गुब्बी कोर्ट परिसर में महिला पर आवारा कुत्तों का हमला: चेहरे पर गंभीर चोटें, गुस्साए लोगों ने कुत्तों को मार डाला

तुमकुरु, कर्नाटक | शनिवार, 6 सितम्बर 2025 | विशेष संवाददाता

घटना का संक्षिप्त विवरण

शनिवार को कर्नाटक के तुमकुरु जिले के गुब्बी कोर्ट परिसर में एक महिला पर आवारा कुत्तों द्वारा हमला किए जाने की घटना ने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया। पीड़िता, जो पारिवारिक विवाद के मामले में अदालत आई थीं, पर शौचालय से बाहर निकलते ही एक कुत्ते ने हमला कर दिया। इस हमले में महिला के चेहरे पर गंभीर चोटें आईं और उन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया गया।

पीड़िता की पहचान और स्थिति

घायल महिला की पहचान गंगुबाई (35 वर्ष) के रूप में हुई है, जो टिपटुर तालुक के बीरसंद्रा गांव की निवासी हैं। वह पारिवारिक विवाद के मामले में सुनवाई के लिए अदालत आई थीं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जैसे ही गंगुबाई कोर्ट परिसर के सार्वजनिक शौचालय से बाहर निकलीं, एक आवारा कुत्ता अचानक उन पर झपट पड़ा।

हमले का दृश्य और लोगों की प्रतिक्रिया

कुत्ता उनके चेहरे पर बार-बार काटता रहा, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गईं। महिला ने बचने की कोशिश की, लेकिन कुत्ता लगातार हमला करता रहा। उनकी चीखें सुनकर आसपास मौजूद लोग दौड़े और किसी तरह उन्हें बचाया। लेकिन तब तक उनके चेहरे से खून बहने लगा था और वह सदमे की स्थिति में थीं। गुस्साए लोगों ने कुत्ते का पीछा किया और उसे मार डाला।

चिकित्सा सहायता और अस्पताल में भर्ती

गंगुबाई को पहले गुब्बी तालुक अस्पताल ले जाया गया, जहां प्राथमिक उपचार दिया गया। लेकिन उनकी हालत गंभीर होने के कारण उन्हें बेंगलुरु के एक बड़े अस्पताल में रेफर किया गया। डॉक्टरों के अनुसार, उनके चेहरे पर कई जगह गहरे घाव हैं और उन्हें प्लास्टिक सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है। मानसिक रूप से भी वह गहरे सदमे में हैं।

पुलिस की कार्रवाई और जांच

गुब्बी पुलिस ने घटना की पुष्टि की है और कोर्ट परिसर की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा शुरू कर दी है। चूंकि यह मामला आवारा कुत्ते से जुड़ा है, इसलिए कानूनी कार्रवाई की दिशा स्पष्ट नहीं है। पुलिस ने नगर निगम को पत्र लिखकर कोर्ट परिसर में आवारा जानवरों की निगरानी बढ़ाने की मांग की है।

नगर निगम की भूमिका और प्रतिक्रिया

तुमकुरु नगर निगम ने इस घटना के बाद कोर्ट परिसर और आसपास के क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की गिनती और पकड़ने का अभियान शुरू किया है। अधिकारियों ने बताया कि शहर में हजारों आवारा कुत्ते हैं, जिनमें से अधिकांश को अभी तक टीका नहीं लगाया गया है। निगम ने कहा कि बजट की कमी के कारण नियमित टीकाकरण और नसबंदी अभियान बाधित हो रहे हैं।

राज्य में आवारा कुत्तों की समस्या

कर्नाटक में आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ब्रुहत बेंगलुरु महानगर पालिके (BBMP) के अनुसार, 2025 के पहले छह महीनों में बेंगलुरु में 13,831 डॉग बाइट केस दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि राज्य में आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर होती जा रही है।

पूर्व की घटनाएँ और संदर्भ

इससे पहले भी दावणगेरे जिले में एक चार वर्षीय बच्ची को आवारा कुत्ते ने काट लिया था, जिसके बाद वह चार महीने तक जिंदगी की जंग लड़ती रही और अंततः बेंगलुरु अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई। ऐसी घटनाएँ राज्य के विभिन्न हिस्सों में लगातार सामने आ रही हैं।

कानूनी पहलू और IPC की धारा 289

भारतीय कानून में जानवरों द्वारा किए गए हमलों को लेकर स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं। हालांकि, अगर कोई जानवर किसी की जिम्मेदारी में है और वह हमला करता है, तो IPC की धारा 289 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। लेकिन आवारा कुत्तों के मामले में यह लागू नहीं होता।

सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया

महिला अधिकार संगठनों ने इस घटना को “सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा की विफलता” बताया और राज्य सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग की। कई संगठनों ने कोर्ट परिसर में सुरक्षा की कमी को लेकर प्रदर्शन किया और आवारा जानवरों के लिए स्पष्ट नीति की मांग की।

विशेषज्ञों की राय

पशु चिकित्सकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि आवारा कुत्तों की समस्या को केवल मारकर नहीं सुलझाया जा सकता। इसके लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता है जिसमें टीकाकरण, नसबंदी, और पुनर्वास शामिल हो। साथ ही, कोर्ट परिसर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नियमित निगरानी और सुरक्षा गार्ड की नियुक्ति आवश्यक है।

मीडिया की भूमिका और जनजागरण

ताज न्यूज ने इस घटना को प्रमुखता से उठाया है और राज्य सरकार से मांग की है कि वह कोर्ट परिसर और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करे। साथ ही, आवारा जानवरों के लिए एक स्पष्ट नीति बनाई जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

निष्कर्ष

गंगुबाई पर हुआ हमला एक चेतावनी है कि हम सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा को हल्के में नहीं ले सकते। यह घटना न केवल एक महिला की शारीरिक और मानसिक पीड़ा का प्रतीक है, बल्कि हमारे शहरी प्रशासन की विफलता को भी उजागर करती है। अब समय आ गया है कि राज्य सरकार, नगर निगम और न्यायपालिका मिलकर एक ठोस नीति बनाएं — ताकि कोर्ट परिसर जैसे स्थानों में कोई भी व्यक्ति भय के बिना न्याय की तलाश कर सके।

Thakur Pawan Singh

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