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गाजीपुर का ‘वीर भूमि’ गहमर: जहां मांएं बनाती हैं फौजी और हर घर कहता है PoK की बारी थी!

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गाजीपुर: उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव जो आबादी के लिहाज से एशिया का सबसे बड़ा है, लेकिन इसकी असली पहचान सरहद की रखवाली करने वाले बहादुर सपूतों से है। गाजीपुर से 40 किमी दूर बसा है ‘गहमर गांव’, जिसे लोग प्यार से ‘फौजियों वाला गांव’ भी कहते हैं। यहां हर घर में कोई न कोई व्यक्ति सेना में है या रह चुका है। यह सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि देशभक्ति का जीता-जागता प्रेरणास्रोत है, जहां मांएं अपने बच्चों को जन्म के बाद फौजी बनाने की कसम खाती हैं।

15,000 से ज़्यादा सैनिक देने वाले गांव की अनूठी कहानी

इस गांव ने भारतीय सेना को अब तक 15,000 से भी ज़्यादा सैनिक दिए हैं। गांववालों के मुताबिक, 5,000 से ज्यादा रिटायर्ड फौजी और करीब 10,000 लोग अभी भी देश की सेवा में लगे हैं। अकेले जम्मू-कश्मीर में इस वक्त 200 से ज्यादा गहमर के जवान तैनात हैं। यहां आपको ब्रिगेडियर से लेकर सिपाही रैंक तक के अधिकारी मिल जाएंगे।

56 साल के दिनेश सिंह गर्व से बताते हैं कि कैसे उरी सेक्टर में तैनात उनके बेटे नीरज का फोन आया था कि फायरिंग तेज हो गई है और कुछ दिन बात नहीं हो पाएगी। तीन दिन बाद जब बेटे का फोन आया और पता चला कि वो ठीक है, तब जाकर सुकून मिला। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि गहमर के हर फौजी परिवार का अनुभव है।

युद्धों का इतिहास और गांव का सम्मान

गहमर के लोग 1914 के पहले विश्व युद्ध में भी शामिल हुए थे, जहां 228 में से 21 जवान शहीद हुए। इसके बाद 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और कारगिल युद्ध में भी यहां के सपूतों ने अपनी वीरता का लोहा मनवाया। गांव के बीचोंबीच एक अशोक चक्र स्तंभ है, जिस पर शहीद और सेवारत सैनिकों के नाम लिखे हैं। गांव में घुसते ही आपको घरों के गेटों पर सैनिकों के नाम लिखे मिलेंगे, जो गांव के सैन्य इतिहास की गवाही देते हैं।

PoK पर गहमर के फौजियों की बेबाक राय: ‘यही था सही मौका’

जब हमने गांव के पूर्व सैनिकों और युवाओं से भारत-पाकिस्तान के बीच बने हालात पर बात की, तो उनका जोश और जज्बा देखने लायक था। 90 साल के बंशीधर सिंह, जो 1971 की जंग लड़ चुके हैं, आज भी बॉर्डर पर जाने को तैयार हैं।

72 साल के पूर्व सूबेदार मेजर वीर बहादुर सिंह, जिन्होंने 1977 से 2008 तक सेना में सेवा दी, कहते हैं, ‘भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना का कोई मुकाबला ही नहीं है। बीते 10 सालों में जो नई तकनीकें शामिल हुई हैं, उसका फायदा यह हुआ कि हफ्ते भर में ही पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए।’ हालांकि, उन्हें एक बात का मलाल भी है। वे कहते हैं, ‘यह वक्त था कि इस बार हम PoK को भारत में मिला सकते थे। अगर ऐसा हो गया होता, तो सीमापार से होने वाली आतंकी घटनाएं हमेशा के लिए खत्म हो सकती थीं।’

गांव के चंदन सिंह, जो 2006 से 2015 तक जम्मू-कश्मीर में तैनात रहे, सीजफायर पर असहमति जताते हैं। वे कहते हैं, ‘आज पाकिस्तान जितना बोल पा रहा है, कहीं न कहीं उसकी वजह चीन का उसके साथ खड़ा होना है। आज हमने अमेरिका के दबाव में आकर युद्ध विराम कर लिया। यह बहुत दुखद है। एक भूतपूर्व सैनिक होने के नाते उस रात मुझे नींद नहीं आई।’

गांव का ‘मठिया’: जहां तैयार होते हैं भविष्य के फौजी

गहमर में सेना में जाने की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए एक खास ट्रेनिंग ग्राउंड है, जिसे गांववाले ‘मठिया’ कहते हैं। यह ग्राउंड रिटायर्ड फौजियों ने ही डिजाइन किया है, जिसमें आर्मी के नियमों के मुताबिक रनिंग ट्रैक, मंकी रोप, लॉन्ग जंप एरिया और अन्य सुविधाएं हैं। 24 साल के कृष्णानंद उपाध्याय, जिनके पिता सूबेदार मेजर रह चुके हैं और बहन पहली महिला लेफ्टिनेंट हैं, बताते हैं कि इस मैदान में प्रैक्टिस करने वाला बच्चा देश में कहीं भी आर्मी फिजिकल टेस्ट निकाल सकता है। पूर्व जवान शिवानंद सिंह कहते हैं कि गहमर से निकला बच्चा आर्मी की 6 महीने की ट्रेनिंग को पहले से ही क्वालीफाई किया होता है।

कुलदेवी मां कामाख्या में आस्था: जवानों की सुरक्षा कवच

गहमर के लोगों की अपनी कुलदेवी मां कामाख्या में अटूट आस्था है। यहां मान्यता है कि मां कामाख्या देवी सेना में गए हर बच्चे की रक्षा करती हैं। गांव की महिलाएं देवी मां के भरोसे ही अपने बच्चों को खुशी-खुशी फौज में भेजती हैं। 1965 के युद्ध के बाद गांव का कोई सैनिक शहीद नहीं हुआ है, जिसे ग्रामीण मां का आशीर्वाद मानते हैं।

अग्निवीर योजना पर चिंता और आगे की राह

गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी भी गहमर गांव के पराक्रम की सराहना करते हैं। हालांकि, उन्होंने अग्निवीर योजना आने के बाद युवाओं के सेना के प्रति रुझान में कमी आने पर चिंता व्यक्त की, जबकि पहले हर साल बड़ी संख्या में बच्चे सेना में चयनित होते थे।

गहमर गांव सिर्फ संख्याओं की कहानी नहीं है, यह देशभक्ति, परंपरा और त्याग का प्रतीक है। यह बताता है कि कैसे एक पूरा गांव पीढ़ियों से देश की सेवा को अपना धर्म मानता आया है, और आज भी सरहद पर खड़े अपने बेटों के साथ मजबूती से खड़ा है।

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