उत्तर प्रदेश के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हिंसक झड़पों ने पूरे राज्य में राजनीतिक और सामाजिक तनाव बढ़ा दिया है। इस घटना के बाद प्रशासन ने कई पाबंदियां लागू की हैं, जिनमें स्कूलों का बंद होना, मोबाइल इंटरनेट का निलंबन और बड़ी सभाओं पर रोक शामिल है। हिंसा के बाद 4 लोगों की मौत और पुलिस समेत कई लोगों के घायल होने की खबर है। इस मामले में समाजवादी पार्टी के नेताओं पर आरोप लगाए गए हैं, जबकि राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं।
हिंसा कैसे भड़की?
रविवार को संभल में एक कोर्ट के आदेश पर शाही जामा मस्जिद का सर्वे करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य यह जांचना था कि क्या मुगल काल की मस्जिद एक मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी। इस सर्वे के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुआ।
प्रदर्शनकारियों ने पथराव किया और सरकारी वाहनों को आग के हवाले कर दिया। पुलिस ने हिंसा को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े। तनावपूर्ण स्थिति सुबह 7 बजे से शुरू होकर घंटों तक जारी रही।
मृतक और घायल
हिंसा में नौमान, बिलाल, नईम, और मोहम्मद कैफ नामक चार लोगों की मौत हो गई। पीड़ितों के परिवार का आरोप है कि उन्हें गोली मारी गई, हालांकि पुलिस ने मौत के कारणों की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद करने की बात कही है।
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष में 15-20 पुलिसकर्मी घायल हुए। एक पुलिसकर्मी के सिर में गंभीर चोट लगी, जबकि डिप्टी कलेक्टर के पैर में फ्रैक्चर हो गया।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
संभल हिंसा के बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और स्थानीय विधायक इकबाल महमूद के बेटे सोहेल इकबाल पर हिंसा भड़काने और भीड़ जुटाने के आरोप में केस दर्ज किया गया है।
अखिलेश यादव का बयान
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार पर दंगा भड़काने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह हिंसा सरकार की सोची-समझी साजिश का नतीजा है। यादव ने इसे बीजेपी की “विभाजनकारी राजनीति” का हिस्सा बताया।
बीजेपी का पलटवार
वहीं बीजेपी ने विपक्षी दलों, खासतौर पर इंडिया गठबंधन, पर आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव से पहले देश में अशांति फैलाने की कोशिश हो रही है। बीजेपी नेताओं ने कहा कि मस्जिद सर्वे के नाम पर जनता को गुमराह किया जा रहा है।
प्रशासनिक कार्रवाई
हिंसा के बाद संभल में सख्त कदम उठाए गए हैं। स्कूल बंद कर दिए गए हैं, मोबाइल इंटरनेट सेवाएं अस्थायी रूप से रोक दी गई हैं, और धारा 144 लागू कर दी गई है। अधिकारियों ने बताया कि स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस और प्रशासन पूरी मुस्तैदी से काम कर रहे हैं।
हिंसा के कारणों की जांच
संभल हिंसा का केंद्र कोर्ट द्वारा आदेशित मस्जिद सर्वे है। याचिका में दावा किया गया था कि शाही मस्जिद एक ध्वस्त मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। यह मुद्दा अयोध्या मामले की तर्ज पर धार्मिक और राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
पुलिस के अनुसार, हिंसा के दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने गोलियां चलाईं, जिससे एक अधिकारी के पैर में गोली लगी। पुलिस मामले की जांच कर रही है और वीडियो फुटेज के आधार पर आरोपियों की पहचान की जा रही है।
राजनीतिक और सामाजिक असर
संभल हिंसा ने राज्य और देश की राजनीति को हिला कर रख दिया है।
ध्रुवीकरण की राजनीति
विरोधी दलों ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक राजनीति का परिणाम बताया है। समाजवादी पार्टी ने इसे बीजेपी की “सांप्रदायिक राजनीति” का हिस्सा करार दिया, जबकि बीजेपी ने इसे “अशांति फैलाने की विपक्षी साजिश” कहा।
आम जनता पर असर
हिंसा के बाद लगे प्रतिबंधों ने स्थानीय लोगों की दिनचर्या प्रभावित की है। इंटरनेट सेवाएं बंद होने से व्यापार और शिक्षा प्रभावित हुई है।
क्या होगा आगे?
संभल हिंसा मामले में प्रशासन और सरकार की भूमिका सवालों के घेरे में है। कोर्ट के आदेश के बाद मस्जिद सर्वे का मुद्दा सुलझने की बजाय और उलझ गया है।
न्यायिक प्रक्रिया
मस्जिद सर्वे की वैधता और इसके नतीजों पर कोर्ट में आगे सुनवाई होगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि न्यायपालिका इस मुद्दे को कैसे सुलझाती है।
राजनीतिक परिदृश्य
हिंसा और राजनीतिक आरोपों ने आगामी चुनावों के लिए माहौल गर्म कर दिया है। बीजेपी और विपक्षी दल एक-दूसरे पर आरोप लगाकर अपनी-अपनी रणनीतियों को धार दे रहे हैं।
सांप्रदायिक सौहार्द की चुनौती
संभल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
निष्कर्ष
संभल हिंसा ने प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मस्जिद सर्वे और उससे जुड़े विवाद ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गरमा दिया है। सरकार और विपक्ष दोनों इस मुद्दे को अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस बीच, आम जनता को उम्मीद है कि प्रशासन जल्दी से हालात पर काबू पाकर शांति और स्थिरता बहाल करेगा। संभल हिंसा का समाधान भविष्य की राजनीति और सामाजिक सौहार्द के लिए एक अहम संकेतक साबित हो सकता है।
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