राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा: नैतिक लड़ाई या चुनावी रणनीति?

पटना, 1 सितम्बर 2025

बिहार की राजनीति में एक नई हलचल तब पैदा हुई जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विपक्षी INDIA गठबंधन के साथ मिलकर राज्य में 16 दिनों की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकाली। यह यात्रा सासाराम से शुरू होकर पटना के गांधी मैदान में समाप्त हुई। इस दौरान राहुल गांधी ने 1300 किलोमीटर की दूरी तय की, 25 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरे, और लाखों लोगों से संवाद किया। यात्रा का उद्देश्य था — उन 65.5 लाख मतदाताओं के लिए आवाज उठाना जिनके नाम कथित तौर पर चुनाव आयोग की मसौदा सूची से हटा दिए गए हैं।

इस यात्रा को कांग्रेस ने एक “नैतिक लड़ाई” बताया, लेकिन इसके पीछे की रणनीति कहीं अधिक गहरी और बहुआयामी है। यह लेख उसी रणनीति, उसके प्रभाव, विपक्षी एकता, और बिहार की बदलती सियासत का विश्लेषण करता है।

कांग्रेस की रणनीति: खोए जनाधार की पुनर्प्राप्ति

बिहार में कांग्रेस का जनाधार पिछले चार दशकों में लगातार कमजोर हुआ है। 1980 के दशक में जहां कांग्रेस राज्य की प्रमुख पार्टी थी, वहीं 2020 के विधानसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। ऐसे में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ कांग्रेस के लिए एक अवसर थी — न केवल संगठन को पुनः सक्रिय करने का, बल्कि जनता के बीच अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करने का।

राहुल गांधी ने इस यात्रा को जाति और धर्म से ऊपर उठाकर लोकतंत्र और अधिकारों की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ बिहार का मुद्दा नहीं है, यह भारत के लोकतंत्र का मुद्दा है।” इस नैरेटिव ने कांग्रेस को एक वैचारिक मंच प्रदान किया, जिससे वह भाजपा के जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण के खिलाफ एक वैकल्पिक विमर्श खड़ा कर सके।

विपक्षी एकता का प्रदर्शन

इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि रही विपक्षी दलों की एकजुटता। INDIA गठबंधन के लगभग सभी प्रमुख नेता यात्रा में शामिल हुए — तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, सुप्रिया सुले, संजय राउत, दीपांकर भट्टाचार्य, डी राजा, एमए बेबी, और मुकेश सहनी जैसे नेता अलग-अलग चरणों में यात्रा का हिस्सा बने।

यह एकजुटता न केवल भाजपा के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाने का संकेत थी, बल्कि यह भी दर्शाता है कि राहुल गांधी अब विपक्ष के सर्वमान्य नेता के रूप में उभर रहे हैं। यात्रा के दौरान ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ जैसे नारे लगे, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि विपक्ष अब चुनाव आयोग और भाजपा दोनों को चुनौती देने के मूड में है।

राहुल गांधी की छवि निर्माण

‘वोटर अधिकार यात्रा’ राहुल गांधी की छवि को पुनः गढ़ने का एक प्रयास भी थी। सफेद टी-शर्ट, गमछा, खुली जीप, मखाने के खेतों में संवाद — यह सब उन्हें एक जमीनी नेता के रूप में प्रस्तुत करने की रणनीति थी। सोशल मीडिया पर कांग्रेस ने इन तस्वीरों को बड़े पैमाने पर प्रचारित किया।

राहुल गांधी ने कहा, “99 प्रतिशत बहुजन मेहनत करते हैं, लेकिन इसका फायदा सिर्फ 1 प्रतिशत को मिलता है।” यह बयान न केवल सामाजिक न्याय की बात करता है, बल्कि कांग्रेस के पुराने ‘गरीबी हटाओ’ विमर्श को नए संदर्भ में प्रस्तुत करता है।

