अफगानिस्तान में भीषण भूकंप से 800 से अधिक मौतें, राहत कार्यों में बाधा

काबुल, सोमवार, 1 सितम्बर 2025, रात 11:47 बजे IST

रविवार की रात अफगानिस्तान की धरती ने ऐसा कंपन किया कि पूरा देश दहशत में आ गया। पूर्वी अफगानिस्तान के कुनार और नंगरहार प्रांतों में आए 6.0 तीव्रता के भूकंप ने 800 से अधिक लोगों की जान ले ली और 2,500 से अधिक घायल हो गए। भूकंप का केंद्र जलालाबाद से मात्र 27 किलोमीटर दूर और सतह से केवल 8 किलोमीटर गहराई में था। shallow depth के कारण इसका प्रभाव अत्यंत विनाशकारी रहा।

कुनार के नुरगल ज़िले में एक निवासी ने बताया, “बच्चे मलबे के नीचे हैं। बुज़ुर्ग मलबे के नीचे हैं। जवान मलबे के नीचे हैं। हमें मदद चाहिए। कोई नहीं है जो शवों को बाहर निकाले।”

तालिबान सरकार के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने बताया कि कुनार में ही 800 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि नंगरहार में 12 लोगों की मौत और 255 घायल होने की पुष्टि हुई है। राहत कार्य जारी हैं, लेकिन दुर्गम पहाड़ी इलाकों में पहुंचना बेहद कठिन हो रहा है। कई गांवों तक सड़कें टूट चुकी हैं और संचार व्यवस्था भी बाधित है।

अस्पतालों में घायलों की भीड़ उमड़ रही है। जलालाबाद और असदाबाद के अस्पतालों में हर पांच मिनट में एक नया मरीज आ रहा है। डॉक्टरों के पास न तो पर्याप्त दवाइयाँ हैं, न ही उपकरण। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है क्योंकि कई गांवों से अभी तक जानकारी नहीं मिल पाई है।

भूकंप के बाद कम से कम पांच बार आफ्टरशॉक्स महसूस किए गए, जिनमें से एक की तीव्रता 5.2 थी। अफगानिस्तान का यह क्षेत्र हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला में स्थित है, जो यूरेशियन और भारतीय टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन स्थल पर है। यही कारण है कि यहां भूकंप की घटनाएं बार-बार होती हैं।

तालिबान सरकार ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता की अपील की है। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि अब तक 40 हेलीकॉप्टर उड़ानें राहत कार्य के लिए की जा चुकी हैं। लेकिन संसाधनों की कमी, दुर्गम भूभाग और राजनीतिक अलगाव के कारण राहत कार्य धीमा है।

यह भूकंप अफगानिस्तान की पहले से ही जर्जर अर्थव्यवस्था और मानवीय संकट को और गहरा कर गया है। देश में खाद्य, ईंधन और दवाओं की भारी कमी है। अंतरराष्ट्रीय सहायता पहले ही सीमित हो चुकी है। ऐसे में यह आपदा एक और बोझ बनकर आई है।

अफगान जनता अब मलबे के नीचे अपने प्रियजनों को खोज रही है। वे अपने टूटे घरों के सामने खड़े हैं, आंखों में आंसू और दिल में उम्मीद लिए कि शायद कोई आए और उन्हें बचा ले। यह सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक मानवीय त्रासदी है — जो दुनिया से मदद की पुकार कर रही है।


Thakur Pawan Singh

खबर भेजने के लिए व्हाट्स एप या मेल कीजिए- +919412777777 pawansingh@tajnews.in

Related Posts

एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी-पुतिन की कार बातचीत का खुलासा: ट्रंप से अलास्का में क्या बात हुई, पुतिन ने बताया

तिआनजिन/नई दिल्ली, गुरुवार, 4 सितम्बर 2025, दोपहर 2:38 बजे IST चीन के तिआनजिन शहर में संपन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति…

किम जोंग उन की बख्तरबंद ट्रेन से चीन यात्रा: रहस्य, शक्ति और रणनीति का प्रदर्शन

बीजिंग/प्योंगयांग, बुधवार, 3 सितम्बर 2025, रात 8:23 बजे IST उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग उन एक बार फिर चर्चा में हैं — इस बार उनकी बख्तरबंद ट्रेन यात्रा…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Lekh

अब समय आ गया है कि अमेरिका का अधीनस्थ सहयोगी बनना बंद करे भारत

अब समय आ गया है कि अमेरिका का अधीनस्थ सहयोगी बनना बंद करे भारत

आगरा: अतीत की शान या भीड़-धूल में गुम एक विरासत?

आगरा: अतीत की शान या भीड़-धूल में गुम एक विरासत?

हाय बुढ़ापा!!! ढलता सूरज और बढ़ती तन्हाई

हाय बुढ़ापा!!!  ढलता सूरज और बढ़ती तन्हाई

सलवा जुडूम की ज्यादतियां और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सलवा जुडूम की ज्यादतियां और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

क्या भारत का लोकतंत्र अब ‘नियंत्रित लोकतंत्र’ में बदल गया है?

क्या भारत का लोकतंत्र अब ‘नियंत्रित लोकतंत्र’ में बदल गया है?

राजनैतिक व्यंग्य समागम

राजनैतिक व्यंग्य समागम