भारत-चीन को सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए मिलकर करना चाहिए कार्य: चीनी राजदूत

तियानजिन/नई दिल्ली, रविवार, 31 अगस्त 2025, शाम 6:45 बजे IST

तियानजिन। भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के पश्चात् भारत में चीन के राजदूत श्री शू फेइहोंग ने एक महत्वपूर्ण वक्तव्य जारी करते हुए कहा है कि दोनों एशियाई पड़ोसी देशों को अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए समन्वित प्रयास करने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सीमा संबंधी मुद्दों को समग्र भारत-चीन संबंधों की परिभाषा नहीं बनने देना चाहिए।

यह बयान ऐसे समय आया है जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति श्री शी जिनपिंग ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के इतर तियानजिन में एक महत्वपूर्ण मुलाकात की। यह मुलाकात वर्ष 2024 में रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन के बाद पहली बार हुई है, जब दोनों नेताओं ने आमने-सामने संवाद किया।

राजदूत शू फेइहोंग ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि चीन और भारत सहयोगी साझेदार हैं, प्रतिद्वंदी नहीं। दोनों देश एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं, बल्कि विकास का अवसर हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि जब तक दोनों देश इस व्यापक दृष्टिकोण पर कायम रहते हैं, तब तक द्विपक्षीय संबंध स्थिरता और दीर्घकालिक प्रगति की दिशा में अग्रसर रहेंगे।

राजदूत ने यह भी कहा कि चीन और भारत को अच्छे संबंधों वाले पड़ोसी बनना चाहिए और एक-दूसरे की सफलता में सहायक साझेदार की भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से कहा कि “ड्रैगन और हाथी का सहयोगी पा-दे-दो दोनों देशों के लिए सही विकल्प होना चाहिए।”

इस अवसर पर राजदूत ने दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “इस वर्ष चीन-भारत राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ है। दोनों देशों को आपसी संबंधों को रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखना और संभालना चाहिए।” उन्होंने इस बात पर बल दिया कि दोनों देशों को रणनीतिक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए ताकि आपसी विश्वास गहरा हो, आदान-प्रदान और परस्पर लाभकारी सहयोग को प्रोत्साहन मिले, और एक-दूसरे की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग प्रशस्त हो।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अवसर पर चीन के राष्ट्रपति को भारत की ओर से सहयोग और संवाद की भावना का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि “सीमा पर शांति और स्थिरता द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है।” उन्होंने यह भी कहा कि “भारत और चीन दोनों ही रणनीतिक स्वायत्तता का अनुसरण करते हैं, और उनके संबंधों को किसी तीसरे देश के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।”

प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत में वर्ष 2026 में आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आमंत्रित भी किया। उन्होंने SCO सम्मेलन की सफल आयोजन के लिए चीन को बधाई देते हुए कहा कि “हमारे सहयोग का संबंध 2.8 अरब लोगों के हितों से जुड़ा है, और यह मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।”

इस भेंट के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने तियानजिन के मीजियांग अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन एवं प्रदर्शनी केंद्र में आयोजित आधिकारिक स्वागत समारोह में भाग लिया। राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी पत्नी पेंग लीयुआन ने प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके पश्चात् प्रधानमंत्री मोदी अन्य विश्व नेताओं के साथ क्षेत्रीय एकता का प्रतीक समूह चित्र में भी सम्मिलित हुए।

विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात भारत-चीन संबंधों में एक नई ऊर्जा का संचार कर सकती है। वर्ष 2020 में गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़पों के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव उत्पन्न हुआ था। हालांकि, पिछले वर्ष कजान में हुई मुलाकात और इस वर्ष तियानजिन में हुए संवाद ने यह संकेत दिया है कि दोनों देश अब संबंधों को पुनः पटरी पर लाने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे हैं।

भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस मुलाकात को “सार्थक और सकारात्मक” बताया है। मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि “सीमा पर विघटन के बाद शांति का वातावरण बना है, और विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा प्रबंधन को लेकर समझ बनी है। कैलाश मानसरोवर यात्रा पुनः आरंभ हो चुकी है, और भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानों की बहाली भी हो रही है।”

इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व अब संबंधों को प्रतिस्पर्धा की बजाय सहयोग की दृष्टि से देखना चाहते हैं। यह दृष्टिकोण न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक संतुलन में भी योगदान देगा।

Thakur Pawan Singh

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