Thursday, 18 December 2025, 08:30:00 PM. Agra, Uttar Pradesh
आगरा। चिकित्सा के क्षेत्र में कहा जाता है कि ‘पहला घंटा’ (Golden Hour) किसी भी मरीज की जान बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। अगर इस दौरान सही प्राथमिक उपचार मिल जाए, तो मृत्यु दर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसी मूल मंत्र को आत्मसात करते हुए, ताजनगरी के प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज (S.N. Medical College) में गुरुवार को एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।
यहाँ एमबीबीएस 2025 बैच (MBBS 2025 Batch) के नव-प्रवेशित छात्रों के लिए बेसिक लाइफ सपोर्ट (BLS) पर एक विस्तृत प्रशिक्षण सत्र आयोजित हुआ। एनेस्थीसियोलॉजी और फिज़ियोलॉजी विभाग के संयुक्त प्रयासों से आयोजित इस कार्यशाला में भविष्य के डॉक्टरों ने सीखा कि अस्पताल पहुंचने से पहले मरीज की सांसें कैसे वापस लाई जा सकती हैं।

यह कार्यशाला न केवल एक शैक्षणिक गतिविधि थी, बल्कि यह मेडिकल छात्रों को पहले दिन से ही जिम्मेदार चिकित्सक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आइए विस्तार से जानते हैं कि इस कार्यशाला में क्या-क्या हुआ और चिकित्सा शिक्षा में इसका क्या महत्व है।
उद्घाटन समारोह: ‘किताबी ज्ञान से पहले जीवन बचाना सीखें’
कार्यशाला का शुभारंभ एस.एन. मेडिकल कॉलेज के एल.टी.-4 (Lecture Theatre-4) में हुआ। कार्यक्रम का संरक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता द्वारा किया गया। उद्घाटन समारोह का संचालन डॉ. सुदिप्ति यादव ने बहुत ही गरिमामय ढंग से किया।
अपने संबोधन में प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने कहा:
“एक डॉक्टर का सबसे पहला धर्म मरीज की जान बचाना है। किताबें आपको बीमारियां और दवाइयां सिखा सकती हैं, लेकिन किसी की रुकती हुई सांसों को सीपीआर (CPR) देकर वापस लाना एक ऐसा कौशल है, जो व्यवहारिक प्रशिक्षण से ही आता है। स्नातक स्तर पर ही छात्रों को इन कौशलों में निपुण करना हमारी प्राथमिकता है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि मेडिकल साइंस अब केवल इलाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह त्वरित प्रतिक्रिया (Rapid Response) और आपातकालीन प्रबंधन (Emergency Management) पर केंद्रित हो गया है।
क्या है बेसिक लाइफ सपोर्ट (What is Basic Life Support – BLS)?
आम पाठकों और मेडिकल छात्रों की जानकारी के लिए बता दें कि बेसिक लाइफ सपोर्ट (BLS) चिकित्सा देखभाल का वह स्तर है जो जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली बीमारियों या चोटों वाले पीड़ितों के लिए उपयोग किया जाता है, जब तक कि उन्हें अस्पताल में पूर्ण चिकित्सा देखभाल नहीं मिल जाती।
इस कार्यशाला में छात्रों को BLS के तीन मुख्य स्तंभों के बारे में बताया गया:
- एयरवे (Airway): मरीज की सांस की नली को साफ और खुला रखना।
- ब्रीदिंग (Breathing): कृत्रिम सांस देना।
- सर्कुलेशन (Circulation): छाती पर दबाव (Compression) डालकर रक्त संचार बनाए रखना।
वैज्ञानिक सत्र: डमी पर सीखीं जीवन रक्षक तकनीकें
