
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में NDA उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन की ऐतिहासिक जीत ने विपक्षी खेमे में हलचल मचा दी है। इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी को उम्मीद से कम वोट मिले, जिससे यह सवाल उठने लगा कि विपक्ष के 15 सांसदों ने NDA को वोट क्यों दिया। यह चुनाव न केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया थी, बल्कि राजनीतिक रणनीति, संगठनात्मक मजबूती और विपक्षी एकता की परीक्षा भी।
कांग्रेस का दावा और नतीजों का अंतर
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने चुनाव से पहले दावा किया था कि विपक्ष के पास 315 सांसदों का समर्थन है। उन्होंने कहा था कि इंडिया ब्लॉक एकजुट है और बी सुदर्शन रेड्डी को भारी समर्थन मिलेगा। लेकिन जब नतीजे आए तो बी सुदर्शन रेड्डी को सिर्फ 300 वोट मिले। वहीं NDA उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले। इससे यह स्पष्ट हुआ कि क्रॉस वोटिंग हुई है और विपक्ष की रणनीति विफल रही।
क्रॉस वोटिंग की पुष्टि और विपक्ष की प्रतिक्रिया
कांग्रेस सांसद तारिक अनवर ने कहा कि चुनाव नतीजों की समीक्षा की जाएगी। उन्होंने माना कि साउथ इंडिया से अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। शक्ति सिंह गोहिल ने बताया कि 15 वोट अमान्य हुए, लेकिन विपक्ष एकजुट रहा। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ सांसदों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट किया, लेकिन यह विपक्ष के लिए नुकसानदायक साबित हुआ।
साउथ इंडिया से समर्थन की कमी
अनवर के बयान से संकेत मिलता है कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल जैसे राज्यों से विपक्ष को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। वाईएसआरसीपी ने पहले ही NDA को समर्थन दे दिया था, जबकि बीआरएस ने चुनाव से दूरी बना ली थी। DMK और कांग्रेस के कुछ सहयोगी दलों ने समर्थन दिया, लेकिन संख्या बल में कमी रही।
वोटों का गणित: आंकड़ों की सच्चाई
इस चुनाव में कुल 767 सांसदों ने मतदान किया। इनमें से 752 वोट वैध पाए गए, जबकि 15 वोट अमान्य घोषित किए गए। जीत के लिए आवश्यक संख्या 377 थी। सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले, जबकि बी सुदर्शन रेड्डी को सिर्फ 300 वोट प्राप्त हुए। यह अंतर दर्शाता है कि विपक्ष के दावे और वास्तविकता में बड़ा फर्क था।
क्या अमान्य वोट ही क्रॉस वोटिंग थे?
बीजेपी सांसद डॉ. भागवत कराड ने कहा कि 14 सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की और 14 वोट अमान्य हुए। विपक्षी नेता ने कहा कि अमान्य वोट का मतलब क्रॉस वोटिंग नहीं होता। हर वोट की जांच नियमों के तहत हुई। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ सांसदों ने जानबूझकर वोट को अमान्य किया ताकि वे खुले तौर पर NDA का समर्थन न करें, लेकिन विपक्ष को नुकसान पहुंचा सके।
बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रिया
देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि विपक्ष अपने वोट नहीं बचा पाया। उन्होंने विपक्ष को बड़बोलापन करने वाला बताया और कहा कि NDA की रणनीति ने उन्हें मात दी। निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि चुनाव बैलेट पेपर से हुआ, EVM से नहीं। रवि किशन ने कहा कि विपक्ष ने मोदी जी की राजनीति का सम्मान किया और ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे पर भरोसा जताया।
राजनीतिक विश्लेषण: विपक्ष की रणनीति पर सवाल
इंडिया ब्लॉक ने बी सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर साउथ इंडिया से भावनात्मक समर्थन की उम्मीद की थी। लेकिन राजनीतिक समीकरणों ने उनकी रणनीति को कमजोर कर दिया। विपक्ष ने नैतिकता और न्याय की छवि को प्राथमिकता दी, लेकिन संख्या बल और संगठनात्मक मजबूती को नजरअंदाज कर दिया।
क्या विपक्षी एकता में दरार है?
