अब मरम्मत नहीं होती रिश्तों की न सामान की
अभी से मेरे रफ़ूगर के हाथ थकने लगे
अभी तो चाक मिरे जख्म सिले भी नहीं
परवीन शाकिर
बृज खंडेलवाल
18 मई 2025
मरम्मत भूला समाज: रिश्तों से सामान तक, ‘यूज़ एंड थ्रो’ की गिरफ्त में हम
क्या आपने कभी सोचा है कि हम कब से चीज़ों को सुधारने के बजाय फेंकना ज़्यादा पसंद करने लगे हैं? एक ज़माना था जब एक टूटी कुर्सी को ठीक किया जाता था, फटे कपड़ों को सिला जाता था और रिश्तों की डोर को गांठ लगाकर मज़बूत किया जाता था। लेकिन, आज की भागदौड़ भरी आधुनिक ज़िंदगी में ‘यूज़ एंड थ्रो’ (इस्तेमाल करो और फेंको) की मानसिकता सिर्फ़ बाज़ार के सामान तक सीमित नहीं रही, बल्कि ये हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में भी गहरी पैठ बना चुकी है। हम न तो अपने पुराने सामानों को दूसरा मौका दे रहे हैं और न ही अपने अनमोल रिश्तों को मरम्मत का समय दे रहे हैं। आखिर क्यों बढ़ रही है यह ‘रिपेयर’ से इनकार करने की प्रवृत्ति, और इसके हमारे समाज पर क्या दूरगामी परिणाम हो सकते हैं?
आज उपभोक्तावाद के युग में, भारत की गहरी जड़ों वाली मरम्मत संस्कृति खतरे में है। देसी जुगाड़—नवाचारी, किफायती और पर्यावरण-अनुकूल मरम्मत समाधान—लंबे समय से स्थिरता का आधार रहा है। मोची द्वारा जूते ठीक करने से लेकर मैकेनिक द्वारा पुरानी साइकिल को नया जीवन देने तक, मरम्मत ने आजीविका को बनाए रखा, कौशल को बढ़ावा दिया और रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित किया। फिर भी, नियोजित अप्रचलन (प्लांड ऑब्सोलेंस) का उदय, जहां उद्योग बिक्री बढ़ाने के लिए सीमित आयु वाले उत्पाद बनाते हैं, इस संस्कृति को नष्ट कर रहा है। मरम्मत प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना न केवल आर्थिक और पर्यावरणीय आवश्यकता है, बल्कि उपयोग-और-फेंक मानसिकता का मुकाबला करने के लिए सांस्कृतिक जरूरत भी है।
ऐतिहासिक रूप से, सामान जीवन भर चलने के लिए बनाए जाते थे, और मरम्मत उनकी दीर्घायु सुनिश्चित करती थी। आज, उद्योग कम टिकाऊ, सस्ते उत्पाद बनाते हैं, जिससे बेहतर, लंबे समय तक चलने वाले पुराने उत्पाद बाजार से बाहर हो जाते हैं। यह रणनीति औद्योगिक चक्र को चलाए रखती है, लेकिन भारी कीमत पर। स्मार्टफोन, उपकरण और गैजेट्स को जल्दी खराब होने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, और Apple जैसे निर्माता पुर्जों और औजारों तक पहुंच सीमित करके मरम्मत को कंट्रोल करते हैं। चीन से आयातित सामान किफायती होने के वजह से काफी प्रचलन में हैं। ये भी एक सच्चाई है कि आज रिपेयर करना महंगा पड़ रहा है।
लेकिन, पर्यावरणीय नुकसान चौंका देने वाला है—इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ रहा है, और प्राकृतिक संसाधन तेजी से घट रहे हैं। भारत, जिसकी मरम्मत, रिफिटिंग और रचनात्मक पुनर्चक्रण की लंबी परंपरा है, को इस प्रवृत्ति का विरोध करना चाहिए।भारतीय सरकार ने मरम्मत योग्यता सूचकांक (रिपेयरेबिलिटी इंडेक्स) विकसित करने के लिए एक निकाय स्थापित करके प्रगतिशील कदम उठाया है, जो उत्पादों को उनकी मरम्मत की आसानी के आधार पर अंक देगा। यह कदम भारत की नवाचार की विरासत के साथ संरेखित है, जहां कचरे को उपयोगी चीजों में बदला जाता है, और किफायती समाधान नवाचार को प्रेरित करते हैं।
छोटे शहरों और गांवों में, मरम्मत करने वाले अभी भी घूमते हैं, जो जुगाड़ समाधानों से प्रेशर कुकर से लेकर रेडियो तक सब कुछ ठीक करते हैं। ये प्रथाएं न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन देती हैं, बल्कि कचरे को कम करती हैं और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देती हैं। इसके विपरीत, शहरी केंद्रों में यूज एंड थ्रो संस्कृति हावी है, जहां घटकों को ठीक करने के बजाय फेंक दिया जाता है, जो कॉर्पोरेट लालच और उपभोक्ता सुविधा से प्रेरित है।
मरम्मत का पर्यावरणीय तर्क निर्विवाद है। उपयोग-और-फेंक मानसिकता पर्यावरण के लिए आत्मघाती है, जो कचरे के ढेर और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाती है। मरम्मत प्रौद्योगिकी उत्पादों की आयु बढ़ाती है, संसाधनों का संरक्षण करती है। इसके अलावा, यह कुशल कारीगरों और तकनीशियनों के लिए रोजगार सृजित करती है, समुदायों को सशक्त बनाती है और पारंपरिक ज्ञान को भी संरक्षित करती है।
मरम्मत रचनात्मकता को भी बढ़ावा देती है, क्योंकि जुगाड़ समाधान अक्सर अपरंपरागत समस्या-समाधान, आउट ऑफ द बॉक्स सोच आधारित होते हैं, जिससे लचीलापन और अनुकूलनशीलता की मानसिकता विकसित होती है।
यह उपभोक्तावादी प्रवृत्ति उत्पादों से परे मानवीय संबंधों तक फैली हुई है। रिश्तों को सुधारने की अनिच्छा फेंकने वाली संस्कृति को बढ़ावा दे रही है—तलाक की दरें बढ़ रही हैं, क्योंकि समझौता या रिश्तों को रफू करने की मानसिकता खत्म हो रही है। टिकाऊ संबंधों के लिए रिपेयर और पेचवर्क जरूरी हैं।
अमेरिका में गति पकड़ रहा वैश्विक राइट टू रिपेयर आंदोलन भारत के लिए एक मॉडल प्रदान करता है। निर्माता मरम्मत उपकरण, पुर्जे और मैनुअल तक पहुंच प्रदान करें, जिससे उपभोक्ता अपने उपकरणों को ठीक कर सकें। भारत को कॉर्पोरेट एकाधिकार को चुनौती देने और अपनी मरम्मत विरासत को पुनर्जनन करने के लिए इसी तरह के आंदोलन की आवश्यकता है। मरम्मत-अनुकूल डिज़ाइनों को प्रोत्साहित करके और स्थानीय मरम्मत पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करके, भारत टिकाऊ उपभोग में अग्रणी हो सकता है।