कार्यशाला को विभिन्न वैज्ञानिक सत्रों में विभाजित किया गया था, जहाँ छात्रों को केवल थ्योरी नहीं पढ़ाई गई, बल्कि ‘हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग’ (Hands-on Training) दी गई। इसके लिए विशेष प्रकार के Mannequins (डमी) का उपयोग किया गया।
1. कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (CPR)
सबसे ज्यादा जोर सीपीआर पर दिया गया। डॉ. अर्चना अग्रवाल (नोडल ऑफिसर, NELS स्किल सेंटर) ने छात्रों को बताया कि कार्डियक अरेस्ट के दौरान छाती पर किस गति और दबाव से ‘कम्प्रेशन’ देना चाहिए।
- एडल्ट बीएलएस: वयस्कों में सीपीआर देने की तकनीक।
- पीडियाट्रिक बीएलएस: छोटे बच्चों और नवजात शिशुओं में सीपीआर देते समय बरती जाने वाली सावधानियां।
2. एईडी (AED) का उपयोग
आजकल मॉल, एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर ऑटोमेटेड एक्सटर्नल डिफिब्रिलेटर (AED) मशीनें लगी होती हैं। छात्रों को सिखाया गया कि अगर किसी का दिल अचानक धड़कना बंद कर दे, तो इस मशीन के जरिए बिजली का हल्का झटका (Shock) देकर दिल की धड़कन को कैसे रिस्टार्ट किया जा सकता है।
3. चोकिंग प्रबंधन (Choking Management)
कई बार खाना खाते समय या बच्चों द्वारा सिक्का निगल लेने पर सांस की नली ब्लॉक हो जाती है। इसे ‘चोकिंग’ कहते हैं। विशेषज्ञों ने छात्रों को ‘हाइमलिच मैन्यूवर’ (Heimlich Maneuver) तकनीक सिखाई, जिससे पेट पर दबाव डालकर फंसी हुई चीज को बाहर निकाला जाता है।
जीवन-घातक स्थितियों का प्रबंधन: विशेषज्ञों की राय
कार्यशाला में केवल सीपीआर ही नहीं, बल्कि अन्य मेडिकल इमरजेंसी पर भी विस्तार से चर्चा हुई।
- स्ट्रोक (Stroke): छात्रों को बताया गया कि स्ट्रोक के लक्षणों (चेहरा टेढ़ा होना, हाथ सुन्न होना, बोलने में दिक्कत) को कैसे पहचानें और ‘गोल्डन ऑवर’ में मरीज को क्या उपचार दें।
- हार्ट अटैक (Heart Attack): हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट के बीच का अंतर समझाया गया।
- डूबना (Drowning): पानी में डूबने वाले व्यक्ति के फेफड़ों से पानी निकालने और सीपीआर देने की प्रक्रिया।
- ओपिओइड ओवरडोज (Opioid Overdose): नशीली दवाओं के ओवरडोज के मामलों में एंटीडोट का उपयोग और श्वसन सहायता।
- एनाफिलैक्सिस (Anaphylaxis): गंभीर एलर्जी रिएक्शन, जिसमें मरीज का गला सूज जाता है और सांस रुकने लगती है, उसे कैसे मैनेज करें।
प्रशिक्षण देने वाली विशेषज्ञों की टीम (List of Trainers)
इस कार्यशाला की सफलता के पीछे एस.एन. मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसरों और डॉक्टरों की कड़ी मेहनत थी। छात्रों को प्रशिक्षित करने वाले विशेषज्ञों की सूची इस प्रकार है:
| विभाग (Department) | चिकित्सक/विशेषज्ञ (Doctors) | पद (Designation) |
| एनेस्थीसियोलॉजी | डॉ. अर्चना अग्रवाल | प्रोफेसर & नोडल ऑफिसर (NELS) |
| एनेस्थीसियोलॉजी | डॉ. योगिता द्विवेदी | प्रोफेसर |
| एनेस्थीसियोलॉजी | डॉ. अर्पिता सक्सेना | एसोसिएट प्रोफेसर |
| एनेस्थीसियोलॉजी | डॉ. सुप्रिया | एसोसिएट प्रोफेसर |
| एनेस्थीसियोलॉजी | डॉ. दीपिका चौबे | एसोसिएट प्रोफेसर |
