
Friday, 19 December 2025, 04:30:00 PM. Agra, Uttar Pradesh
आगरा। उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने और सुरक्षित रक्तदान (Safe Blood Donation) की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में ताजनगरी के ऐतिहासिक सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज (S.N. Medical College) ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कॉलेज के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग (रक्तदान केंद्र) द्वारा आयोजित परामर्शदाताओं (Counselors) के लिए तीन दिवसीय विशेष प्रशिक्षण कार्यशाला का शुक्रवार को सफलतापूर्वक समापन हुआ।

इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आए विशेषज्ञों ने भाग लिया और आधुनिक चिकित्सा जगत में ‘ब्लड काउंसलिंग’ (Blood Counseling) के महत्व पर विस्तृत चर्चा की। यह कार्यशाला न केवल तकनीकी कौशल बढ़ाने पर केंद्रित थी, बल्कि इसका उद्देश्य रक्तदाताओं के बीच एक विश्वास और सुरक्षा का वातावरण तैयार करना भी था।
आइए, इस विस्तृत रिपोर्ट के माध्यम से जानते हैं कि इस कार्यशाला में किन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई, भविष्य के लिए क्या रोडमैप तैयार किया गया और कैसे यह प्रशिक्षण प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए ‘मील का पत्थर’ साबित होगा।
कार्यशाला का उद्देश्य: सुरक्षित रक्त, सुरक्षित जीवन
भारत जैसे विशाल देश में जहाँ हर कुछ सेकंड में किसी न किसी को रक्त की आवश्यकता होती है, वहां ‘रक्त सुरक्षा’ (Blood Safety) सबसे बड़ी चुनौती है। केवल रक्त एकत्र करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी अनिवार्य है कि एकत्रित रक्त पूरी तरह से संक्रमण मुक्त हो और रक्तदाता को भी रक्तदान के दौरान या बाद में कोई समस्या न हो।
यही वह बिंदु है जहाँ एक परामर्शदाता (Counselor) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। परामर्शदाता ही वह कड़ी है जो रक्तदाता की शारीरिक और मानसिक स्थिति का आकलन करता है और उसे सुरक्षित रक्तदान के लिए प्रेरित करता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए एस.एन. मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता के मार्गदर्शन में इस प्रशिक्षण शिविर की रूपरेखा तैयार की गई थी।
प्रतिभागिता: पूरे प्रदेश का प्रतिनिधित्व
इस कार्यशाला की सबसे बड़ी विशेषता इसकी व्यापकता रही। इसमें केवल आगरा ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आए कुल 30 परामर्शदाताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इन प्रतिभागियों में सरकारी और निजी रक्तदान केंद्रों के अनुभवी काउंसलर शामिल थे, जिन्हें तीन दिनों तक गहन तकनीकी और व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
विशेषज्ञ सत्र: बारीकियों पर विस्तृत चर्चा
कार्यशाला के दौरान विभिन्न सत्रों में ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन (Transfusion Medicine) के कई दिग्गजों ने अपने अनुभव साझा किए।
1. डॉ. नीतू चौहान (विभागाध्यक्ष, रक्तदान केंद्र): रक्तदान के पूर्व और पश्चात का परामर्श
डॉ. नीतू चौहान ने इस बात पर जोर दिया कि एक सफल रक्तदान कार्यक्रम केवल दान किए गए रक्त की मात्रा से नहीं, बल्कि रक्तदाता की संतुष्टि से आंका जाता है। उन्होंने बताया:
- प्री-डोनेशन काउंसलिंग: रक्तदान से पहले डोनर की मेडिकल हिस्ट्री लेना और उसे प्रक्रिया के बारे में समझाना ताकि उसके मन का डर दूर हो सके।
- पोस्ट-डोनेशन केयर: रक्तदान के बाद डोनर को क्या आहार लेना चाहिए, कितनी देर आराम करना चाहिए और किन सावधानियों को बरतना चाहिए, इसकी सूक्ष्म जानकारी उन्होंने दी।
2. डॉ. आरती अग्रवाल एवं प्रज्ञा शाक्य: तकनीकी सुरक्षा के मानक
रक्तदान केंद्र एक संवेदनशील स्थान होता है जहाँ संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। इस सत्र में मुख्य रूप से दो विषयों पर ध्यान दिया गया:
- ब्लड बैंक में बायोसेफ्टी (Biosafety): व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (PPE), दस्तानों का सही उपयोग और प्रयोगशाला के भीतर सुरक्षा प्रोटोकॉल।
- बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट (BMWM): इस्तेमाल की गई सुइयों, रक्त के बैग्स और अन्य कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान कैसे किया जाए, ताकि पर्यावरण और अस्पताल के कर्मचारियों को कोई नुकसान न हो।
3. गरिमा सिंह: संक्रमित रक्तदाताओं की काउंसलिंग और ‘रेफरल’
यह सत्र सबसे चुनौतीपूर्ण और संवेदनशील रहा। कई बार रक्तदान के बाद जांच में पता चलता है कि डोनर किसी संक्रमण (जैसे HIV, Hepatitis B या C) से ग्रसित है।
- गरिमा सिंह ने सिखाया कि ऐसे डोनर्स को मानसिक रूप से कैसे संभाला जाए।
- उन्हें कैसे समझाया जाए कि रक्तदान के कारण वे बीमार नहीं हुए हैं, बल्कि जांच के माध्यम से उन्हें उनकी बीमारी का पता चला है।
- उन्हें आगे के उपचार के लिए सही अस्पताल या सेंटर पर ‘रेफर’ करने की प्रक्रिया क्या होनी चाहिए।
4. सौम्या चाहर: रक्त सुरक्षा के मानक (Blood Safety Standards)
सौम्या चाहर ने रक्त सुरक्षा के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि डोनर के चयन से लेकर रक्त के भंडारण (Storage) और परिवहन (Transport) तक हर कदम पर गुणवत्ता बनाए रखना क्यों जरूरी है।
कार्यशाला का संचालन और समापन समारोह
तीन दिनों तक चले इस ज्ञानवर्धक सत्र का कुशल संचालन काव्या सिंघल द्वारा किया गया। कार्यशाला के अंतिम दिन समापन समारोह आयोजित हुआ, जिसमें सभी प्रतिभागियों की ऊर्जा और उत्साह देखने लायक था।
एस.एन. मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने सभी 30 प्रतिभागियों को ‘प्रशस्ति पत्र’ (Certificates) वितरित किए। अपने समापन भाषण में उन्होंने एक बहुत ही मार्मिक अपील की।
प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने कहा:
“परामर्शदाता केवल एक कर्मचारी नहीं, बल्कि समाज और अस्पताल के बीच का सेतु है। आपकी एक अच्छी बातचीत किसी को नियमित रक्तदाता बना सकती है और आपकी एक लापरवाही किसी को डरा सकती है। हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम सामूहिक प्रयासों से रक्तदान के महत्व को जन-जन तक पहुँचाएँ। जब तक समाज का हर स्वस्थ व्यक्ति स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आगे नहीं आएगा, तब तक हम ‘रक्त की कमी’ जैसी समस्या को जड़ से खत्म नहीं कर पाएंगे।”
उपस्थित गणमान्य चिकित्सक एवं सहयोगी
इस अवसर पर एस.एन. मेडिकल कॉलेज के कई वरिष्ठ चिकित्सक और विभाग के सदस्य उपस्थित रहे, जिन्होंने इस कार्यशाला को सफल बनाने में अपना योगदान दिया:
- डॉ. राजेश गुप्ता
- डॉ. अजीत सिंह चाहर
- डॉ. यतेंद्र मोहन
- डॉ. आरती अग्रवाल
- विभाग के अन्य सहयोगी: प्रमोद, अरुण और प्रशांत सहित अन्य काउंसलर और तकनीकी स्टाफ।
समाज पर प्रभाव: क्यों महत्वपूर्ण है यह प्रशिक्षण?
अक्सर देखा जाता है कि लोग रक्तदान करना चाहते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव या डर के कारण पीछे हट जाते हैं। एक प्रशिक्षित काउंसलर इन भ्रांतियों को दूर करने में सक्षम होता है।
- स्वैच्छिक रक्तदान में वृद्धि: जब काउंसलर सही तरीके से बात करता है, तो डोनर को महसूस होता है कि उसकी जान कीमती है, जिससे वह बार-बार रक्तदान के लिए प्रेरित होता है।
- संक्रमण दर में कमी: सही काउंसलिंग से उन लोगों को पहले ही पहचाना जा सकता है जो ‘हाई रिस्क’ श्रेणी में आते हैं, जिससे दूषित रक्त मिलने की संभावना कम हो जाती है।
- मानसिक स्वास्थ्य: संक्रमित पाए गए डोनर्स को समाज की मुख्यधारा से जोड़े रखने और उन्हें अवसाद (Depression) से बचाने में इन काउंसलर्स की भूमिका अद्वितीय है।
आगरा बना प्रशिक्षण का केंद्र
आगरा का एस.एन. मेडिकल कॉलेज न केवल मरीजों के इलाज के लिए जाना जाता है, बल्कि चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी यह अपनी धाक जमा रहा है। इस तीन दिवसीय कार्यशाला के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में उत्तर प्रदेश के हर जिले में बेहतर और अधिक सुरक्षित रक्त सेवाएं उपलब्ध होंगी। प्रशिक्षित 30 परामर्शदाता अब अपने-अपने जनपदों में जाकर इस ज्ञान को साझा करेंगे, जिससे हजारों लोगों को लाभ होगा।
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