
Sunday, 21 December 2025, 08:30:00 PM. New Delhi/Agra
नई दिल्ली/आगरा। अरावली पर्वत श्रृंखला (Aravalli Range), जिसे उत्तर भारत का ‘फेफड़ा’ और रेगिस्तान को रोकने वाली ‘दीवार’ कहा जाता है, पिछले कुछ समय से अपनी परिभाषा (Definition) को लेकर विवादों में थी। विपक्ष और पर्यावरणविदों का आरोप था कि केंद्र सरकार ने अरावली की परिभाषा में बदलाव इसलिए किया है ताकि ‘खनन माफिया’ को खुली छूट दी जा सके।+1
लेकिन रविवार को केंद्र सरकार ने इन सभी आरोपों का सिरे से खंडन कर दिया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव (Bhupender Yadav) ने स्पष्ट किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूर की गई नई परिभाषा से खनन को बढ़ावा नहीं मिलेगा, बल्कि इससे अरावली का 90% हिस्सा ‘संरक्षित क्षेत्र’ (Protected Area) के दायरे में आ जाएगा।
सुंदरबन टाइगर रिजर्व (Sundarban Tiger Reserve) से बोलते हुए उन्होंने कहा कि अरावली में नए खनन पट्टों (Mining Leases) पर तब तक रोक रहेगी, जब तक कि एक व्यापक प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती।
Taj News की इस विशेष रिपोर्ट में जानिए कि आखिर क्या है अरावली की नई परिभाषा, क्यों मचा है इस पर बवाल और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब क्या बदलने वाला है।

Aravalli Mining Controversy: सरकार का पक्ष और सुप्रीम कोर्ट का आदेश
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने मीडिया को बताया कि अरावली की परिभाषा बदलने का मकसद किसी को फायदा पहुंचाना नहीं, बल्कि “अस्पष्टता” (Ambiguity) को खत्म करना है।
- विवाद की जड़: 100 मीटर की ऊंचाई का नियम।
- आरोप: आलोचकों का कहना था कि सरकार ने नियम बनाया है कि केवल 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा, जिससे निचली पहाड़ियों में खनन का रास्ता साफ हो जाएगा।
- सरकार का जवाब: सरकार ने इसे “तथ्यात्मक रूप से गलत” बताया है। पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, यह परिभाषा सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तय की गई है ताकि सभी राज्यों (राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली) में एक समान नियम लागू हो सकें।
क्या है ‘100 मीटर’ का नियम और नई परिभाषा?
सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इस समिति ने पाया कि केवल राजस्थान के पास ही अरावली की एक लिखित और स्पष्ट परिभाषा थी (जो 2006 से लागू है)। बाकी राज्य अपनी मनमर्जी चला रहे थे।
नई परिभाषा के मुख्य बिंदु:
- ऊंचाई का मानक: स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची भू-आकृतियों को ‘पहाड़ी’ माना जाएगा।
- बाउंड्री का नियम: ऐसी पहाड़ियों को घेरने वाली सबसे निचली बाउंड्री (Contour) के भीतर किसी भी तरह का खनन प्रतिबंधित होगा, चाहे अंदर की जमीन की ऊंचाई कम ही क्यों न हो।
- क्लस्टर नियम: यदि पहाड़ियां एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हैं, तो उन्हें अलग-अलग नहीं, बल्कि एक ‘पूरी श्रृंखला’ (Single Range) माना जाएगा। यह नियम खनन कंपनियों के उस दांव को फेल कर देगा, जिसमें वे दो पहाड़ियों के बीच की जमीन खोद डालते थे।
90% क्षेत्र सुरक्षित: खनन माफिया पर कसेगा शिकंजा
सरकार ने स्पष्ट किया है कि नई परिभाषा लागू होने के बाद अरावली क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ‘नो-गो जोन’ (No-Go Zone) बन जाएगा।
- सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश: जब तक ‘भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद’ (ICFRE) पूरे परिदृश्य के लिए ‘सतत खनन प्रबंधन योजना’ (Management Plan for Sustainable Mining) तैयार नहीं कर लेती, तब तक अरावली क्षेत्र में कोई भी नया खनन पट्टा (New Mining Lease) नहीं दिया जाएगा।
- पुराने खदान: जो खदानें अभी चल रही हैं, उन्हें भी समिति द्वारा निर्धारित सख्त “सस्टेनेबल माइनिंग” नियमों का पालन करना होगा, अन्यथा उन्हें भी बंद कर दिया जाएगा।
