ट्रंप का टैरिफ युद्ध और अंदर-बाहर बैसाखियों पर टिकी मोदी सरकार!

संजय पराते

ट्रंप के साथ यारी के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितनी ही शेखी क्यों न मार लें, भारत के साथ ट्रंप का टैरिफ युद्ध ही हकीकत है। यारी-दोस्ती के किस्से फ़साने हो चुके हैं। यह युद्ध कितना मारक है, इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारतीय बाजार में उथल-पुथल शुरू हो चुकी है और टैरिफ लादने के पहले ही दिन सेंसेक्स 849 अंक लुढ़क गया है और निवेशकों को 5.41 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है और बीएसई में सूचीबद्ध सभी कंपनियों का पूंजीकरण घटकर 449.45 लाख करोड़ रह गया है। इसका सबसे बड़ा असर कपड़ा कारखानों पर पड़ने जा रहा है, जिन्होंने या तो अपने कारखाने बंद करने की घोषणा कर दी है या फिर अपने उत्पादन को अचानक कम कर दिया है और जिसके कारण हजारों मजदूर सड़क पर आ गए हैं। अभी तो यह शुरूआत है, भविष्य में बेरोजगार कपड़ा मजदूरों की संख्या लाखों तक जाने वाली है।

प्रारंभिक अनुमान के ही अनुसार, ट्रंप के टैरिफ से भारत के निर्यात को 48 अरब डॉलर का नुकसान होने जा रहा है। वित्त वर्ष 2024 में अमेरिका को भारतीय निर्यात 77.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। इसका अर्थ है कि अब अमेरिका को भारतीय निर्यात 62% कम होने जा रहा है और भारत-अमेरिका व्यापार के बीच संतुलन अमेरिका के पक्ष में खिसक जाएगा। भारत से अमेरिका निर्यात होने वाली वस्तुओं की सूची में झींगा मछली, ऑर्गेनिक केमिकल्स, कपड़ा, हीरे और सोने के जेवरात, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी, चमड़ा और चप्पलें, फर्नीचर और बेड जैसी वस्तुएं शामिल हैं। कल से ही इन पर 50 प्रतिशत से ज्यादा टैरिफ लगना शुरू हो गया है। मसलन, अब झींगा के निर्यात पर 60%, कार्पेट पर 53%, कपड़ों पर 59%, हीरे और सोने के आइटम्स पर 52% टैरिफ लग रहा है। इतने ज्यादा टैरिफ का अर्थ है कि अब अमेरिकी बाजार में भारत की वस्तुएं अत्यधिक महंगी हो जाएगी और उनकी मांग घट जाएगी। अमेरिकी बाजार में भारतीय वस्तुओं की मांग घटने का अर्थ है, भारत में इन वस्तुओं के उत्पादन में लगे कारखानों का बंद होना और यहां पहले से ही मौजूद भारी बेरोजगारी में और ज्यादा इजाफा होना, जिसका अर्थ है खास तौर पर इन उद्योगों में लगे मजदूरों और आम तौर से, भारतीय जनता की क्रय शक्ति में भारी गिरावट आना और फिर से अर्थव्यवस्था का मंदी में फंसना।

इस टैरिफ युद्ध के दुष्परिणामों से बचने के लिए, सिवा बतकही के, मोदी सरकार के पास कुछ नहीं है। इसने एक बार फिर ‘स्वदेशी अपनाने’ का घिसा-पिटा नारा दिया है। ‘घिसा-पिटा’ इसलिए कि यह हमारे देश को मंदी की समस्या से बाहर नहीं निकाल सकता। ‘मेड इन इंडिया’ को पहले ही ‘मेक इन इंडिया’ से विस्थापित करके स्वदेशी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। उदारीकरण के मंत्र पर चलने वाली मोदी सरकार ने जिस तरह देश की अर्थव्यवस्था के दरवाजे विदेशी पूंजी के लिए खोले हैं, उसके कारण उत्पादन की प्रत्येक इकाई पर लगने वाली प्रत्येक इकाई लागत में विदेशी पूंजी का अंश घुसा हुआ है, जो माल बेचकर मुनाफा बटोरने में ही लगी हुई है। इस विदेशी पूंजी के कारण अब कुछ भी स्वदेशी नहीं बचा है। हमारे देश में जिन वस्तुओं के नाम हम स्वदेशी देखते हैं, उसमें भी विदेशी पूंजी घुसी हुई है।