बीआरएस, वाईएसआरसीपी और कुछ अन्य दलों की भूमिका ने विपक्षी एकता पर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस को उम्मीद थी कि क्षेत्रीय दल विपक्ष के साथ आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ दलों ने मतदान से दूरी बनाई, जबकि कुछ ने NDA को समर्थन दे दिया। इससे विपक्ष की एकता कमजोर हुई।
क्रॉस वोटिंग का असर भविष्य की राजनीति पर
यह घटना भविष्य के राष्ट्रपति चुनाव, राज्यसभा रणनीति और विपक्षी गठबंधन की मजबूती पर असर डाल सकती है। विपक्ष को अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। अगर विपक्ष क्रॉस वोटिंग को रोकने में असफल रहा, तो यह उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करेगा।
चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता
राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी ने नतीजों की घोषणा की। चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही। अमान्य वोटों की जांच नियमों के तहत हुई। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि हर वोट की वैधता की जांच की गई और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हुई।
सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर
1957 में जन्मे राधाकृष्णन ने RSS से शुरुआत की। वे कोयंबटूर से सांसद रहे, झारखंड, तेलंगाना और महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे। उनका अनुभव उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त बनाता है। वे संगठनात्मक दृष्टि से मजबूत हैं और संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में सक्षम हैं।
बी सुदर्शन रेड्डी की छवि
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी की छवि निष्पक्ष रही है। विपक्ष ने उन्हें नैतिकता का प्रतीक मानकर मैदान में उतारा था। लेकिन उनकी छवि संख्या बल के सामने कमजोर पड़ गई। विपक्ष ने भावनात्मक अपील पर भरोसा किया, लेकिन वह रणनीतिक रूप से सफल नहीं रही।
क्या विपक्ष को आत्ममंथन करना चाहिए?
विपक्ष को अब यह समझना होगा कि भावनात्मक अपील से ज्यादा ज़रूरी है संगठनात्मक मजबूती। क्रॉस वोटिंग ने विपक्ष की रणनीति को कमजोर किया है। उन्हें अपने सहयोगी दलों के साथ बेहतर समन्वय बनाना होगा और भविष्य की रणनीति को संख्या बल के आधार पर तय करना होगा।
जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर जनता ने इस चुनाव को लोकतंत्र की परीक्षा बताया। कुछ ने विपक्ष की कमजोरी पर सवाल उठाए, तो कुछ ने राधाकृष्णन की योग्यता की सराहना की। ट्विटर पर #VicePresidentElection ट्रेंड करता रहा और लोगों ने चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता की प्रशंसा की।
मीडिया की भूमिका और विश्लेषण
मीडिया ने इस चुनाव को व्यापक कवरेज दी। टीवी चैनलों पर लाइव विश्लेषण हुआ, जिसमें विशेषज्ञों ने विपक्ष की रणनीति, NDA की तैयारी और क्रॉस वोटिंग के असर पर चर्चा की। अखबारों ने अगले दिन इसे प्रमुख खबर के रूप में प्रकाशित किया।
संसद भवन का माहौल
चुनाव के दिन संसद भवन में उत्सव जैसा माहौल था। सांसदों की लंबी कतारें, मीडिया की हलचल, और सुरक्षा व्यवस्था ने इस दिन को ऐतिहासिक बना दिया। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, विपक्ष के नेता, और अन्य वरिष्ठ सांसदों ने मतदान में भाग लिया।
शपथ ग्रहण की तैयारी
अब जल्द ही राष्ट्रपति भवन में उपराष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जाएगा। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री, विपक्ष के नेता, और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल होंगे। राधाकृष्णन के शपथ ग्रहण के साथ ही भारत को एक नया उपराष्ट्रपति मिलेगा।
लोकतंत्र की जीत या विपक्ष की हार?
Vice President Election Result ने यह साबित किया कि संख्या बल और संगठन की ताकत चुनावों में निर्णायक होती है। विपक्ष को अब आत्ममंथन करना होगा, जबकि NDA ने एक बार फिर अपनी रणनीति की सफलता साबित की है। यह चुनाव आने वाले वर्षों की राजनीति की दिशा भी तय करेगा।