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भारत की दरियादिली का अपमान: बांग्लादेश और टर्की के साथ संबंधों का बहिष्कार क्यों अपरिहार्य है

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भारत की दरियादिली का अपमान: बांग्लादेश और टर्की के साथ संबंधों का बहिष्कार क्यों अपरिहार्य है

बृज खंडेलवाल
20 मई 2025
भारत ने सदैव वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से विश्व बंधुत्व का परिचय दिया है, लेकिन कुछ राष्ट्र इस उदारता को हमारी कमजोरी समझने की भूल कर बैठे हैं। बांग्लादेश और टर्की ऐसे ही दो उदाहरण हैं, जिनके साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध होने के बावजूद, आज वे भारत के विरुद्ध खड़े दिखाई देते हैं। ऐसे में, इन देशों के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों का बहिष्कार करना न केवल न्यायसंगत है, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वाभिमान की रक्षा के लिए परम आवश्यक है।
प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी का स्मरण दिलाना महत्वपूर्ण है कि 1971 में “भारत ने अपनी सैन्य शक्ति, संसाधनों और रणनीतिक कौशल का दांव लगाकर पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में मुक्ति दिलाई। लाखों शरणार्थियों को आश्रय, भोजन और सुरक्षा प्रदान की गई। बांग्लादेश के निर्माण में भारत का योगदान सिर्फ सैन्य सहायता तक सीमित नहीं था, बल्कि हमने नवजात राष्ट्र को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से स्थापित होने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह एक ऐसा ऐतिहासिक तथ्य है जिसे बांग्लादेश की वर्तमान पीढ़ी को विस्मृत नहीं करना चाहिए।”
हालांकि, आज बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही कट्टरपंथी ताकतों का उदय हुआ है। शेख हसीना, जिन्होंने भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे थे, आज सत्ता से बाहर हैं और उनकी जान खतरे में है। यह नई सरकार न केवल भारत-विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है, बल्कि पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ षडयंत्र रच रही है। सीमा पर अस्थिरता पैदा करने में इस सरकार की मौन सहमति या सक्रिय सहयोग स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। भारत ने जिस देश के निर्माण के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया, आज वही देश हमारी पीठ में छुरा घोंपने को तत्पर है। यह कृतघ्नता की पराकाष्ठा है और भारत की उदारता का घोर अपमान है। बांग्लादेश के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों पर तत्काल पुनर्विचार करना होगा। आयात-निर्यात पर कठोर प्रतिबंध लगाने और उन सभी समझौतों को रद्द करने का समय आ गया है जो भारत के हितों को क्षति पहुंचाते हैं। यदि बांग्लादेश पाकिस्तान या चीन की शह पर परमाणु शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर होता है, तो भारत को कठोरतम कार्रवाई करने से भी नहीं हिचकना चाहिए। कट्टरवाद के इस नासूर को जड़ से उखाड़ फेंकना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। व्यापारिक संगठनों द्वारा इन कदमों का समर्थन स्वागत योग्य है, और भारत सरकार को भी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा।
दूसरी ओर, टर्की के साथ भारत के संबंध भी विश्वासघात की एक दुखद कहानी बयां करते हैं। 2023 में जब टर्की विनाशकारी भूकंप से जूझ रहा था, भारत ने “ऑपरेशन दोस्त” के तहत त्वरित और व्यापक मानवीय सहायता प्रदान की। हमारे डॉक्टरों ने बर्फीली ठंड में जीवनरक्षक सर्जरी की, और हमारी बचाव टीमों ने मलबे से अनगिनत जिंदगियां बचाईं। 250 से अधिक विशेषज्ञ, 130 टन से अधिक राहत सामग्री, चिकित्सा दल और आवश्यक उपकरण – भारत ने बिना किसी स्वार्थ के तुर्की के लोगों की मदद की। हमारी इस उदारता की विश्व स्तर पर सराहना हुई थी।
लेकिन राष्ट्रपति एर्दोगान के नेतृत्व में टर्की ने इस दोस्ती का घोर अपमान किया है और भारत के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है। पाकिस्तान के साथ टर्की की बढ़ती घनिष्ठता और भारत विरोधी रवैया किसी से छिपा नहीं है। टर्की ने न केवल कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है, बल्कि उसे हथियार और सैन्य सहायता भी प्रदान की है। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की, तो एर्दोगान सरकार ने भारत को “संयम” बरतने की सलाह दी। यह वही टर्की है जिसके लिए भारत ने अपनी पूरी शक्ति झोंक दी थी। क्या यह कृतज्ञता है? क्या यही दोस्ती का प्रतिदान है? यह स्पष्ट रूप से भारत की उदारता का दुरुपयोग और हमारी संप्रभुता का अनादर है।
भारत की विदेश नीति का आधार हमेशा मानवता और सहयोग रहा है, लेकिन कूटनीति भावनाओं पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितों पर आधारित होती है। बांग्लादेश और टर्की ने बार-बार यह साबित किया है कि वे भारत की उदारता को हमारी कमजोरी मानते हैं। बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंध, विशेष रूप से कपड़ा और अन्य निर्यात, आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकते हैं, लेकिन जब यह संबंध हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन जाए, तो इसे बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है। इसी प्रकार, टर्की के साथ रक्षा और व्यापारिक सहयोग को तत्काल समाप्त करना होगा। हमें यह समझना होगा कि व्यापार और कूटनीति दोनों ही राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के साधन हैं, न कि साध्य।
भारत को अब अपनी विदेश नीति में परिपक्वता और दृढ़ता का परिचय देना होगा। हमें उन देशों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो हमारे हितों का सम्मान करते हैं और हमारी चिंताओं को समझते हैं। बांग्लादेश और टर्की जैसे देशों के साथ संबंधों का बहिष्कार करना न केवल एक कड़ा संदेश देगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि भारत की उदारता का भविष्य में दुरुपयोग न हो। जो अपने घर को जलाता है, उससे चाय पर चर्चा नहीं की जाती – यह कठोर नीति अब भारत को अपनानी ही होगी। यह समय है कि भारत अपनी दरियादिली का सम्मान करे और कृतघ्न राष्ट्रों को उनकी जगह दिखाए।

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