्स और मंच की सजावट से संदेश तो दिया गया है, लेकिन असली सवाल यह है — क्या यह रैली जनाधार की वापसी का रास्ता खोल पाएगी?
आने वाले चुनाव और संगठन की मजबूती ही इसका जवाब देंगे।
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संपादन: ठाकुर पवन सिंह | pawansingh@tajnews.in
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