Wednesday, 17 December 2025, 7:54:00 PM. Islamabad, Pakistan
पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के सामने एक ऐसी कूटनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है, जो न तो किसी आंतरिक विद्रोह से जुड़ी है और न ही किसी तात्कालिक सरकारी फैसले से। यह संकट अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने की उनकी कोशिशों से ही पैदा हुआ है। गाजा शांति योजना के तहत अमेरिका की नई पहल ने मुनीर को ऐसे दोराहे पर ला खड़ा किया है, जहां एक ओर वाशिंगटन का दबाव है तो दूसरी ओर पाकिस्तान के भीतर संभावित राजनीतिक और वैचारिक विरोध।

ट्रंप की गाजा शांति योजना = नया दबाव बिंदु
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस्राइल-हमास संघर्ष को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए 20 बिंदुओं की गाजा शांति योजना पेश की है, जिसे संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी भी मिल चुकी है। इस योजना के तहत गाजा में एक बहुराष्ट्रीय ‘स्टेबिलाइजेशन फोर्स’ की तैनाती प्रस्तावित है, जिसमें इस्लामिक देशों से योगदान की अपेक्षा की गई है। पाकिस्तान भी उन देशों में शामिल है, जिनसे अमेरिका योगदान चाहता है।
स्टेबिलाइजेशन फोर्स क्या है?
योजना के अनुसार, इस्राइल चरणबद्ध तरीके से गाजा से अपनी सेना हटाएगा। इसके बदले हमलों और रॉकेट फायरिंग की रोकथाम सुनिश्चित की जाएगी। इसके लिए अमेरिका, अरब और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर एक अस्थायी अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (ISF) तैनात करेगा।
यह बल मिस्र और जॉर्डन के सहयोग से फलस्तीनी पुलिस को प्रशिक्षण देगा, सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा में मदद करेगा और हमास व अन्य सशस्त्र संगठनों के निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया की निगरानी करेगा। ISF के नियंत्रण स्थापित होते ही इस्राइली रक्षा बल (IDF) की वापसी होगी।
हमास निरस्त्रीकरण = सबसे बड़ी चुनौती
योजना के बिंदु छह में कहा गया है कि जो हमास सदस्य हथियार छोड़ने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए तैयार होंगे, उन्हें माफी दी जा सकती है। जो गाजा छोड़ना चाहें, उन्हें सुरक्षित मार्ग दिया जाएगा।
लेकिन दो दशकों से गाजा पर शासन कर चुके हमास को निरस्त्र करना इस पूरी योजना का सबसे कठिन पहलू माना जा रहा है। इस जिम्मेदारी का बड़ा हिस्सा इस्लामिक देशों से आए सैनिकों पर होगा, जिसको लेकर कतर और मिस्र जैसे देशों ने भी चिंता जताई है।
पाकिस्तान के लिए क्यों बन सकता है यह सिरदर्द?
रॉयटर्स के मुताबिक, ट्रंप-मुनीर की प्रस्तावित मुलाकात में गाजा में तैनात होने वाले स्थिरीकरण बल और पाकिस्तान की भूमिका प्रमुख मुद्दा होगी। विश्लेषकों का मानना है कि यदि पाकिस्तान अपने सैनिक भेजता है, तो उसे देश के भीतर कड़ा विरोध झेलना पड़ सकता है।
पाकिस्तान खुद को फलस्तीन का समर्थक बताता रहा है। ऐसे में यदि पाकिस्तानी सैनिक हमास के निरस्त्रीकरण से जुड़ी किसी प्रक्रिया में शामिल होते हैं, तो इसे इस्राइल के पक्ष में कदम माना जा सकता है। इससे न केवल धार्मिक-राजनीतिक हलकों में असंतोष बढ़ेगा, बल्कि आम जनता और कट्टरपंथी संगठनों की नाराजगी भी सामने आ सकती है।
मुनीर की ताकत और जोखिम
आसिम मुनीर को पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली सैन्य प्रमुखों में गिना जाता है। संविधान से मिली व्यापक शक्तियों के चलते विदेश नीति में उनकी भूमिका लगातार बढ़ी है। हाल के हफ्तों में उन्होंने इंडोनेशिया, मलेशिया, सऊदी अरब, तुर्किये, जॉर्डन, मिस्र और कतर के शीर्ष सैन्य-राजनीतिक नेतृत्व से मुलाकातें की हैं।
कतर में हुई हालिया बैठक में पाकिस्तान समेत दर्जन भर इस्लामिक और यूरोपीय देश शामिल थे, जहां गाजा शांति योजना पर चर्चा हुई। तुर्किये की अनुपस्थिति ने भी इस्लामिक देशों के भीतर मतभेद उजागर किए।
पाकिस्तान की संभावित भूमिका क्या हो सकती है?
पाकिस्तान की सेना को दशकों के युद्ध अनुभव के कारण एक पेशेवर बल माना जाता है। यही कारण है कि ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को गाजा में शांति स्थापना के लिए उपयोगी मानता है।
हालांकि, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार पहले ही कह चुके हैं कि यदि सैनिक भेजे भी जाते हैं तो उनका काम हमास को निरस्त्र करना नहीं होगा। यह बयान खुद इस बात का संकेत है कि इस मुद्दे पर इस्लामाबाद बेहद सतर्क है।
क्या ट्रंप से करीबी ही मुनीर के लिए भारी पड़ेगी?
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से मुनीर अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों को नई दिशा देने की कोशिश में रहे हैं। ट्रंप द्वारा बिना किसी नागरिक नेतृत्व के सीधे पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख को व्हाइट हाउस बुलाना इस रिश्ते की गहराई दिखाता है।
अटलांटिक काउंसिल के सीनियर फेलो माइकल कुगलमैन के अनुसार, यदि मुनीर ट्रंप की गाजा योजना में सहयोग से इनकार करते हैं, तो अमेरिकी राष्ट्रपति की नाराजगी पाकिस्तान के लिए नुकसानदेह हो सकती है। निवेश, सुरक्षा सहयोग और कूटनीतिक समर्थन — सब कुछ दांव पर लग सकता है।
फैसला आसान नहीं
गाजा शांति योजना में भागीदारी का फैसला केवल विदेश नीति का सवाल नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान के भीतर स्थिरता, वैचारिक संतुलन और सैन्य नेतृत्व की स्वीकार्यता से भी जुड़ा है।
आसिम मुनीर के पास जोखिम लेने की क्षमता और शक्ति दोनों हैं, लेकिन यह जोखिम अगर गलत दिशा में गया, तो उसका असर सिर्फ़ विदेश संबंधों पर नहीं, बल्कि पाकिस्तान की घरेलू राजनीति पर भी गहराई से पड़ेगा।
Also read : US-India Trade: ट्रंप का ‘चावल वार’, भारत पर अतिरिक्त टैरिफ का खतरा!
सिडनी: ‘ऑस्ट्रेलिया का हीरो’ अहमद; आतंकी से निहत्थे भिड़े, राइफल छीनी और भाई से कहा- ‘मर गया तो परिवार को बताना…’
📧 pawansingh@tajnews.in
📱 अपनी खबर सीधे WhatsApp पर भेजें: 7579990777
👉 TajNews WhatsApp Channel
👉 Join WhatsApp Group
🐦 Follow on X (Twitter)
🌐 tajnews.in
#GazaPeacePlan #AsimMunir #PakistanArmy #TrumpPakistan #MiddleEastCrisis #IsraelHamas #GlobalPolitics #WorldNews #Diplomacy #PakistanPolitics #USForeignPolicy #GazaCrisis #IslamicWorld #GeoPolitics