अवैध खनन ही असली दुश्मन
सरकार ने जारी बयान में कहा कि अरावली को असली खतरा कानूनी खनन से नहीं, बल्कि अवैध और अनियमित खनन (Illegal Mining) से है।
- आंकड़े: राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के जिला-स्तरीय विश्लेषण से पता चलता है कि कानूनी रूप से स्वीकृत खनन वर्तमान में अरावली के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 0.19% ही है।
- दिल्ली की स्थिति: दिल्ली में अरावली के 5 जिले आते हैं, और यहाँ किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि की अनुमति नहीं है।
भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की नई गाइडलाइंस के तहत अब अवैध खनन रोकने के लिए ड्रोन (Drones) और सैटेलाइट सर्विलांस का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया गया है।
विपक्ष का हमला और भू-राजनीति
इससे पहले कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने गहलोत सरकार के समय के ‘सेव अरावली’ कैंपेन का हवाला देते हुए केंद्र पर आरोप लगाया था कि नई परिभाषा के जरिए अरावली को कॉरपोरेट के हवाले किया जा रहा है। आलोचकों का तर्क था कि “100 मीटर” का नियम अरावली की छोटी पहाड़ियों को नष्ट कर देगा, जो भूजल रिचार्ज (Groundwater Recharge) के लिए महत्वपूर्ण हैं।+1
हालाँकि, केंद्र सरकार ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि प्रतिबंध पूरी पहाड़ी प्रणाली (Hill System) पर लागू होता है, न कि केवल चोटी या ढलान पर।
क्यों महत्वपूर्ण है अरावली? (Significance of Aravalli)
अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह केवल पत्थर का पहाड़ नहीं है:
- थार को रोकना: यह थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है।
- जल संरक्षण: यह उत्तर भारत के भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद करती है।
- जैव विविधता: यहाँ तेंदुए, लकड़बग्घे और सैकड़ों प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं।
- दिल्ली की ढाल: यह दिल्ली-एनसीआर को धूल भरी आंधियों से बचाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोर एरिया, ईको-सेंसिटिव जोन, टाइगर रिजर्व और वेटलैंड्स के आसपास खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। केवल राष्ट्रीय हित में बहुत ही महत्वपूर्ण (Strategic) खनिजों के लिए सीमित छूट दी जा सकती है, वह भी सख्त जांच के बाद।
संरक्षण और विकास का संतुलन
पर्यावरण मंत्री के बयान से यह साफ हो गया है कि सरकार अरावली को लेकर बैकफुट पर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित यह नया फ्रेमवर्क अगर सही तरीके से लागू हुआ, तो यह अरावली के संरक्षण के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। अब गेंद राज्य सरकारों के पाले में है कि वे इन नियमों का पालन कितनी ईमानदारी से करती हैं।
FAQ: अरावली खनन विवाद से जुड़े सवाल
Q1: अरावली की नई परिभाषा क्या है? Ans: नई परिभाषा के अनुसार, स्थानीय धरातल से 100 मीटर ऊंची भू-आकृतियों को पहाड़ी माना जाएगा और 500 मीटर के दायरे में आने वाली पहाड़ियों को एक श्रृंखला मानकर संरक्षित किया जाएगा।
Q2: क्या अरावली में अब खनन की छूट मिल गई है? Ans: नहीं, केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि नए खनन पट्टों पर रोक लगा दी गई है। केवल 0.19% क्षेत्र में ही कानूनी खनन चल रहा है, वह भी सख्त नियमों के साथ।
Q3: सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया है? Ans: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक व्यापक प्रबंधन योजना नहीं बन जाती, तब तक कोई नया पट्टा जारी नहीं होगा। साथ ही, 90% अरावली को ‘संरक्षित क्षेत्र’ के रूप में मान्यता दी गई है।
Q4: अरावली किन राज्यों में फैली है? Ans: अरावली पर्वत श्रृंखला चार राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैली है: गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली।
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