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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला खारिज

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नई दिल्ली, 22 जनवरी 2025, 11:18 AM IST: सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। “बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ” जैसे वाक्य को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना गया। इस मामले में महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ ने यह आदेश दिया।

कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अपराध साबित करने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि “प्रेमी से शादी बिना नहीं रह सकती कहना” भी आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना गया। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में केवल कथनों के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता।

मामले का विवरण

इस मामले में महिला पर आरोप था कि उसने अपने बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाया था। महिला ने कथित तौर पर कहा था, “बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ।” इस बयान के बाद बेटे ने आत्महत्या कर ली थी। इस पर महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया गया था।

कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है। केवल कथनों के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि “प्रेमी से शादी बिना नहीं रह सकती कहना” भी आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना गया।

न्यायिक दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में केवल कथनों के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि अपराध साबित करने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है। इस फैसले से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ है।

कानूनी दृष्टिकोण

कानून के अनुसार, आत्महत्या के लिए उकसाना एक गंभीर अपराध है और इसे साबित करने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है। केवल कथनों के आधार पर इसे साबित नहीं किया जा सकता। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ” जैसे वाक्य को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता। इस फैसले से कानूनी दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ है।

मामले के तथ्य

इस मामले में महिला पर आरोप था कि उसने अपने बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाया था। महिला ने कथित तौर पर कहा था, “बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ।” इस बयान के बाद बेटे ने आत्महत्या कर ली थी। इस पर महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है। केवल कथनों के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता।

केस की जानकारी

यह मामला तब सामने आया जब महिला ने अपने बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। महिला ने कथित तौर पर कहा था, “बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ।” इस बयान के बाद बेटे ने आत्महत्या कर ली थी। इस पर महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है। केवल कथनों के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता।

कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है। केवल कथनों के आधार पर इसे साबित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि “बेटे के बिना नहीं रह सकती तो मर जाओ” जैसे वाक्य को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता। इस फैसले से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ है।

कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस खारिज कर दिया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ ने यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि “अपराध साबित करने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि “प्रेमी से शादी बिना नहीं रह सकती कहना” भी आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना गया। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में केवल कथनों के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता।

मामले का परिणाम

इस मामले का परिणाम यह हुआ कि महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में प्रत्यक्ष और परोक्ष उकसावे की जरूरत होती है। केवल कथनों के आधार पर अपराध साबित नहीं किया जा सकता। इस फैसले से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ है और कानूनी दृष्टिकोण भी स्पष्ट हुआ है।

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