
वॉशिंगटन डीसी/नई दिल्ली, शुक्रवार, 5 सितम्बर 2025, शाम 5:45 बजे IST
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर वैश्विक राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। शुक्रवार को ट्रुथ सोशल पर उन्होंने एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने लिखा, “ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है। उम्मीद है उनका भविष्य अच्छा होगा।” इस बयान के साथ उन्होंने एक पुरानी तस्वीर भी साझा की, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक साथ दिखाई दे रहे हैं। यह तस्वीर सितंबर 2017 में चीन के शियामेन में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन की है। ट्रम्प का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव अपने चरम पर है और वैश्विक मंच पर नए समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं।
ट्रम्प के इस बयान पर भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। लेकिन यह स्पष्ट है कि ट्रम्प की यह टिप्पणी केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत है — कि अमेरिका अब भारत को अपने पारंपरिक सहयोगी के रूप में नहीं देख रहा, बल्कि उसे चीन और रूस के साथ खड़ा मान रहा है।
इस बयान की पृष्ठभूमि में सबसे बड़ा मुद्दा है — भारत पर लगाए गए टैरिफ। ट्रम्प प्रशासन ने जुलाई और अगस्त 2025 में दो चरणों में भारत पर कुल 50% टैरिफ लगाया। पहला 25% शुल्क 7 अगस्त को लागू हुआ, और दूसरा 25% एक्स्ट्रा टैरिफ 27 अगस्त से — जो भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने को लेकर लगाया गया था। ट्रम्प का तर्क था कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर खुले बाजार में बेच रहा है, जिससे पुतिन को यूक्रेन युद्ध जारी रखने में मदद मिल रही है। उन्होंने कहा कि यह टैरिफ रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए आवश्यक है।
भारत ने इन टैरिफ को “अनुचित, अन्यायपूर्ण और असंगत” बताया है। भारतीय निर्यातकों पर इसका सीधा असर पड़ा है — खासकर टेक्सटाइल, फार्मा, ऑटो पार्ट्स और कृषि उत्पादों पर। अमेरिका को भेजे जाने वाले भारत के 55% से अधिक सामान पर इसका प्रभाव पड़ा है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ा है और रणनीतिक साझेदारी पर भी असर पड़ा है।
4 सितम्बर को ट्रम्प ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जिसमें उन्होंने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति को विदेशी सामान पर भारी टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं है। निचली अदालत ने 7-4 के फैसले में कहा था कि 1977 का इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) ट्रम्प को इतने बड़े टैरिफ लगाने की इजाजत नहीं देता। अपील कोर्ट ने ट्रम्प के टैरिफ को “गैरकानूनी” बताया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अपील की अनुमति दी गई है। छोटे कारोबारियों के वकील जेफ्री श्वाब ने कहा कि ट्रम्प के टैरिफ छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुँचा रहे हैं और वे जल्द फैसले की उम्मीद कर रहे हैं।
3 सितम्बर को एक रेडियो शो में ट्रम्प ने कहा कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश ऊंचे टैरिफ लगाकर अमेरिका को “मार” रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि भारत ने उन्हें “जीरो टैरिफ” का ऑफर दिया है — लेकिन यह ऑफर तब आया जब अमेरिका ने भारत पर टैरिफ लगा दिए थे। उन्होंने कहा, “अगर हमने टैरिफ नहीं लगाए होते, तो भारत ऐसा ऑफर कभी नहीं देता।” ट्रम्प ने टैरिफ को अमेरिका की आर्थिक ताकत के लिए जरूरी बताया और कहा कि इससे अमेरिका मजबूत होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते “बहुत अच्छे” हैं — लेकिन टैरिफ कम करने का कोई इरादा नहीं जताया।
ट्रम्प ने भारत-अमेरिका व्यापार को “एकतरफा आपदा” बताया। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका को भारी मात्रा में सामान बेचता है, लेकिन अमेरिका भारत को बहुत कम सामान बेच पाता है — और इसका कारण भारत के ऊंचे टैरिफ हैं। विश्व व्यापार संगठन के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में भारत ने अमेरिकी सामान पर औसतन 6.2% टैरिफ लगाया, जबकि अमेरिका ने भारतीय सामान पर 2.4%। ट्रम्प ने इसे “असंतुलित व्यापार” बताया और कहा कि भारत को वर्षों पहले अपने टैरिफ घटाने चाहिए थे।
2019 में ह्यूस्टन में “हाउडी मोदी” कार्यक्रम में ट्रम्प और मोदी की जोड़ी ने वैश्विक मंच पर एकता का प्रदर्शन किया था। लेकिन 2025 में यह संबंध तनावपूर्ण हो गया। फरवरी में मोदी की वाशिंगटन यात्रा के बाद से ही दोनों नेताओं के बीच संवाद में खटास आने लगी। जून में “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद ट्रम्प ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को कम किया — और इसके लिए उन्होंने मोदी से सार्वजनिक समर्थन मांगा। मोदी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, जिससे ट्रम्प नाराज हो गए। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प अब भारत को “व्यक्तिगत संबंध” की बजाय “व्यापारिक सौदे” के नजरिए से देख रहे हैं।
ट्रम्प के बयान में चीन को “दीपेस्ट, डार्केस्ट” कहकर संबोधित किया गया। उन्होंने कहा कि भारत और रूस अब चीन के पाले में जा चुके हैं — और यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय है। पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने कहा कि ट्रम्प की नीतियों ने भारत को चीन और रूस के करीब ला दिया है। उन्होंने इसे “अनजाने में की गई गलती” बताया और कहा कि यह अमेरिका की दो दशकों की रणनीति को नुकसान पहुँचा सकता है।
भारत ने बार-बार कहा है कि वह रूस से तेल खरीदता है क्योंकि यह राष्ट्रीय हित में है। भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसने किसी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया है। भारत की विदेश नीति “बहुपक्षीय संतुलन” पर आधारित रही है — जहाँ वह अमेरिका, रूस और चीन तीनों के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश करता है। लेकिन ट्रम्प के टैरिफ और बयानबाज़ी ने इस संतुलन को चुनौती दी है।
ट्रम्प का बयान — “हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया” — केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक संकेत है कि वैश्विक राजनीति में नई ध्रुवीयता बन रही है। अमेरिका, जो भारत को चीन के खिलाफ एक रणनीतिक साझेदार मानता था, अब उसे खोता हुआ देख रहा है। भारत के लिए यह समय है — अपनी विदेश नीति को और स्पष्ट करने का। क्या वह अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के बावजूद रणनीतिक साझेदारी बनाए रखेगा? या रूस और चीन के साथ मिलकर एक नया एशियाई ध्रुव बनाएगा? यह सवाल आने वाले महीनों में वैश्विक मंच पर सबसे अहम होगा।