
दिल्ली, 29 अगस्त 2025, दोपहर 01:54 बजे (IST)
ब्रोंको टेस्ट: टीम इंडिया की फिटनेस में आया नया मोड़
टीम इंडिया के स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग कोच एड्रियन ले रूक्स ने हाल ही में यो-यो टेस्ट के साथ एक नया फिटनेस टेस्ट — ब्रोंको टेस्ट — पेश किया है। यह टेस्ट अब चर्चा का विषय बन चुका है, खासकर तब जब दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान एबी डीविलियर्स और भारत के अनुभवी स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने इस पर अपनी राय दी है।
क्या है ब्रोंको टेस्ट?
ब्रोंको टेस्ट एक प्रकार का स्प्रिंट रिपीट एबिलिटी टेस्ट है, जिसमें खिलाड़ी को एक निश्चित दूरी को बार-बार तेजी से तय करना होता है। यह टेस्ट खिलाड़ी की एरोबिक क्षमता, स्टैमिना, और रिकवरी स्पीड को परखता है। आमतौर पर यह टेस्ट 20 मीटर, 40 मीटर और 60 मीटर की दूरी को बार-बार दौड़कर पूरा करने के रूप में किया जाता है। खिलाड़ी को कुल 1.2 किलोमीटर की दूरी को कम से कम समय में पूरा करना होता है।
एबी डीविलियर्स का अनुभव: 16 साल की उम्र से कर रहे हैं यह टेस्ट
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान एबी डीविलियर्स, जिन्हें दुनिया के सबसे फिट क्रिकेटरों में गिना जाता है, ने बताया कि उन्होंने यह टेस्ट पहली बार 16 साल की उम्र में किया था। उन्होंने कहा:
“जब टीम ने मुझे इसके बारे में बताया तो मैंने पूछा, ‘ब्रोंको टेस्ट क्या है?’ लेकिन जब उन्होंने समझाया, तब मुझे याद आया कि मैं यह टेस्ट 16 साल की उम्र से करता आ रहा हूं।”
डीविलियर्स ने यह भी बताया कि यह टेस्ट उनके करियर के दौरान नियमित रूप से लिया जाता था और इससे उनकी फिटनेस का स्तर हमेशा उच्च बना रहता था। उन्होंने इसे एक चुनौतीपूर्ण लेकिन प्रभावी टेस्ट बताया।
ऊंचाई पर ब्रोंको टेस्ट करना हो सकता है खतरनाक
डीविलियर्स ने चेतावनी दी कि यह टेस्ट ऊंचाई वाले स्थानों पर नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि यूनिवर्सिटी ऑफ प्रिटोरिया और सुपरस्पोर्ट पार्क जैसे स्थानों पर, जहां समुद्र तल से ऊंचाई करीब 1500 मीटर है, वहां ऑक्सीजन की कमी के कारण यह टेस्ट बेहद कठिन हो जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसे स्थानों पर खिलाड़ियों को सांस लेने में कठिनाई होती है और इससे प्रदर्शन पर असर पड़ता है।
रविचंद्रन अश्विन की चेतावनी: टेस्ट बदलने से बढ़ सकती हैं चोटें
टीम इंडिया के अनुभवी स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने कहा कि फिटनेस टेस्ट में बदलाव खिलाड़ियों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। उन्होंने कहा:
“जब ट्रेनर बदलते हैं, तो टेस्टिंग की प्रक्रिया भी बदल जाती है। खिलाड़ी इससे कई बार मुश्किल में आ जाते हैं। कई मामलों में यह चोटों का कारण भी बन सकता है।”
अश्विन ने यह भी कहा कि हर खिलाड़ी की शारीरिक संरचना और खेल शैली अलग होती है, इसलिए एक ही टेस्ट सभी पर लागू करना उचित नहीं होता। उन्होंने सुझाव दिया कि फिटनेस टेस्ट को व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित किया जाना चाहिए।
भारतीय खिलाड़ियों ने पहले ही किया ब्रोंको टेस्ट
रिपोर्ट्स के अनुसार, बेंगलुरु के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में कई भारतीय खिलाड़ियों ने पहले ही ब्रोंको टेस्ट को पूरा कर लिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि टीम इंडिया इस नए टेस्ट को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। खिलाड़ियों ने इस टेस्ट को चुनौतीपूर्ण बताया लेकिन साथ ही यह भी माना कि इससे उनकी सहनशक्ति और रिकवरी में सुधार हुआ है।
ब्रोंको बनाम यो-यो: कौन है बेहतर?
जहां यो-यो टेस्ट लंबे समय से भारतीय टीम का फिटनेस मानक रहा है, वहीं ब्रोंको टेस्ट को स्प्रिंट आधारित और तेज रिकवरी परखने वाला टेस्ट माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों टेस्ट का संयोजन खिलाड़ियों की फिटनेस को बेहतर ढंग से परख सकता है। यो-यो टेस्ट में खिलाड़ी को एक निश्चित दूरी को बीप साउंड के साथ तय समय में पूरा करना होता है, जबकि ब्रोंको टेस्ट में समय की सीमा नहीं होती बल्कि कुल दूरी को कम से कम समय में पूरा करना होता है।
फिटनेस के नए युग में कदम
टीम इंडिया अब फिटनेस के नए युग में प्रवेश कर रही है, जहां पारंपरिक टेस्ट के साथ-साथ आधुनिक और चुनौतीपूर्ण टेस्ट को भी अपनाया जा रहा है। ब्रोंको टेस्ट का समावेश खिलाड़ियों की शारीरिक क्षमता, मानसिक दृढ़ता, और परफॉर्मेंस को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है। यह टेस्ट खिलाड़ियों को उनकी सीमाओं को पार करने के लिए प्रेरित करता है और उन्हें उच्च स्तर की प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करता है।