नोबेल विवाद से व्यापार युद्ध तक: ट्रंप–मोदी रिश्तों की दरार

राकेश शुक्ला

हिमसमत मौन में जब महाशक्तियों का संगीत बदलता है, तब छोटे-छोटे सुर भी इतिहास की ध्वनि-लहरें बन जाते हैं। 2025 के मध्य में वही दृश्य विश्व मंच पर उभरा — एक फोन कॉल, एक दावा, और उसके बाद भू-राजनीतिक व आर्थिक परिणामों की लंबी कड़ी। भारत की उभरती शक्ति, अमेरिका की महत्वाकांक्षा और क्षेत्रीय समीकरणों का यह टकराव अंतरराष्ट्रीय राजनीति के नए युग का संकेत है।

नोबेल विवाद और शुरुआती खटास-
जून 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत–पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव को ठंडा किया है और इसके लिए पाकिस्तान ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार हेतु नामित करने की इच्छा जताई। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी ऐसा समर्थन चाहा।
मोदी ने इस दावे को सीधे खारिज किया और स्पष्ट किया कि भारत–पाकिस्तान के बीच शांति दो देशों की प्रत्यक्ष सैन्य व कूटनीतिक बातचीत का परिणाम है, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का। यह ठोस और स्पष्ट रुख रिश्तों में पहली खटास का कारण बना।

व्यापारिक तनाव और टैरिफ युद्ध-
तनाव केवल कूटनीति तक सीमित नहीं रहा। 2025 की दूसरी छमाही में अमेरिका ने भारत के कुछ अहम निर्यातों पर पहले 25% और बाद में 50% तक टैरिफ बढ़ा दिए। इसका कारण भारत का रूस से तेल और रक्षा खरीद को जारी रखना बताया गया।
नई दिल्ली ने इसे “अन्यायपूर्ण” और “असंगत” कहा तथा अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका–भारत व्यापारिक संबंधों में गहरी दूरी आ गई और भारत ने रूस के साथ अपने रिश्तों को और प्रगाढ़ करने की दिशा में कदम बढ़ाया।

वैश्विक मंचों पर असहमति
इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने जापान और चीन की यात्राओं के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। खास बात यह रही कि पुतिन ने मोदी का 10 मिनट तक इंतज़ार किया और बाद में अपनी कार में बैठाकर लगभग आधे घंटे तक वार्ता की। यह दृश्य भारत की बढ़ती कूटनीतिक अहमियत और मोदी की व्यक्तिगत साख को रेखांकित करता है।
भारत–चीन–रूस त्रिकोणीय संवाद ने यह संदेश दिया कि भारत अब किसी एक ध्रुव पर टिकने वाला देश नहीं है, बल्कि बहुध्रुवीय दुनिया में अपनी स्वतंत्र शक्ति बनकर उभर रहा है।

भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता
भारत की नीति स्पष्ट रही है — “हम किसी के सामने नहीं झुके थे, न झुकेंगे।” चाहे पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य नीति हो या रूस के साथ ऊर्जा सहयोग, भारत ने हमेशा अपने हितों को सर्वोपरि रखा है। अमेरिका के दबाव और ट्रंप की अपेक्षाओं के बावजूद मोदी ने वही मार्ग चुना जो भारत की सुरक्षा और आर्थिक हितों के अनुकूल था। यही रणनीतिक स्वायत्तता अमेरिका के लिए असहजता का कारण बनी।

निष्कर्ष
नोबेल विवाद से लेकर व्यापारिक टैरिफ तक, और चीन–रूस संवाद से लेकर रणनीतिक स्वतंत्रता तक — हर घटनाक्रम ने ट्रंप–मोदी रिश्तों में दूरी बढ़ाई है। यह केवल दो नेताओं के बीच का टकराव नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति समीकरणों के पुनर्गठन का प्रतीक है।
आज भारत विश्व को यह दिखा रहा है कि वह न केवल एक उभरती शक्ति है, बल्कि अपनी सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप आत्मगौरव और आत्मनिर्णय की नीति पर भी दृढ़ है।
यही भारत की असली ताक़त है — आत्मसम्मान के साथ मित्रता करना और राष्ट्रीय हितों के लिए किसी के आगे न झुकना।
जय हिन्द, जय भारत।

Thakur Pawan Singh

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