10 अप्रैल, 2025, आगरा
हाल ही में समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा राज्यसभा में वीर योद्धा महाराणा संग्राम सिंह, जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, को लेकर दिए गए एक विवादित बयान ने देशभर में हंगामा खड़ा कर दिया है। इस बयान के जवाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र के सांसद राजकुमार चाहर ने एक बड़ा कदम उठाते हुए घोषणा की है कि वह 12 अप्रैल को खानवा के ऐतिहासिक मैदान पर राणा सांगा की जयंती मनाएंगे। यह आयोजन न केवल एक श्रद्धांजलि होगा, बल्कि हिंदू स्वाभिमान और वीरता के प्रतीक के रूप में भी देखा जा रहा है। सांसद चाहर अपने समर्थकों और हिंदूवादी संगठनों के साथ इस दिन खानवा के मैदान पर पहुंचेंगे, जहां राणा सांगा की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। आइए, इस आयोजन और इसके पीछे के ऐतिहासिक व राजनीतिक संदर्भ को विस्तार से समझते हैं।
विवाद की शुरुआत: सपा सांसद का बयान
इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई, जब सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने राज्यसभा में एक बहस के दौरान राणा सांगा के बारे में कुछ ऐसी टिप्पणियां कीं, जिन्हें भाजपा और हिंदू संगठनों ने अपमानजनक माना। हालांकि सुमन के बयान का सटीक विवरण अभी सार्वजनिक रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन यह कहा जा रहा है कि उन्होंने राणा सांगा की वीरता और उनके योगदान को कमतर आंकने की कोशिश की। इस बयान ने सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक एक तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया। भाजपा नेताओं और हिंदूवादी संगठनों ने इसे हिंदू गौरव पर हमला करार देते हुए सुमन की माफी की मांग की। इसी बीच, सांसद राजकुमार चाहर ने इस विवाद को एक सकारात्मक दिशा देने का फैसला किया और राणा सांगा की जयंती को भव्य तरीके से मनाने की घोषणा की।
खानवा का मैदान: राणा सांगा की वीरता का गवाह
खानवा का मैदान, जो फतेहपुर सीकरी के पास स्थित है, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह वही जगह है, जहां 17 मार्च, 1527 को राणा सांगा ने मुगल शासक बाबर के खिलाफ ऐतिहासिक खानवा का युद्ध लड़ा था। राणा सांगा, जो मेवाड़ के शक्तिशाली राजपूत शासक थे, ने इस युद्ध में अपनी वीरता और नेतृत्व का परिचय दिया। हालांकि, वह इस युद्ध में हार गए और बाबर ने अपनी स्थिति मजबूत की, लेकिन राणा सांगा की बहादुरी और उनके बलिदान ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया। खानवा का मैदान आज भी उनकी शौर्य गाथा का प्रतीक है, और सांसद चाहर का इस स्थान को चुनना इस ऐतिहासिक महत्व को फिर से जीवंत करने की कोशिश है।
राणा सांगा ने अपने जीवन में 100 से अधिक युद्ध लड़े और कहा जाता है कि वह कभी भी युद्ध के मैदान से पीठ नहीं दिखाकर भागे। उनके शरीर पर 80 से ज्यादा जख्मों के निशान थे, जिसमें एक आंख, एक हाथ और एक पैर की चोटें भी शामिल थीं। फिर भी, उन्होंने हिंदू राज्य की रक्षा के लिए मुगलों से लगातार संघर्ष किया। खानवा का युद्ध उनकी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था, और यह आयोजन उसी वीरता को सम्मान देने का प्रयास है।
आयोजन की योजना: कुलदेवी से खानवा तक का सफर
सांसद राजकुमार चाहर ने इस आयोजन की विस्तृत योजना अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा की है। 12 अप्रैल को सुबह 9 बजे वह अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र के ब्लॉक कोरई के गांव सांथा में स्थित कुलदेवी माता मंदिर पहुंचेंगे। वहां वह मां कुलदेवी के दर्शन करेंगे और विधि-विधान के साथ हवन-पूजन करेंगे। यह धार्मिक अनुष्ठान न केवल उनके व्यक्तिगत आस्था का हिस्सा है, बल्कि इस आयोजन को एक पवित्र शुरुआत देने का भी प्रतीक है।