| बाल रोग विभाग (Pediatrics) | डॉ. राम क्षितिज शर्मा | एसोसिएट प्रोफेसर |
| शल्य चिकित्सा (Surgery) | डॉ. अनुभव गोयल | – |
इस पूरी कार्यशाला का समन्वय (Coordination) डॉ. दिव्या श्रीवास्तव (यूजी अकादमिक्स इंचार्ज) द्वारा किया गया, जिन्होंने सुनिश्चित किया कि हर छात्र को सीखने का पर्याप्त मौका मिले।
फाउंडेशन कोर्स और NMC का नया विजन
यह कार्यशाला ‘नेशनल मेडिकल कमीशन’ (NMC) के नए पाठ्यक्रम का हिस्सा है। पहले मेडिकल की पढ़ाई में पहले साल सिर्फ थ्योरी पर जोर दिया जाता था, लेकिन अब ‘फाउंडेशन कोर्स’ के जरिए छात्रों को शुरुआत से ही क्लीनिकल एक्सपोजर दिया जा रहा है।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य दक्षता-आधारित चिकित्सा शिक्षा (Competency-Based Medical Education – CBME) को बढ़ावा देना है। इसका मतलब है कि एक डॉक्टर को सिर्फ ज्ञान नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे उस ज्ञान को लागू करने में ‘दक्ष’ (Competent) होना चाहिए।
समापन: प्रमाण-पत्र वितरण और भविष्य की राह
दिन भर चले इस सघन प्रशिक्षण सत्र के बाद, कार्यशाला के समापन समारोह में सभी प्रतिभागी छात्रों को प्रमाण-पत्र (Certificates) वितरित किए गए। एनेस्थीसियोलॉजी और फिज़ियोलॉजी विभाग के पीजी (Post Graduate) छात्रों ने भी जूनियर छात्रों को ट्रेनिंग देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस कार्यशाला से निकले ये 2025 बैच के छात्र जब डॉक्टर बनकर समाज के बीच जाएंगे, तो निश्चित रूप से ये सीखे हुए कौशल अनगिनत जिंदगियां बचाने में काम आएंगे। आगरा और आसपास के क्षेत्रों के लिए यह एक शुभ संकेत है कि एस.एन. मेडिकल कॉलेज गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है।
FAQ: एस.एन. मेडिकल कॉलेज BLS कार्यशाला से जुड़े सवाल
Q1: BLS का फुल फॉर्म क्या है और यह क्यों जरूरी है?
Ans: BLS का मतलब ‘बेसिक लाइफ सपोर्ट’ (Basic Life Support) है। यह आपातकालीन स्थिति में मरीज की जान बचाने के लिए दी जाने वाली प्राथमिक चिकित्सा है, जिसमें सीपीआर शामिल है।
Q2: क्या केवल मेडिकल छात्र ही BLS सीख सकते हैं?
Ans: नहीं, BLS की ट्रेनिंग आम लोग, पुलिसकर्मी, शिक्षक और कॉर्पोरेट कर्मचारी भी ले सकते हैं। हालांकि, एस.एन. मेडिकल कॉलेज में यह कार्यशाला एमबीबीएस छात्रों के लिए थी।
Q3: एईडी (AED) मशीन क्या काम करती है?
Ans: AED एक पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो दिल की धड़कन रुकने (Cardiac Arrest) पर बिजली का झटका देकर दिल को दोबारा शुरू करने में मदद करती है।
Q4: एस.एन. मेडिकल कॉलेज में यह वर्कशॉप किस बैच के लिए थी?
Ans: यह कार्यशाला एमबीबीएस के नए सत्र यानी 2025 बैच के विद्यार्थियों के लिए फाउंडेशन कोर्स के तहत आयोजित की गई थी।
Q5: फाउंडेशन कोर्स क्या होता है?
Ans: एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू करने से पहले छात्रों को मेडिकल एथिक्स, संचार कौशल और बेसिक इमरजेंसी स्किल सिखाने के लिए जो शुरुआती कोर्स चलाया जाता है, उसे फाउंडेशन कोर्स कहते हैं।
कार्यक्रम तशवीरों मे –




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