
Wednesday, 27 August 2025, 5:35:21 PM. Agra, Uttar Pradesh
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और दुनिया भर के प्रवासी कर्मचारियों को लेकर एक और बड़ा फैसला कर लिया है। भारत से आने वाले सामान पर भारी टैरिफ लगाने के बाद अब ट्रंप प्रशासन ने वीजा और ग्रीन कार्ड की प्रक्रिया को लेकर सख्ती का ऐलान कर दिया है। इस फैसले का सीधा असर भारतीय कर्मचारियों, छात्रों और छोटे व्यवसायों पर पड़ने वाला है।
टैरिफ से शुरू हुआ विवाद, अब वीजा पर भी सख्ती
भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 50 प्रतिशत तक का टैक्स बढ़ाने का असर पहले से ही व्यापारिक संबंधों में तनाव पैदा कर चुका है। कई भारतीय उद्योगपति और निर्यातक इस फैसले से परेशान हैं। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन ने अगला वार भारतीय पेशेवरों और छात्रों पर किया है।
द इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में H-1B वीजा और ग्रीन कार्ड की प्रक्रिया में बड़े बदलाव की तैयारी है। गौरतलब है कि H-1B वीजा का सबसे बड़ा हिस्सा भारतीय कर्मचारियों को मिलता है। लगभग 70 प्रतिशत वीजा भारतीयों के पास जाते हैं। ऐसे में नियम बदलने का असर सबसे अधिक भारत पर होगा।
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री का बयान: वीजा सिस्टम में है धोखाधड़ी
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने वीजा सिस्टम को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने साफ कहा कि मौजूदा व्यवस्था अमेरिकी नागरिकों के साथ अन्याय करती है। उनके मुताबिक, वीजा सिस्टम की वजह से कम वेतन वाले विदेशी कर्मचारी अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां छीन लेते हैं।
लुटनिक का कहना है कि भविष्य में नौकरी का पहला अधिकार अमेरिकी नागरिकों को ही दिया जाएगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वीजा उन्हीं लोगों को मिलना चाहिए जो योग्य हों और जिनकी कमाई अमेरिकी मानकों के हिसाब से अधिक हो।
लॉटरी सिस्टम खत्म, वेतन आधारित वीजा
अब तक अमेरिका में H-1B वीजा के लिए लॉटरी सिस्टम लागू था। हर साल 85,000 वीजा जारी किए जाते थे और कंपनियों के कर्मचारी इस लॉटरी प्रक्रिया से चुने जाते थे। लेकिन अब इसे खत्म करने की तैयारी है।
नए नियम के तहत वीजा देने की प्राथमिकता वेतन के आधार पर तय होगी। यानी जो कर्मचारी ज्यादा सैलरी लेता है, उसे पहले मौका मिलेगा। इससे नई नौकरी शुरू करने वाले या छोटे व्यवसायों में काम करने वाले प्रवासी कर्मचारियों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।
छोटे व्यवसायों और नए स्नातकों पर संकट
इस बदलाव का सीधा असर उन भारतीय छात्रों और स्नातकों पर होगा जो कम वेतन पर अपनी करियर की शुरुआत करते हैं। छोटे स्टार्टअप्स और कंपनियों के लिए भी यह झटका होगा क्योंकि वे बड़ी कंपनियों जैसी ऊँची सैलरी नहीं दे सकते।
यह नियम पहले भी 2021 में प्रस्तावित किया गया था, लेकिन उस समय बाइडेन प्रशासन ने इसे रोक दिया था। अब ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद यह फिर से एजेंडे में आ गया है।
ट्रंप सरकार का नया प्लान: गोल्ड कार्ड
H-1B और ग्रीन कार्ड प्रक्रिया में सख्ती के साथ ही ट्रंप प्रशासन “गोल्ड कार्ड” नाम से नई योजना लाने जा रहा है। इस योजना के तहत केवल मेधावी और ज्यादा वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अमेरिका में प्राथमिकता दी जाएगी।
इस गोल्ड कार्ड को ग्रीन कार्ड का ही नया रूप माना जा रहा है, लेकिन इसमें कई पाबंदियां होंगी। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने साफ कहा कि ग्रीन कार्ड का मतलब स्थायी नागरिकता नहीं है। इससे यह संकेत मिलता है कि भविष्य में अमेरिका में रहना और भी कठिन हो जाएगा।
भारतीयों पर सबसे बड़ा असर
हर साल अमेरिका में मिलने वाले H-1B वीजा का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा भारतीयों के पास जाता है। आईटी कंपनियों और तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाले भारतीय कर्मचारियों के लिए यह वीजा बेहद अहम है। लेकिन नए नियमों के बाद हजारों भारतीय छात्रों और नौकरीपेशा लोगों का सपना टूट सकता है।
इसके अलावा अब वीजा आवेदन प्रक्रिया और भी जटिल कर दी जाएगी। आवेदन करने वालों को बायोमेट्रिक जानकारी, आवास का पूरा विवरण और अन्य व्यक्तिगत दस्तावेज देने होंगे। कड़ी जांच और बढ़ी हुई कागजी कार्रवाई से वीजा मिलना पहले से कहीं कठिन हो जाएगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था और सपनों पर असर
इन नीतिगत बदलावों से सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ सकता है। भारत से अमेरिका जाने वाले पेशेवर देश में विदेशी मुद्रा का बड़ा स्रोत हैं। उनके वहां जाने और कमाने से भारत को रेमिटेंस के रूप में अरबों डॉलर की आय होती है।
यदि भारतीय कर्मचारियों के लिए अमेरिका का रास्ता कठिन बना दिया गया, तो इससे भारत की आईटी इंडस्ट्री और शिक्षा जगत पर भी गहरा असर पड़ेगा। छात्र अब वैकल्पिक देशों की ओर रुख कर सकते हैं, जबकि कंपनियों को नए बाजार तलाशने होंगे।
कड़ा संदेश या राजनीतिक चाल?
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक रणनीति भी है। 2024 के चुनावों में उन्होंने “अमेरिका फर्स्ट” का नारा बुलंद किया था और अब वे इसे लागू करने में जुटे हैं।
हालांकि, इसका नुकसान अमेरिकी कंपनियों को भी हो सकता है। बड़ी टेक कंपनियां जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़न लंबे समय से भारतीय टैलेंट पर निर्भर रही हैं। अगर उन्हें योग्य कर्मचारी आसानी से नहीं मिलेंगे तो अमेरिकी टेक सेक्टर पर भी इसका असर पड़ सकता है।ट्रंप प्रशासन का यह फैसला आने वाले समय में भारत-अमेरिका संबंधों की परीक्षा लेगा। एक ओर भारतीय छात्र और पेशेवर मुश्किलों का सामना करेंगे, वहीं अमेरिकी कंपनियां भी नई चुनौतियों से गुजरेंगी।
भारत सरकार को अब यह सोचना होगा कि वह अपने नागरिकों के हितों की रक्षा कैसे करे और किस तरह से अमेरिका के साथ संतुलन बनाए। आने वाले दिनों में यह मुद्दा वैश्विक चर्चा का केंद्र बन सकता है।