इसके बाद, सांसद चाहर अपने गाड़ियों के काफिले के साथ सुबह 11 बजे खानवा के मैदान के लिए रवाना होंगे। खानवा पहुंचकर वह वहां स्थापित राणा सांगा की प्रतिमा पर दुग्धाभिषेक और गंगाजल अभिषेक करेंगे। यह अनुष्ठान राणा सांगा के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक होगा। इसके बाद, वह अपने समर्थकों के साथ राणा सांगा को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे और उनके योगदान को याद करेंगे। इस आयोजन में बड़ी संख्या में हिंदूवादी संगठनों और स्थानीय लोगों के शामिल होने की उम्मीद है।
सांसद चाहर का बयान: हिंदू स्वाभिमान की रक्षा
सांसद राजकुमार चाहर ने इस आयोजन की घोषणा करते हुए कहा, “महाराणा संग्राम सिंह देश के बहादुर योद्धा थे, जिन्होंने मुगलों से अनेकों युद्ध लड़े और सब में जीत हासिल की। अक्रांता और लुटेरे बाबर से शूरवीर योद्धा युद्ध लड़ने का काम किया। ऐसे वीर योद्धाओं की वजह से ही हिंदू स्वाभिमान से जी रहा है।” उन्होंने आगे कहा कि राणा सांगा जैसे नायकों को अपमानित करने की कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी और यह आयोजन उनकी वीरता को सम्मान देने का एक प्रयास है।
चाहर ने यह भी जोड़ा कि राणा सांगा का जीवन हिंदू समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपने शासनकाल में न केवल मेवाड़ को मजबूत किया, बल्कि विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ एकजुटता का परिचय भी दिया। सांसद का मानना है कि इस तरह के आयोजन से नई पीढ़ी को अपने इतिहास और वीरों के बलिदान के बारे में जागरूक किया जा सकता है।
राजनीतिक संदर्भ: भाजपा की रणनीति
इस आयोजन को केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसके पीछे एक स्पष्ट राजनीतिक संदर्भ भी है। सपा सांसद के बयान ने भाजपा को एक मौका दिया है, जिसके जरिए वह हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने और अपनी छवि को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। राजकुमार चाहर, जो भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, इस आयोजन के जरिए ग्रामीण और हिंदूवादी मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करना चाहते हैं।
फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। राणा सांगा की जयंती का आयोजन इस क्षेत्र में पार्टी की स्थिति को और सुदृढ़ कर सकता है। साथ ही, यह सपा पर हमला करने का एक मौका भी देता है, जिसे भाजपा अक्सर “तुष्टिकरण की राजनीति” करने का आरोप लगाती रही है।
राणा सांगा का ऐतिहासिक महत्व
राणा सांगा, जिनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था, 1482 में पैदा हुए और 1528 में उनकी मृत्यु हुई। वह मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक थे और अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजपूत राजाओं में से एक माने जाते थे। उन्होंने अपने शासनकाल में कई युद्ध लड़े, जिनमें से अधिकांश में उन्हें जीत मिली। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी एक विशाल राजपूत गठबंधन को एकजुट करना, जिसमें मालवा, गुजरात और दिल्ली के कई शासक शामिल थे, ताकि मुगल शासक बाबर का मुकाबला किया जा सके।
हालांकि खानवा के युद्ध में उनकी हार हुई, लेकिन उनकी वीरता और साहस ने उन्हें इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया। राणा सांगा की मृत्यु भी युद्ध के बाद की चोटों और संदिग्ध परिस्थितियों में हुई, जिसके बारे में कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह उनके अपने कुछ विश्वासघाती सहयोगियों की साजिश थी। उनकी कहानी न केवल वीरता की है, बल्कि एकता और बलिदान की भी है।
निष्कर्ष: एक प्रतीकात्मक कदम
सांसद राजकुमार चाहर द्वारा खानवा के मैदान पर राणा सांगा की जयंती मनाने की घोषणा एक प्रतीकात्मक और शक्तिशाली कदम है। यह आयोजन न केवल राणा सांगा की वीरता को सम्मान देगा, बल्कि हिंदू स्वाभिमान और इतिहास के प्रति जागरूकता को भी बढ़ावा देगा। साथ ही, यह भाजपा के लिए एक राजनीतिक अवसर भी है, जिसके जरिए वह अपने समर्थकों को एकजुट कर सकती है। 12 अप्रैल को खानवा का मैदान एक बार फिर इतिहास को जीवंत करेगा, जब सैकड़ों लोग इस वीर योद्धा को याद करने के लिए एकत्र होंगे।