
Sunday, 21 December 2025, 09:45:00 PM. Lucknow/Agra
लखनऊ/आगरा। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जुबानी जंग तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने रविवार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) की केंद्र और राज्य सरकार पर अब तक का सबसे तीखा वैचारिक हमला बोला है। उन्होंने भाजपा पर देश की अर्थव्यवस्था को चंद हाथों में गिरवी रखने का आरोप लगाते हुए कहा कि भगवा दल का असली और गोपनीय एजेंडा “एक देश-एक कारोबारी” (One Nation, One Businessman) है।

अखिलेश यादव ने अपने बयान में एक नया नारा गढ़ते हुए कहा कि भाजपा “एक का धंधा, एक से चंदा” के सिद्धांत पर काम कर रही है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में आर्थिक असमानता और कॉरपोरेट मोनोपोली (Corporate Monopoly) को लेकर बहस छिड़ी हुई है।
Taj News की इस विशेष रिपोर्ट में हम विस्तार से विश्लेषण करेंगे कि अखिलेश यादव के इस बयान के क्या मायने हैं, उन्होंने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) और किसानों को लेकर क्या चेतावनी दी है, और अरावली पहाड़ियों को लेकर उनकी नई चिंता क्या संकेत दे रही है।
Akhilesh Yadav Attack: ‘एक का धंधा, एक से चंदा’ की थ्योरी
सपा प्रमुख ने लखनऊ में जारी अपने बयान में भाजपा की आर्थिक नीतियों की बखिया उधेड़ कर रख दी। उन्होंने कहा कि “एक देश-एक चुनाव” (One Nation, One Election) की बातें तो जनता को भ्रमित करने के लिए हैं, असल में भाजपा जिस फॉर्मूले पर काम कर रही है, वह देश के लिए बेहद घातक है।
एकाधिकार (Monopoly) का खतरा: अखिलेश यादव ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में ‘एकाधिकार’ की भावना लोकतंत्र और समाज दोनों के लिए जहर समान है।
- राजनीतिक एकाधिकार: भाजपा विपक्ष को खत्म करके एकछत्र राज करना चाहती है।
- आर्थिक एकाधिकार: वह बाजार के अन्य सभी खिलाड़ियों (छोटे व्यापारियों और अन्य औद्योगिक घरानों) को खत्म करके सारी आर्थिक गतिविधियां अपने गिने-चुने ‘मित्रों’ को सौंपना चाहती है।
उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “भाजपा का मॉडल साफ है— वे अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को ‘धंधा’ देते हैं और बदले में उनसे मोटा ‘चंदा’ लेते हैं। इस खेल में आम जनता सिर्फ एक दर्शक बनकर रह गई है।”
PDA और किसानों के लिए ‘रेड अलर्ट’
अखिलेश यादव ने अपने मुख्य वोट बैंक ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) और किसानों को आगाह किया कि अगर यह “One Nation, One Businessman” का एजेंडा लागू हो गया, तो सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ेगा।
1. उपभोक्ताओं की लूट: अखिलेश ने अर्थशास्त्र का हवाला देते हुए समझाया कि जब बाजार में प्रतियोगिता (Competition) खत्म हो जाती है और केवल एक या दो कंपनियों का राज हो जाता है, तो वे मनमाने दाम वसूलती हैं।
- “नियम-कानून बदले जाएंगे: एकाधिकारवादी कंपनियों के फायदे के लिए सरकार हर नियम को बदल देगी। उपभोक्ता मजबूर होगा और उसे अपनी जेब ढीली करनी पड़ेगी।”
2. श्रमिकों का शोषण: सपा अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा सरकार “कम धन-अधिक श्रम” (Low Pay, High Labor) के उत्पीड़नकारी फॉर्मूले को बढ़ावा दे रही है। जब नौकरी देने वाला मालिक एक ही होगा, तो मजदूर के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा। उसका शोषण बढ़ेगा और वह आवाज भी नहीं उठा पाएगा।
3. किसान और पीडीए की अनदेखी: उन्होंने चेतावनी दी कि कॉरपोरेट जगत की इस नई व्यवस्था में न तो किसान की एमएसपी (MSP) की मांग सुनी जाएगी और न ही पीडीए समाज की सामाजिक न्याय की गुहार। सरकार की प्राथमिकता सिर्फ ‘मुनाफा’ होगी, ‘जनकल्याण’ नहीं।
अरावली बचाओ: अखिलेश का ‘ग्रीन अवतार’
