गुरु: परंपरा से प्रेरणा तक — शिक्षा का दीप जो युगों को आलोकित करता है

काशी, शुक्रवार, 5 सितम्बर 2025, शाम 6:26 बजे IST

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

गुरु ही सृष्टि के कर्ता ब्रह्मा हैं, पालनकर्ता विष्णु हैं और संहारकर्ता शिव हैं। गुरु ही परब्रह्म का प्रत्यक्ष स्वरूप हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव को मेरा शत-शत प्रणाम।

राकेश शुक्ला

भारत की शिक्षा परंपरा का मूल उद्देश्य सदैव सम्पूर्ण मानव निर्माण रहा है — जिसमें शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का संतुलन स्थापित हो। प्राचीन काल में गुरु-शिष्य के बीच केवल ज्ञान का आदान-प्रदान नहीं होता था; वहाँ शिक्षा का अर्थ था — चरित्र-निर्माण, नैतिकता का संस्कार, सामाजिक उत्तरदायित्व और आत्म-निरीक्षण। गुरुकुलों में शिष्य प्रकृति की गोद में रहकर जीवन की कला सीखते थे — कृषि, हस्तशिल्प, संगीत, दर्शन और युद्ध-कला तक। वहाँ शिक्षा और जीवन में कोई अंतर नहीं था। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने बहु-विषयक अध्ययन और अंतरराष्ट्रीय छात्र-परंपरा की नींव रखी, जो आज भी विश्व के लिए प्रेरणा है।

आधुनिक भारत में औपचारिक शिक्षा-प्रणाली ने विज्ञान, तकनीक और रोजगारपरक प्रशिक्षण पर बल दिया — जो समय की आवश्यकता है। किंतु यह भी उतना ही आवश्यक है कि हम अपनी परंपरा की आत्मा न भूलें — मानवता, धैर्य, ध्यान और नैतिकता। यही कारण है कि आज योग, आयुर्वेद, ध्यान और अहिंसा के सिद्धांत भारत की पहचान बनकर विश्व को दिशा दिखा रहे हैं।

आज गुरु का स्वरूप बदला है। अब गुरु केवल पाठ पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, मेंटर और जीवन-कोच हैं। सच्चा गुरु वही है जो शिष्य में आत्मसम्मान जगाए, प्रश्न पूछने की जिज्ञासा जगाए, व्यवहारिक नैतिकता सिखाए और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का भाव भरे। विश्वस्तर पर भारत का योगदान अद्वितीय है। योग और ध्यान से मानसिक स्वास्थ्य का समाधान, आयुर्वेद से रोग-निवारण का मार्ग, और हमारी सहिष्णुता व बहुलतावाद की परंपरा — ये सब मिलकर विश्व को सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ा रहे हैं। तकनीकी नवाचारों में भारतीय प्रतिभा अग्रणी है, किंतु सच्चा नेतृत्व तभी सिद्ध होगा जब हम विज्ञान को मानवीय मूल्यों और पर्यावरणीय संतुलन के साथ जोड़ेंगे।

शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि सत्य, अहिंसा, धैर्य और आत्म-चिंतन के बीज बोना है। यही बीज आगे चलकर जीवन को विराट वटवृक्ष बनाते हैं। जब आधुनिक तकनीक की ज्योति को परंपरा की दीपशिखा से जोड़ देंगे, तब शिक्षा केवल रोजगार का साधन न रहकर मानवता की अमिट ज्योति बन जाएगी। गुरु समाज की आत्मा हैं — उनके सम्मान, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन से ही सभ्यता उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर होती है।

प्राथमिक शिक्षा से लेकर इंटर कॉलेज तक और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मेरे अध्ययन काल में मुझे अनेक आदरणीय गुरुजनों का सान्निध्य प्राप्त हुआ। साथ ही, मैं कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ, जहाँ अनेक वरिष्ठजन, साथी और पथ-प्रदर्शक निरंतर मुझे शिक्षा, प्रेरणा और मार्गदर्शन देते रहे हैं। समाज का हर वह व्यक्ति जो मुझे कुछ अच्छा सिखाता है, मेरे लिए गुरु के समान है। उन सभी को मैं हृदय से नमन करता हूँ।

आज के इस पावन अवसर पर हम उन गुरुजनों को नमन करते हैं जिन्होंने हमें केवल पढ़ाया ही नहीं, बल्कि जीवन जीना भी सिखाया। उनकी शिक्षा ही हमारी वास्तविक संपत्ति है। उनकी स्मृति और मार्गदर्शन को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ।

एक बार पुनः शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

Thakur Pawan Singh

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