आगरा, 18 दिसंबर 2024: आगरा के गधापाड़ा रेलवे मालगोदाम में पेड़ों की कटाई और जलाने का मामला तेजी से तूल पकड़ता जा रहा है। यह मामला न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और रेलवे की भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए जांच तेज कर दी है। हालांकि, रेलवे विभागों के बीच जिम्मेदारी तय करने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
मामले का आरंभ
गधापाड़ा मालगोदाम की जमीन हाल ही में रेल लैंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (RLDA) द्वारा गणपति बिल्डर्स को आवंटित की गई थी। बिल्डर को केवल अलॉटमेंट लेटर दिया गया था, लेकिन कब्जा देने की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई थी। इसके बावजूद, बिल्डर ने अपनी मनमानी शुरू कर दी और मालगोदाम की जमीन पर खड़े कई पेड़ों को काटकर और जलाकर साफ करना शुरू कर दिया।
यह घटनाक्रम पर्यावरणविद डॉ. शरद गुप्ता के ध्यान में आया, जिन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट में उठाया। मामले की गंभीरता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा। सीईसी ने न केवल दो दिनों तक सुनवाई की, बल्कि स्थल का निरीक्षण करने के लिए टीम भी भेजी।
सीईसी का रुख और निर्देश
सीईसी के सदस्य सुनील लिमये ने पेड़ों की कटाई को लेकर कड़ा रुख अपनाया और RLDA से मामले में तुरंत मुकदमा दर्ज करने को कहा। RLDA ने अपनी सफाई में कहा कि रिपोर्ट आगरा के डीआरएम कार्यालय द्वारा कराई जाएगी। इस पर सीईसी ने सवाल उठाया कि जब जमीन का आवंटन RLDA ने किया है, तो जिम्मेदारी भी उन्हीं की बनती है।
सीईसी ने आगरा के डीआरएम कार्यालय, वन विभाग, और स्थानीय प्रशासन से भी जवाब मांगा है कि इस मामले में उनकी भूमिका और कार्रवाई क्या रही।
डॉ. शरद गुप्ता की आपत्ति और सुझाव
डॉ. शरद गुप्ता, जो लंबे समय से आगरा के पर्यावरण के लिए सक्रिय हैं, ने सीईसी के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए बताया कि गधापाड़ा मालगोदाम की जमीन ऐतिहासिक रूप से आगरा शहर की है। उन्होंने तर्क दिया कि ब्रिटिश काल में जब मालगोदाम बनाया गया था, तब यह क्षेत्र शहर की जरूरतों को पूरा करता था। अब जब मालगोदाम का उपयोग नहीं हो रहा है, तो रेलवे को यह जमीन शहर को वापस सौंप देनी चाहिए।
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डॉ. गुप्ता ने यह भी सुझाव दिया कि इस जमीन का उपयोग सिटी फॉरेस्ट और बच्चों के लिए खेल के मैदान विकसित करने में किया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि आगरा में मेट्रो परियोजना और अन्य विकास कार्यों के कारण कई खेल के मैदान पहले ही खत्म हो चुके हैं। ऐसे में इस जमीन का हरित उपयोग शहर के लिए वरदान साबित हो सकता है।
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सीईसी टीम का स्थल निरीक्षण
सीईसी की टीम ने गधापाड़ा मालगोदाम का दौरा किया और घटनास्थल की वीडियोग्राफी की। टीम ने पाया कि कई पेड़ों को जला दिया गया है, जबकि कुछ को पूरी तरह काट दिया गया है। यह कार्य बिना किसी अनुमति या कानूनी प्रक्रिया के किया गया था। टीम ने घटनास्थल पर मौजूद साक्ष्यों को इकट्ठा किया और स्थानीय लोगों से पूछताछ भी की।
रेलवे की भूमिका पर सवाल
मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि रेलवे विभागों के बीच समन्वय की कमी है। RLDA ने जमीन का आवंटन किया, लेकिन पेड़ों की कटाई और जलाने की घटनाओं पर कोई निगरानी नहीं रखी। वहीं, डीआरएम कार्यालय ने इस मामले में अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं की। वन विभाग और स्थानीय प्रशासन की ओर से भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
सीईसी ने इस बात पर जोर दिया कि पेड़ों की कटाई और जलाने जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
आगरा शहर के लिए महत्व
गधापाड़ा मालगोदाम की जमीन आगरा के केंद्र में स्थित है और इसका कुल क्षेत्रफल काफी बड़ा है। इस जमीन का सही उपयोग न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से लाभकारी हो सकता है, बल्कि शहर के बच्चों और युवाओं के लिए खेल और अन्य गतिविधियों के लिए स्थान उपलब्ध करा सकता है।
डॉ. शरद गुप्ता ने सीईसी के समक्ष जोर देकर कहा कि आगरा के बच्चों के लिए खेलने के मैदान की उपलब्धता बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि शहर में मेट्रो परियोजना और अन्य विकास कार्यों के कारण आरबीएस इंटर कॉलेज, आगरा कॉलेज, और एसएन मेडिकल कॉलेज जैसे स्थान पहले ही खत्म हो चुके हैं।
पर्यावरण संरक्षण की चुनौती
यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की बड़ी चुनौती को भी उजागर करता है। आगरा, जो पहले से ही प्रदूषण और हरित क्षेत्र की कमी से जूझ रहा है, इस तरह की घटनाओं का भार सहन नहीं कर सकता। पेड़ों की कटाई और जलाने से स्थानीय पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, जो जलवायु परिवर्तन और शहरी गर्मी को बढ़ावा देता है।
आगे की कार्रवाई
सीईसी ने RLDA और रेलवे को निर्देश दिया है कि वे इस मामले में अपनी जिम्मेदारी तय करें और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करें। टीम ने यह भी सुझाव दिया कि गधापाड़ा मालगोदाम की जमीन का उपयोग पर्यावरणीय और सामाजिक उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए।
गधापाड़ा मालगोदाम का यह मामला प्रशासनिक जवाबदेही, पर्यावरण संरक्षण, और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की जरूरत को उजागर करता है। यह जरूरी है कि रेलवे, स्थानीय प्रशासन, और अन्य संबंधित विभाग मिलकर इस मामले का समाधान करें और आगरा के नागरिकों के लिए एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करें।
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