
आगरा: अतीत की शान या भीड़-धूल में गुम एक विरासत?
बृज खंडेलवाल द्वारा
3 सितंबर 2025
आगरा शहर फ़ख़्र का सबब होना चाहिए था, मगर आज अफ़रातफ़री की राजधानी दिखता है _ ट्रैफिक जाम, कूड़े के ढेर, गड्ढों में सड़कें, विचरते आवारा पशु, हर जगह भीड़, चिल्लपों । आगरा—जिसने दुनिया को ताजमहल, आगरा क़िला और फ़तेहपुर सीकरी जैसे नायाब हीरे दिए—अब शानो-शौकत की राजधानी कम और धूल, अतिक्रमण और बदइंतज़ामी में डूबा मक़बरा-गाह ज़्यादा नज़र आता है। हर पत्थर फ़रियाद करता है, हर गली बर्बाद मौक़ों की दास्तान सुनाती है। जो शहर कभी दुनिया को चकाचौंध करता था, आज भी यूनेस्को “वर्ल्ड हेरिटेज सिटी” के दर्जे के लिए बेताबी से तरस रहा है।
पर्यावरणविद डॉ देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, “आगरा अनूठा है: एक ही ज़िले में तीन वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स, अनगिनत हवेलियाँ, बाग़, बावड़ियाँ और ऐतिहासिक बाज़ार। लेकिन इन ख़ज़ानों के चारों तरफ़ कूड़े के ढेर, बेढंगे निर्माण और शहरी फैलाव की दीवारें हैं। दिल्ली गेट हो या सिकंदरा, ताजगंज की गलियाँ हों या एतमादुद्दौला की तरफ़ जाने वाले रास्ते—हर जगह तारीख़ का गला घुटता नज़र आता है। अतिक्रमण इमारतों को दबा रहा है, वाहनों के प्रदूषण से उनकी दीवारें काली हो रही हैं। फ़तेहपुर सीकरी—जो अकबर की कभी रौनक़दार राजधानी थी—अब दो बार उजड़ा, पहले अपने बादशाह से और आज अपने रखवालों से।”
अगर आगरा के स्मारक जवाहरात हैं तो यमुना उनकी जान थी। लेकिन आज वह जान लाश बन चुकी है। कभी उफ़ान मारने वाली नदी अब बस बरसाती नाला है। सूखी रेत से उठती धूल गाड़ियों के धुएँ में मिलकर दम घोंट देती है। “आगरा की रगों में बहने वाला लहू सूख चुका है,” कार्यकर्ता पद्मिनी कहती हैं। अरबों रुपयों की योजनाएँ बनीं “ताज को बचाने” के नाम पर, मगर यमुना आज भी ज़हरीली और बेजान है। हेरिटेज प्रेमियों का कहना है—बिना यमुना ताज की रूह खो जाएगी। इस साल बारिश ज़्यादा हुई तो नदी में जान लौटी है, मगर कुछ महीनों बाद वही पुराना किस्सा: गंदगी, ज़हर और सूखा।
आगरा का असली हादसा उसकी ग़लत ख़्वाहिश है। “हेरिटेज सिटी” के ख़्वाब को पूरा करने के बजाय अधिकारी और उनके आका नेता “स्मार्ट सिटी” के धोखे में भाग रहे हैं—ऊँची इमारतें, फ़्लाईओवर और मॉल—इतिहास की गलियों की क़ुर्बानी देकर। इस “आधुनिकता” की दौड़ में सदियों पुरानी हवेलियाँ, बाग़-बग़ीचे और ओरिएंटल पुराने बाज़ार बुलडोज़रों के नीचे दब जाएँगे, और ताज महल कंक्रीट के जंगल में अकेला छूट जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में गहरी चिंता जताते हुए यूपी सरकार को आदेश दिया था कि ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन के लिए एक विज़न प्लान बनाए। दिल्ली के स्कूल ऑफ़ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर ने बाक़ायदा डिटेल्ड रिपोर्ट भी तैयार की। मगर अफ़सरशाही की सुस्ती और स्मार्ट सिटी के हौले सपने ने उसे दफ़न कर दिया।
हमेशा ऐसा नहीं था। तारीख़ बताती है कि आगरा कभी लंदन-परिस से ज़्यादा रोशन और पुररौनक़ था। शायर, दस्तकार, सौदागर और मुसाफ़िर इसकी गलियों में रौनक़ बढ़ाते थे। कारीगरों, नक्काशों ने पत्थर और पानी से करामात रच दीं। आज भी हर आँगन और मीनार उसी शानो-शौकत की बयानी करता है—अगर कोई सुनने वाला हो।
आज लाखों सैलानी आने के बावजूद आगरा टूटी सड़कों, असुरक्षित सफ़र, ग़लत साइनबोर्ड और बेपरवाह इंतज़ाम के साथ जूझ रहा है। नाम है विश्व में, मगर फ़ख़्र है ग़ायब।
यूनेस्को का हेरिटेज सिटी दर्जा सिर्फ़ इज़्ज़त नहीं देगा, बल्कि स्मारकों, पुरानी मंडियों और जलाशयों के चारों तरफ़ एक मज़बूत ढाल बनाएगा। यह दर्जा मजबूर करेगा कि शहर की तरक़्क़ी सतत और मुनासिब तरीक़े से हो—वो काम जो स्मार्ट सिटी प्लान अब तक नाकाम रहा है।
आम आगरा वासी के लिए यह क्रांतिकारी साबित हो सकता है। सलीके से चलाया गया टूरिज़्म रोज़गार देगा, तहज़ीब बचाएगा और शहरवासियों में शान लौटाएगा। मगर आज आगरा का बाशिंदा अपनी धरोहर से कटा हुआ है, अपनी आँखों से देख रहा है कि किस तरह अतिक्रमण और बाहरी हाथ उसका शहर लूट रहे हैं।
यूनेस्को जैसी संस्थाओं ने मदद का हाथ बढ़ाया है। पर्यटन और इतिहास से जुड़े लोग कहते हैं कि आगरा की तह-दर-तह तारीख़ दिखाने के लिए हेरिटेज वॉक शुरू होनी चाहिए—मुग़ल आगरा, औपनिवेशिक आगरा और आधुनिक आगरा। मगर जब तक सियासी इरादा और शहरी सहयोग नहीं होगा, यह कोशिशें बस दिखावा ही रहेंगी।
आगरा ने दुनिया को मोहब्बत की सबसे मशहूर निशानी दी। लेकिन सिर्फ़ मोहब्बत से शहर नहीं बचता। आगरा को ज़रूरत है इज़्ज़त की—अपनी नदी के लिए, अपने मकबरों के लिए, अपनी ज़िंदा तारीख़ के लिए। अब फ़ैसला आसान है: या तो हेरिटेज सिटी बनकर अपनी पहचान अपनाओ, या फिर भीड़-भाड़ और प्रदूषण में डूबा कोई मामूली भारतीय शहर बनकर रह जाओ।