
नई दिल्ली | मंगलवार, 9 सितम्बर 2025 | रात 8:15 बजे IST
भारत के 15वें उपराष्ट्रपति बने सीपी राधाकृष्णन: NDA की रणनीति सफल, विपक्ष को बड़ा झटका
नई दिल्ली | मंगलवार, 9 सितम्बर 2025 | रात 9:15 बजे IST
भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में सीपी राधाकृष्णन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। मंगलवार को संसद भवन में हुए चुनाव में उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को हराकर 452 वोट प्राप्त किए, जबकि विपक्ष को मात्र 300 वोट मिले। यह चुनाव न केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया थी, बल्कि राजनीतिक समीकरणों की परीक्षा भी। इस चुनाव ने एक बार फिर साबित किया कि NDA गठबंधन की रणनीति और संगठन क्षमता विपक्ष पर भारी पड़ती है।
चुनाव प्रक्रिया: लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण
उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान मंगलवार सुबह 9 बजे शुरू हुआ। संसद भवन में पक्ष और विपक्ष के सांसदों की मौजूदगी ने इस चुनाव को विशेष बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले वोट डालकर NDA की एकजुटता का संकेत दिया। मतदान प्रक्रिया सात घंटे तक चली और शाम 6 बजे वोटों की गिनती शुरू हुई। राज्यसभा के महासचिव पीसी मोदी ने परिणामों की घोषणा की।
इस चुनाव में कुल 752 सांसदों ने मतदान किया। बहुमत का आंकड़ा 391 था, जिसे सीपी राधाकृष्णन ने आसानी से पार कर लिया। विपक्ष को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी का नाम उन्हें नैतिक बढ़त दिलाएगा, लेकिन परिणाम इसके विपरीत रहे।
NDA की रणनीति: मैन टू मैन मार्किंग और संगठन की ताकत
NDA ने इस चुनाव को बेहद गंभीरता से लिया। गठबंधन ने ‘मैन टू मैन मार्किंग’ की रणनीति अपनाई, जिसमें हर सांसद की जिम्मेदारी तय की गई थी। यह सुनिश्चित किया गया कि कोई सांसद मतदान से चूके नहीं और वोट NDA उम्मीदवार को ही जाए। इस रणनीति का असर परिणामों में साफ दिखा।
भाजपा के साथ-साथ सहयोगी दलों जैसे जेडीयू, शिवसेना (शिंदे गुट), AIADMK, BJD, और TDP ने भी राधाकृष्णन को समर्थन दिया। वहीं विपक्षी एकता में दरारें साफ नजर आईं। कुछ विपक्षी सांसदों ने मतदान नहीं किया, जिससे विपक्ष को नुकसान हुआ।
सीपी राधाकृष्णन: एक स्वयंसेवक से उपराष्ट्रपति तक का सफर
सीपी राधाकृष्णन का जन्म 1957 में तमिलनाडु के तिरुप्पुर में हुआ। उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और सार्वजनिक जीवन में सक्रियता दिखाई। वे RSS के स्वयंसेवक रहे और 1974 में भारतीय जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति में शामिल हुए। यह उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत थी।
1996 में उन्हें तमिलनाडु भाजपा का सचिव बनाया गया। इसके बाद 1998 में वे कोयंबटूर से सांसद बने और 1999 में दोबारा चुने गए। संसद में उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की और अपनी स्पष्ट सोच के लिए पहचाने गए।
उनका प्रशासनिक अनुभव भी उल्लेखनीय है। वे झारखंड के राज्यपाल रह चुके हैं और साथ ही तेलंगाना के राज्यपाल और पुडुचेरी के उपराज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाल चुके हैं। 2024 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने कई संवैधानिक और प्रशासनिक निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विपक्ष की रणनीति: नैतिकता बनाम संख्या
विपक्ष ने बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर नैतिकता और न्याय की छवि प्रस्तुत करने की कोशिश की। रेड्डी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रहे हैं और उनकी छवि निष्पक्ष रही है। विपक्ष को उम्मीद थी कि यह नाम NDA के खिलाफ नैतिक दबाव बनाएगा। लेकिन राजनीति में संख्या का महत्व नैतिकता से अधिक होता है।
कांग्रेस, TMC, DMK, SP, RJD, और वाम दलों ने रेड्डी का समर्थन किया, लेकिन विपक्षी एकता में दरारें साफ नजर आईं। कुछ दलों ने मतदान से दूरी बनाई, जबकि कुछ ने क्रॉस वोटिंग की। इससे विपक्ष की रणनीति विफल हो गई।
संसद भवन का माहौल: लोकतंत्र का उत्सव
चुनाव के दिन संसद भवन में उत्सव जैसा माहौल था। सांसदों की लंबी कतारें, मीडिया की हलचल, और सुरक्षा व्यवस्था ने इस दिन को ऐतिहासिक बना दिया। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, विपक्ष के नेता, और अन्य वरिष्ठ सांसदों ने मतदान में भाग लिया।
वोटिंग के बाद जब परिणाम घोषित हुए, तो NDA खेमे में जश्न का माहौल था। भाजपा अध्यक्ष ने राधाकृष्णन को बधाई दी और कहा कि यह जीत संगठन की ताकत और नेतृत्व की दिशा का प्रमाण है।
शपथ ग्रहण की तैयारी
अब जल्द ही राष्ट्रपति भवन में उपराष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जाएगा। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री, विपक्ष के नेता, और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल होंगे। राधाकृष्णन के शपथ ग्रहण के साथ ही भारत को एक नया उपराष्ट्रपति मिलेगा, जो संविधान की रक्षा और संसद की गरिमा को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाएगा।
उपराष्ट्रपति का कार्य और महत्व
भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। वे संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। साथ ही, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में वे कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका भी निभाते हैं। यह पद संवैधानिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सीपी राधाकृष्णन का अनुभव और संगठन कौशल इस पद के लिए उपयुक्त माना जा रहा है। वे संसद की गरिमा को बनाए रखने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
ऐतिहासिक संदर्भ: उपराष्ट्रपति चुनावों की परंपरा
भारत में अब तक 14 उपराष्ट्रपति चुने जा चुके हैं। पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे, जिन्होंने बाद में राष्ट्रपति पद भी संभाला। उपराष्ट्रपति पद पर कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व रहे हैं, जैसे वी.वी. गिरी, भैरों सिंह शेखावत, हामिद अंसारी, वेंकैया नायडू, और जगदीप धनखड़।
सीपी राधाकृष्णन इस परंपरा को आगे बढ़ाएंगे और अपने अनुभव से इस पद की गरिमा को बढ़ाएंगे।
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लोकतंत्र की जीत
Vice President Election 2025 ने एक बार फिर लोकतंत्र की ताकत को साबित किया है। यह चुनाव न केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया थी, बल्कि राजनीतिक रणनीति, संगठन कौशल, और जन समर्थन का परीक्षण भी। सीपी राधाकृष्णन की जीत NDA की रणनीति की सफलता और विपक्ष की विफलता का प्रतीक है।
अब देश को एक ऐसा उपराष्ट्रपति मिला है, जो संविधान, संसद और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करेगा। यह चुनाव आने वाले वर्षों की राजनीति की दिशा भी तय करेगा।