
Monday, 27 August 2025, 9:15:44 PM. Patna, Bihar
“बिहार में राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा से तेजस्वी यादव पर दबाव बढ़ा। महागठबंधन में मुख्यमंत्री चेहरा तय करने पर पेच फंसा।”
बिहार की राजनीति इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में है। विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल अभी पूरी तरह नहीं बजा है, लेकिन सियासी समीकरणों की गहमागहमी ने पहले ही चुनावी माहौल गरमा दिया है। केंद्र में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी और राज्य में उसकी संभावित रणनीतियों के बीच विपक्षी महागठबंधन की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम में राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा ने बिहार में विपक्ष की राजनीति को नया रंग दिया है। लेकिन इसके साथ ही तेजस्वी यादव के सामने चुनौती भी खड़ी हो गई है—क्या उन्हें महागठबंधन का एकमात्र मुख्यमंत्री चेहरा माना जाएगा या फिर राहुल गांधी के उभार से उनकी राह मुश्किल होगी?
राहुल गांधी की यह यात्रा 1 सितंबर को पटना में एक बड़े मार्च के साथ समाप्त होगी। इस यात्रा ने कांग्रेस और महागठबंधन के कार्यकर्ताओं में नया उत्साह भर दिया है। लेकिन दूसरी तरफ, यह सवाल भी बार-बार उठ रहा है कि क्या कांग्रेस खुलकर तेजस्वी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करेगी या फिर गठबंधन के भीतर इस मुद्दे पर खींचतान बनी रहेगी।
राहुल गांधी की यात्रा और बिहार की जमीन
राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा अपने 11वें दिन पटना पहुंची। इस यात्रा का मकसद मतदाताओं को उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस यात्रा का असली मकसद विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन और लोकसभा चुनाव 2029 की तैयारी है।
तेजस्वी यादव इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी की कार के ‘सारथी’ की भूमिका निभाते नजर आए। यह दृश्य कार्यकर्ताओं के लिए उत्साहवर्धक था, लेकिन राजनीतिक तौर पर यह एक संकेत भी था कि इस समय राहुल ही केंद्र बिंदु बने हुए हैं। वामपंथी दलों के नेता, जैसे सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य भी यात्रा में शामिल हुए, लेकिन उनका प्रभाव सीमित रहा।
यात्रा में प्रियंका गांधी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र उदयनिधि स्टालिन की मौजूदगी ने इसे राष्ट्रीय स्वरूप दिया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि राहुल गांधी केवल बिहार ही नहीं, बल्कि विपक्षी राजनीति में राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी जगह मजबूत करना चाह रहे हैं।
तेजस्वी यादव की चुनौती
तेजस्वी यादव लंबे समय से खुद को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बताते रहे हैं। आरजेडी के कार्यकर्ता भी उन्हें निर्विवाद नेता मानते हैं। लेकिन राहुल गांधी की यात्रा ने उनकी छवि को पीछे धकेल दिया है। जहां-जहां यात्रा पहुंच रही है, वहां राहुल के समर्थन में नारे गूंज रहे हैं।
तेजस्वी के लिए यह स्थिति थोड़ी असहज है। एक तरफ वे राहुल गांधी को सहयोग देकर विपक्ष की मजबूती का संदेश देना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ वे खुद को भविष्य का मुख्यमंत्री भी साबित करना चाहते हैं। यह दोहरी भूमिका उनके लिए राजनीतिक दुविधा पैदा कर रही है।
कांग्रेस की रणनीति और महागठबंधन में पेच
महागठबंधन में कांग्रेस की भूमिका अहम है। बिना कांग्रेस के समर्थन के तेजस्वी की राह आसान नहीं है। लेकिन कांग्रेस भी बिहार की राजनीति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहती है। यही कारण है कि कांग्रेस अभी तक तेजस्वी को आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने से बच रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी की लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस चाहती है कि महागठबंधन की राजनीति उनकी छवि के इर्द-गिर्द घूमे। इस रणनीति से तेजस्वी की महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लग सकता है।
वोटर लिस्ट और असली मुद्दे
इस चुनावी माहौल में एक और बड़ा विवाद उठा—वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटाए जाने का। विपक्षी नेताओं ने इसे मताधिकार हनन करार दिया। लेकिन वास्तविकता यह है कि इतने बड़े पैमाने पर नाम कटने के बावजूद आपत्ति दर्ज कराने वालों की संख्या बेहद कम रही। यह साबित करता है कि मतदाता पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया में व्यापक गड़बड़ी नहीं हुई।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वोट चोरी का मुद्दा चुनाव में निर्णायक साबित होगा? विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार के बुनियादी मुद्दों—बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाढ़ और पलायन—की तुलना में यह मुद्दा ज्यादा प्रभावी नहीं होगा। अगर तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर ही अटके रहे तो यह उनकी रणनीति को कमजोर कर सकता है।
महागठबंधन की आंतरिक राजनीति
महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई-एमएल, सीपीआई, सीपीएम और वीआईपी जैसी पार्टियां शामिल हैं। हर दल अपने-अपने हितों को साधना चाहता है। मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी इस समय राहुल गांधी की नजदीकी से खुश है, क्योंकि आरजेडी में उन्हें वह महत्व नहीं मिल पा रहा था।
वामपंथी दल भी चाहते हैं कि महागठबंधन मजबूत रहे, लेकिन वे जानते हैं कि बिना कांग्रेस और आरजेडी के उनकी हैसियत सीमित है। इसलिए वे राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
जनता की नजर में क्या है असर?
ग्रामीण इलाकों में अभी भी बेरोजगारी और पलायन सबसे बड़े मुद्दे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ। इन हालात में जनता चाहती है कि जो भी सरकार बने, वह इन मुद्दों को प्राथमिकता दे।
राहुल गांधी की यात्रा से कार्यकर्ताओं में जोश है, लेकिन आम मतदाता अब भी रोजगार और विकास जैसे मुद्दों पर ही वोट देने का मन बना रहा है।
क्या होगा आगे?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आने वाले दिनों में महागठबंधन को मुख्यमंत्री चेहरे पर स्पष्ट रणनीति अपनानी होगी। अगर कांग्रेस और आरजेडी के बीच तालमेल नहीं बैठा, तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।
फिलहाल यह साफ है कि राहुल गांधी की यात्रा ने विपक्ष की राजनीति को नई दिशा दी है। लेकिन तेजस्वी यादव के लिए यह एक चेतावनी भी है कि उन्हें अपने मुद्दों और छवि पर और मेहनत करनी होगी।
अंत में यही कहा जा सकता है कि बिहार की राजनीति इस समय एक चौराहे पर खड़ी है। राहुल गांधी विपक्ष के राष्ट्रीय चेहरा बनते दिख रहे हैं, लेकिन राज्य स्तर पर तेजस्वी यादव को अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। अगर महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद को लेकर अस्पष्टता बनी रही, तो 2025 का चुनाव उनके लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।