राजनीतिक हमलों के बीच अखिलेश यादव ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी एक बड़ा और संवेदनशील मुद्दा उठाया। उन्होंने अरावली पर्वत श्रृंखला (Aravalli Range) को बचाने के लिए एक भावुक अपील की।
नारा: “बची रहे जो अरावली, तो दिल्ली रहे हरी-भरी।”
अखिलेश ने कहा कि अरावली को बचाना अब कोई ‘विकल्प’ (Option) नहीं है, बल्कि यह हमारा ‘संकल्प’ (Resolution) होना चाहिए। उनके इस बयान के गहरे मायने हैं:
- एनसीआर का सुरक्षा कवच: उन्होंने कहा कि अरावली दिल्ली और एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच (Natural Shield) है। यह थार रेगिस्तान की धूल भरी आंधियों को रोकता है।
- प्रदूषण से मुक्ति: जिस तरह दिल्ली-एनसीआर जहरीली हवा (Smog) से जूझ रहा है, उसका समाधान एयर प्यूरीफायर नहीं, बल्कि अरावली के जंगल हैं। अखिलेश ने कहा, “अरावली ही दिल्ली के ओझल हो चुके तारों को फिर से दिखा सकती है।”
गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने अरावली में खनन को लेकर कुछ स्पष्टीकरण दिए हैं, जिसे लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है। अखिलेश का यह बयान उसी संदर्भ में देखा जा रहा है।
कॉरपोरेटपरस्त नीतियों पर सपा का विजन
समाजवादी पार्टी का इतिहास रहा है कि वह लोहियावादी समाजवाद की बात करती है। अखिलेश यादव ने अपने बयान में स्पष्ट कर दिया है कि उनकी लड़ाई अब सीधे तौर पर “पूंजीवाद बनाम समाजवाद” की ओर बढ़ रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के तथाकथित ‘आर्थिक सुधार’ असल में ‘मजदूर विरोधी’ और ‘कॉरपोरेट परस्त’ हैं।
- रणनीति: पूंजीवाद के हित में यह होता है कि समाज में बेरोजगारों की एक बड़ी फौज (Reserve Army of Labor) बनी रहे। ताकि मजदूरों को कम पैसे में काम करने पर मजबूर किया जा सके और मुनाफा अधिकतम किया जा सके।
- मनरेगा का जिक्र: इसी संदर्भ में सपा नेताओं का कहना है कि सरकार मनरेगा जैसी योजनाओं को कमजोर कर रही है ताकि ग्रामीण मजदूर शहरों में आकर कॉरपोरेट कंपनियों के लिए सस्ते लेबर का काम करें।
राजनीतिक विश्लेषण: 2027 की तैयारी?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव का यह बयान केवल एक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह आगामी चुनावों (विशेषकर यूपी विधानसभा 2027) के लिए एक नैरेटिव सेट करने की कोशिश है।
- शहरी बनाम ग्रामीण: जहाँ भाजपा राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की बात करती है, वहीं अखिलेश अब आर्थिक मुद्दों, बेरोजगारी और महंगाई को केंद्र में ला रहे हैं।
- PDA+किसान: वे यह संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा की नीतियां केवल ‘अमीरों’ के लिए हैं, जबकि सपा गरीबों, किसानों और पिछड़ों की हितैषी है।
भाजपा का संभावित पलटवार
हालाँकि, भाजपा हमेशा इन आरोपों को खारिज करती रही है। भाजपा का तर्क है कि उनकी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मंत्र पर चलती है और भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है। भाजपा नेताओं का कहना है कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए वे उद्योगपतियों के नाम पर जनता को गुमराह कर रहे हैं।
एक देश, दो विचारधाराएं
रविवार को अखिलेश यादव के बयान ने यह साफ कर दिया है कि देश में वैचारिक ध्रुवीकरण (Ideological Polarization) गहराता जा रहा है। एक तरफ भाजपा का ‘मार्केट फ्रेंडली’ और ‘रिफॉर्मिस्ट’ एजेंडा है, तो दूसरी तरफ विपक्ष का ‘कल्याणकारी’ और ‘समाजवादी’ मॉडल।
“एक देश-एक कारोबारी” का यह जुमला आने वाले दिनों में और गूंजेगा। अब यह जनता को तय करना है कि वह किसे चुनती है— ‘विकास के दावे’ को या ‘एकाधिकार के खतरे’ की चेतावनी को। अरावली से लेकर अर्थव्यवस्था तक, अखिलेश यादव ने हर मोर्चे पर सरकार को घेरा है।
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