गोकुलपुरा की गलियों में अमर हुई ‘सारा आकाश’ की शूटिंग

Thursday, 28 August 2025, 9:57:39 AM. Agra, Uttar Pradesh

आदर्श नंदन गुप्ता

आगरा की धरती ने समय-समय पर साहित्य और कला की दुनिया को ऐसे अनमोल रत्न दिए हैं, जिन्होंने न केवल इस शहर का बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया। इनमें से एक नाम है प्रख्यात साहित्यकार राजेंद्र यादव का, जिनके पहले उपन्यास ‘सारा आकाश’ ने हिंदी साहित्य और समानांतर सिनेमा दोनों में नई दिशा दी। वर्ष 1968-69 में इस उपन्यास पर आधारित फिल्म ‘सारा आकाश’ की शूटिंग आगरा के गोकुलपुरा की तंग गलियों में हुई थी। उस दौर में गोकुलपुरा की गलियों में अचानक चहल-पहल बढ़ गई थी, क्योंकि वहां मशहूर फिल्मी कलाकारों और तकनीशियनों का जमावड़ा लगा हुआ था। स्थानीय लोग उन दिनों उत्सुकता से शूटिंग देखने आते और यह अनुभव उनके लिए अविस्मरणीय बन जाता।

‘सारा आकाश’ हिंदी सिनेमा में एक ऐसे दौर की शुरुआत करने वाली फिल्म मानी जाती है, जिसने यथार्थवादी और सामाजिक मुद्दों को बड़े परदे पर सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया। राजेंद्र यादव के उपन्यास पर बनी इस फिल्म का निर्देशन बासु चटर्जी ने किया था, जो आगे चलकर समानांतर सिनेमा के स्तंभ माने गए। इस फिल्म ने न केवल हिंदी फिल्मों की दिशा बदली बल्कि साहित्य और सिनेमा के रिश्ते को भी गहराई से जोड़ा।

फिल्म की शूटिंग गोकुलपुरा की गलियों, घरों और छतों पर हुई थी। स्थानीय लोग आज भी उस दौर को याद करते हैं जब कैमरों की रोशनी, कलाकारों की आवाजाही और भीड़भाड़ से गलियां जीवंत हो उठी थीं। इस फिल्म में प्रदीप कुमार और मधु चोपड़ा जैसे कलाकारों ने अपनी अदाकारी से इसे नई ऊंचाई दी।

राजेंद्र यादव का साहित्यिक जीवन पहले ही ‘सारा आकाश’ उपन्यास से चर्चा में आ गया था। 1951 में प्रकाशित इस उपन्यास का शीर्षक कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता से लिया गया था। दिनकर की पंक्तियाँ—
“समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध।”
से प्रेरित होकर उपन्यास और बाद में फिल्म का नाम रखा गया।

राजेंद्र यादव का व्यक्तित्व उतना ही प्रभावशाली था जितना उनका लेखन। वे स्पष्टवादिता और निडर अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते थे। उनकी लेखनी ने समाज में चल रही विसंगतियों और यथार्थ को उजागर किया। यही कारण था कि उनकी रचनाएँ नई पीढ़ी को सोचने पर मजबूर करती रहीं।

‘सारा आकाश’ फिल्म केवल एक साहित्यिक रचना का सिनेमा रूपांतरण नहीं थी, बल्कि यह उस समय की सामाजिक परिस्थितियों का दस्तावेज भी थी। इसमें मध्यमवर्गीय परिवारों के संघर्ष, रिश्तों की उलझनें और समाज की जटिलताएँ बेहद संवेदनशीलता के साथ दिखाई गईं। आगरा जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर की गलियां इस फिल्म की पृष्ठभूमि बनीं और उन्होंने कहानी को जीवंतता दी।

राजेंद्र यादव का पैतृक निवास आज भी किदवई पार्क के पास है। इस घर को देखने आने वाले साहित्य प्रेमियों के लिए यह स्थान प्रेरणा का स्रोत है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यादव जी का व्यक्तित्व बेहद मिलनसार था और वे अक्सर पड़ोसियों के साथ बैठकर बातचीत किया करते थे।

राजेंद्र यादव के निधन के बाद भी उनकी स्मृतियां आगरा से जुड़ी रहीं। यहां आने वाले साहित्यकार, शोधार्थी और पत्रकार गोकुलपुरा की उन गलियों में जाते हैं जहां कभी ‘सारा आकाश’ फिल्माई गई थी। इस इलाके का हर कोना आज भी उस दौर की गवाही देता है।

आगरा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं ने समय-समय पर राजेंद्र यादव की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित किए हैं। उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर यहां गोष्ठियां होती रही हैं, जिनमें उनके साहित्य और योगदान पर चर्चा होती है।

‘सारा आकाश’ की शूटिंग ने आगरा की पहचान केवल ताजमहल तक सीमित नहीं रहने दी, बल्कि इसे साहित्य और सिनेमा के मेल का भी प्रतीक बनाया। आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो महसूस होता है कि गोकुलपुरा की तंग गलियों ने हिंदी सिनेमा के इतिहास को एक नया मोड़ दिया था।

आगरा में उस दौर के लोग कहते हैं कि फिल्म की शूटिंग उनके लिए किसी उत्सव से कम नहीं थी। लोग अपने घरों की छतों और खिड़कियों से झांककर शूटिंग देखते थे। कई स्थानीय युवाओं को छोटे-मोटे रोल निभाने का भी मौका मिला था। इस तरह यह फिल्म केवल एक कलात्मक प्रयास नहीं रही, बल्कि शहरवासियों की सामूहिक स्मृति का हिस्सा भी बन गई।

राजेंद्र यादव की रचनाओं और उनकी सोच का असर आज भी महसूस किया जाता है। उन्होंने हमेशा परंपरागत ढांचे को चुनौती दी और नई दृष्टि दी। यही कारण है कि उनके उपन्यास ‘सारा आकाश’ पर बनी फिल्म आज भी प्रासंगिक लगती है।

Thakur Pawan Singh

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