चुनाव आयोग पर सीधा हमला

यात्रा का केंद्रीय मुद्दा था — चुनाव आयोग द्वारा 65.5 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाना। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि हटाए गए नामों में अधिकांश दलित, ओबीसी, मुस्लिम और गरीब वर्ग के लोग हैं। उन्होंने इसे “वोट चोरी” करार दिया और कहा कि यह लोकतंत्र के खिलाफ एक साजिश है।

यह आरोप कांग्रेस की रणनीति का एक अहम हिस्सा है। इससे पार्टी को एक नैतिक ऊंचाई मिलती है और भाजपा को रक्षात्मक स्थिति में ला देती है। साथ ही, यह मुद्दा चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर पूरे चुनावी प्रक्रिया को केंद्र में ले आता है।

यात्रा के दौरान हुए विवाद

हालांकि यात्रा के दौरान कुछ विवाद भी हुए। दरभंगा में एक रैली के दौरान पीएम मोदी के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी की गई, जिससे भाजपा ने विपक्ष पर तीखा हमला किया। पटना में पक्ष-विपक्ष के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई, जिसमें एक पुलिसकर्मी घायल हो गया। भाजपा ने इसे ‘अराजकता’ करार दिया और राहुल गांधी पर ‘राजनीतिक नौटंकी’ का आरोप लगाया।

इन विवादों ने यात्रा की नैतिकता पर सवाल उठाए, लेकिन कांग्रेस ने इसे “जनता की आवाज” बताते हुए बचाव किया।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा

यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार किया है। लंबे समय से निष्क्रिय पड़े संगठन को पुनः सक्रिय करने का यह प्रयास सफल होता दिख रहा है। स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं ने रैलियों, सभाओं और जनसंवाद कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

कई जिलों में कांग्रेस की स्थानीय इकाइयों ने यात्रा के स्वागत में पदयात्राएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम और जनसभाएं आयोजित कीं। इससे पार्टी को बूथ स्तर पर संगठनात्मक मजबूती मिली है।

क्या यह यात्रा चुनावी लाभ में बदलेगी?

यह सबसे बड़ा सवाल है। क्या यह यात्रा कांग्रेस को चुनावी लाभ दिला पाएगी? क्या जनता इसे एक आंदोलन के रूप में स्वीकार करेगी या इसे एक और रोड शो मानकर भूल जाएगी?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यात्रा ने कांग्रेस को एक नैरेटिव दिया है — वोट चोरी के खिलाफ लड़ाई। अगर पार्टी इस नैरेटिव को चुनाव तक जीवित रख पाती है, तो यह उसे लाभ पहुंचा सकता है। लेकिन इसके लिए संगठनात्मक मजबूती, बूथ स्तर की तैयारी और विपक्षी एकता को बनाए रखना आवश्यक होगा।

बिहार की बदलती सियासत

बिहार का सियासी परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। भाजपा और जेडीयू के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। आरजेडी और कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वामपंथी दल भी गठबंधन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

ऐसे में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने विपक्ष को एक साझा मंच दिया है। यह यात्रा न केवल कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है, बल्कि पूरे विपक्ष की चुनावी तैयारी का संकेत भी है।

नैतिकता और रणनीति का संगम

राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ एक नैतिक लड़ाई के रूप में प्रस्तुत की गई, लेकिन इसके पीछे की रणनीति स्पष्ट है — संगठन को पुनः सक्रिय करना, विपक्षी एकता को मजबूत करना, और एक वैकल्पिक नैरेटिव खड़ा करना।

यह यात्रा कांग्रेस के लिए एक अवसर है — खोए जनाधार को पुनः प्राप्त करने का, जनता के बीच अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करने का, और विपक्ष के नेतृत्व को अपने हाथ में लेने का।

अब देखना यह है कि यह यात्रा चुनावी नतीजों में कितना असर डालती है। क्या यह कांग्रेस को फिर से खड़ा कर पाएगी? क्या राहुल गांधी विपक्ष के सर्वमान्य नेता बन पाएंगे? और क्या बिहार की सियासत में यह यात्रा एक निर्णायक मोड़ साबित होगी?

Thakur Pawan Singh

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