दूसरी बात। इस सरकार ने कॉरपोरेट लूट की जिन नीतियों को बढ़ावा दिया है, उसके कारण आम जनता की क्रय शक्ति में भारी गिरावट आई है। अब उसके लिए स्वदेशी आकर्षक नहीं है, क्योंकि यह महंगा है और विदेशी माल सस्ता। अपनी कम क्रय शक्ति के कारण वह सस्ती विदेशी वस्तुएं खरीदने के लिए बाध्य हैं और स्वदेशी के नारे पर पेट-पूजा का गणित भारी है। कल से देखिएगा, कितने संघी-भाजपाई नेता स्वदेशी से लदे नजर आते हैं! फिर आम जनता को क्या कहेंगे?

वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान बढ़कर भारत ने पूरी दुनिया को लगभग 821 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था। अमेरिकी टैरिफ के कारण इस निर्यात में सीधे सीधे 6% की कमी आने जा रही है, यदि अमेरिकी प्रतिबंध का असर भारत के अन्य देशों के निर्यातों पर न पड़े तो। लेकिन यह आशावादी आंकलन है, जिसका गलत होना इसलिए मुमकिन है कि ट्रंप यह युद्ध पूरी दुनिया के खिलाफ लड़ रहा है, जिसके कारण पूरी दुनिया आर्थिक मंदी के एक नए दौर में प्रवेश कर जाएगी और अन्य देशों को भी भारत से निर्यात प्रभावित होगा।

एक ओर सरकार यह थोथी घोषणा कर रही है कि ट्रंप के टैरिफ हमले से भारतीय किसानों के हितों की रक्षा की जाएगी, वहीं दूसरी ओर उसने कपास पर लगा 11% आयात शुल्क घटा दिया है। साफ तौर पर यह फैसला अमेरिका के दबाव में लिया गया है और इससे भारतीय बाजार न केवल विदेशी कपास से पट जायेंगे, कपास की कीमतों में और गिरावट आएगी। भारतीय किसान पहले से ही लाभकारी समर्थन मूल्य से वंचित हैं और कपास उत्पादक किसानों को सी-2 आधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से प्रति क्विंटल 2365 रुपए घाटा उठाना पड़ रहा है। कपास के आयात शुल्क में कमी करने के फैसले के बाद से कपास की कीमतों में 1100 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। यह गिरावट कपास किसानों की कमर तोड़ देगी और उन्हें आत्महत्या करने के लिए बाध्य करेगी। इस मामले से पता चलता है कि जैसे-जैसे ट्रंप भारत की बांह मरोड़ रहा है, वैसे-वैसे मोदी सरकार घुटने टेक रही है और उसका रवैया किसानों के लिए आश्वस्तिदायक नहीं है।

इस वर्ष दशहरा-दिवाली में चीनी झालरों के बहिष्कार का संघी गिरोह का नारा शायद ही सुनाई दे। ट्रंप के टैरिफ हमले से बचने के लिए मोदी ने फिर से चीनी राष्ट्रपति के साथ झूला झूलना तय किया है। सस्ते पेट्रोल के कारण रूस को वह छोड़ नहीं सकता। भारत की विदेश नीति का मोदी सरकार ने जिस प्रकार हिंदुत्वीकरण किया है, उसके पास इस संकट से निकलने का और कोई रास्ता बचा नहीं है। अब वह देश के बाहर दो बैसाखियों पर चलेगी : रूस और चीन, ठीक उसी प्रकार जैसे देश के अंदर दो बैसाखियों पर टिकी है : चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार। संघी गिरोह के छद्म राष्ट्रवाद का यही हश्र होना था!!

(लेखक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)

Thakur Pawan Singh

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