
24 December 2025. New Delhi/Agra.
Center Banes New Mining in Aravalli: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने अरावली पर्वत श्रृंखला में खनन गतिविधियों पर बड़ा प्रहार किया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने बुधवार को एक सख्त आदेश जारी करते हुए अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह की ‘नई खनन लीज‘ (New Mining Leases) देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान से लेकर गुजरात तक फैली पूरी अरावली रेंज पर समान रूप से लागू होगा। सरकार का यह फैसला उन हजारों एकड़ जंगलों और पहाड़ों के लिए जीवनदान माना जा रहा है जो अवैध खनन के चलते नक्शे से गायब हो रहे थे।

क्या है केंद्र सरकार का नया आदेश?
बुधवार को जारी प्रेस बयान के अनुसार, मंत्रालय ने सभी संबंधित राज्य सरकारों (हरियाणा, राजस्थान, गुजरात) को निर्देश दिया है कि अरावली क्षेत्र में अब किसी भी नई खदान को मंजूरी न दी जाए। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू माना जाएगा। मंत्रालय का स्पष्ट कहना है कि अरावली केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि उत्तर भारत की जलवायु को संतुलित रखने वाली एक सतत भौगोलिक संरचना (Continuous Geological Formation) है, जिसे टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता।
मंत्रालय ने कहा, “यह निषेध (Ban) पूरे अरावली परिदृश्य में समान रूप से लागू होगा। इसका उद्देश्य इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला की अखंडता को बनाए रखना और अनियंत्रित खनन गतिविधियों पर हमेशा के लिए लगाम लगाना है।”
ICFRE तय करेगा ‘नो-गो ज़ोन’ (No-Go Zones)
केंद्र सरकार ने सिर्फ प्रतिबंध नहीं लगाया, बल्कि भविष्य का रोडमैप भी तैयार किया है। मंत्रालय ने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। ICFRE को निर्देश दिया गया है कि वह पूरी अरावली रेंज का सर्वे करे और उन अतिरिक्त क्षेत्रों की पहचान करे जहाँ खनन को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
- यह पहचान पारिस्थितिकी (Ecology), भूविज्ञान (Geology) और लैंडस्केप के आधार पर की जाएगी।
- ICFRE एक व्यापक ‘सतत खनन प्रबंधन योजना’ (Management Plan for Sustainable Mining – MPSM) तैयार करेगा।
- यह योजना वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होगी, जो यह तय करेगी कि अरावली का पर्यावरण कितना बोझ सह सकता है।
विरोध प्रदर्शनों का असर या सुप्रीम कोर्ट का डर?
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब अरावली को बचाने के लिए कई पर्यावरण संगठन और स्थानीय नागरिक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। ‘अरावली बचाओ’ अभियान के तहत लोग सड़कों पर उतरकर पहाड़ों को खोदे जाने का विरोध कर रहे थे। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट भी अरावली में अवैध खनन को लेकर लगातार सख्त टिप्पणी करता रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार का यह कदम सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और जनता के बढ़ते दबाव का परिणाम है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि “क्या आप चाहते हैं कि लोग हनुमान जी की तरह पहाड़ उठाकर ले जाएं?” कोर्ट ने तब यह भी नोट किया था कि राजस्थान के 128 में से 31 पहाड़ अवैध खनन के कारण पूरी तरह गायब हो चुके हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है अरावली पर्वत श्रृंखला?
अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह केवल पत्थर नहीं है, बल्कि उत्तर भारत के लिए ‘ग्रीन लंग्स’ (Green Lungs) और ‘जल रक्षक’ का काम करती है।
- थार मरुस्थल को रोकना: अरावली एक प्राकृतिक दीवार की तरह खड़ी है जो पश्चिम से आने वाली थार मरुस्थल की रेत और धूल भरी आंधियों को दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उपजाऊ गंगा के मैदानों तक पहुँचने से रोकती है। यदि अरावली खत्म हुई, तो आगरा और दिल्ली जैसे शहर धूल के गुबार में बदल जाएंगे।
- जल संरक्षण (Water Recharge): यह पहाड़ बारिश के पानी को रोककर भूजल (Groundwater) रिचार्ज करते हैं। गुरुग्राम, फरीदाबाद और दिल्ली में गिरता जलस्तर इसी पहाड़ी तंत्र के विनाश का नतीजा है।
- जैव विविधता (Biodiversity): यह तेंदुए, लकड़बग्घे, नीलगाय और सैकड़ों तरह के पक्षियों का घर है। खनन के कारण इनका आवास छिन रहा है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।
मौजूदा खदानों का क्या होगा?
एक बड़ा सवाल यह है कि जो खदानें अभी चल रही हैं, उनका क्या होगा? केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि मौजूदा खदानों (Operational Mines) पर तत्काल ताला नहीं लगेगा, लेकिन उनके लिए नियम बहुत सख्त कर दिए गए हैं।
- राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि चल रही खदानें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का 100% पालन करें।
- पर्यावरण नियमों (Environmental Safeguards) की अनदेखी करने वाली खदानों को तुरंत बंद किया जाएगा।
- अतिरिक्त प्रतिबंधों के साथ खनन को विनियमित (Regulate) किया जाएगा ताकि पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो।
कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री पर क्या होगा असर?
अरावली से निकलने वाला पत्थर और रोड़ी (Grit) दिल्ली-NCR के निर्माण कार्य (Real Estate) की रीढ़ है। नई लीज पर प्रतिबंध लगने से कंस्ट्रक्शन मटीरियल की सप्लाई पर असर पड़ सकता है। जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में रोड़ी और बदरपुर के भाव में कुछ तेजी आ सकती है। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि विकास की कीमत पर हम अपनी सांसें और पानी दांव पर नहीं लगा सकते।
भविष्य की योजना: जनता से मांगी जाएगी राय
ICFRE द्वारा तैयार की जाने वाली ‘प्रबंधन योजना’ (MPSM) को लागू करने से पहले जनता और हितधारकों (Stakeholders) के बीच रखा जाएगा। इसमें आम लोगों, पर्यावरणविदों और खनन उद्योग से जुड़े लोगों की राय ली जाएगी। इस योजना में यह भी तय किया जाएगा कि जिन पहाड़ों को खोदकर खोखला कर दिया गया है, उनकी पुनर्स्थापना (Restoration) और पुनर्वसन (Rehabilitation) कैसे किया जाए।
एक उम्मीद की किरण
भारत सरकार का यह बयान कि वह “अरावली पारिस्थितिकी तंत्र के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है”, पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक उम्मीद की किरण है। अरावली का संरक्षण सिर्फ एक पहाड़ को बचाना नहीं है, बल्कि यह उत्तर भारत को रेगिस्तान बनने से रोकने की लड़ाई है। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकारें केंद्र के इस आदेश को कितनी ईमानदारी से ज़मीन पर उतारती हैं, क्योंकि कागजों पर प्रतिबंध पहले भी लगे हैं, लेकिन धरातल पर खनन माफिया का ही राज चलता आया है।
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