क्रिकेट प्लेयर अश्विन ने हिंदी भाषा का विरोध क्यों किया?
बृज खंडेलवाल
तीन रोज़ पहले, क्रिकेट खिलाड़ी अश्विन रवि चंद्रन ने चेन्नई में एक स्टूडेंट्स सभा को संबोधित करते हुए हिंदी भाषा को नेशनल लैंग्वेज न मानते हुए सिर्फ राष्ट्र की एक ऑफिशियल भाषा बताया। तमिल नाडु में भारतीय जनता पार्टी का भी यही स्टैंड रहा है।
अश्विन या अन्य दक्षिणी नेताओं के सर्टिफिकेट्स से हिंदी भाषा का ओहदा कम नहीं हो जाता। तथ्य ये है कि राजनैतिक स्वार्थों के चलते कुछ दक्षिणी स्टेट्स, यदा कदा हिंदी विरोधी रुख अपनाते रहे हैं, पर इससे हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता में कोई रुकावट आने वाली नहीं है। इन दिनों यात्रा करते हुए, हैदराबाद से बैंगलोर, मैसूर और अब आगे केरल में, हम हर जगह हिंदी में ही बातचीत करते हैं और काम चल रहा है। २५ साल पहले तमिल नाडु में बहुत विरोध और आक्रोश होता था हिंदी के खिलाफ। अब बिहार, झारखंड, उड़ीसा, यू पी, मणिपुर, असम से इतने लोग हर जगह मिलते हैं कि भाषा संप्रेषण तो कोई मसला ही नहीं रहा।
आज भारत ही क्या, पूरे विश्व में हिंदी का डंका बज रहा है। हिंदी भाषा भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक है।
भाषा शास्त्री बताते हैं हिंदी का स्वरूप (लिखित और बोली जाने वाली शैली) सदियों के विकास का परिणाम है। हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, जो कि वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत सरल और सटीक मानी जाती है। इसमें ध्वनियों और अक्षरों के बीच स्पष्ट संबंध होने के कारण यह एक व्यवस्थित भाषा है।
अंग्रेजी के कुछ गुण हिंदी में समावेश होने के बाद इसकी सरलता, मधुरता और लचीलापन बढ़ा है। हिंदी व्याकरण का विस्तृत एवं सुव्यवस्थित ढांचा इसे एक सशक्त भाषा बनाता है। हिंदी साहित्य ने अपने काव्य, गद्य, नाटक और निबंधों के माध्यम से इस भाषा को समृद्ध किया है। खड़ी बोली हिंदी, जो आज की मानक हिंदी है, ने संस्कृत, फारसी, अरबी, तुर्की और अंग्रेज़ी से शब्दों को आत्मसात किया है, जिससे इसका स्वरूप और भी विस्तृत हुआ है, ये कहना है भाषा ज्ञानी प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी का।
संगीत और नाट्य कर्मी डॉ ज्योति खंडेलवाल के मुताबिक, हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का प्रतीक है। यह 22 भारतीय भाषाओं में से एक है और देश के 9 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों की आधिकारिक भाषा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय हिंदी ने जनमानस को जोड़ने का काम किया। आज यह सिनेमा, साहित्य, राजनीति, शिक्षा और व्यापार जैसे क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।”
हिंदी भाषा का वैश्विक स्तर पर भी बड़ा प्रभाव है। विश्व के 50 से अधिक देशों में लगभग 60 करोड़ लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना और त्रिनिदाद जैसे देशों में भारतीय मूल के लोगों ने हिंदी को जीवंत रखा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी साहित्य, बॉलीवुड और डिजिटल मीडिया के माध्यम से भी इसका प्रसार हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को मान्यता दिलाने के प्रयासों ने इसे और भी महत्वपूर्ण बनाया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी हिंदी के प्रबल समर्थक हैं, लेखिका विद्या झा बताती हैं।
कुलसचिव केंद्रीय हिंदी संस्थान, डॉ चंद्रकांत त्रिपाठी कहते हैं “हिंदी भाषा का वर्मन स्वरूप इसकी अद्वितीय पहचान और सशक्तता का प्रमाण है। यह न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी संवाद, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामाजिक एकता का माध्यम बनी है। भविष्य में, डिजिटल युग में हिंदी का महत्व और भी बढ़ेगा, जिससे यह भाषा अपनी समृद्ध परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु का कार्य करती रहेगी।”
पिछले कई दशकों में, बॉलीवुड फिल्मों ने हिंदी भाषा को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदी सिनेमा की मनोरंजन, संगीत और संवादों की सरलता ने भाषा को जन-जन तक पहुंचाया है। बॉलीवुड फिल्मों के समीक्षक शर्माजी के मुताबिक “गीतों और संवादों में हिंदी के प्रयोग ने न केवल इसे मनोरंजक बनाया बल्कि वैश्विक दर्शकों के लिए भी आकर्षक बनाया। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सबटाइटल्स के जरिए हिंदी फिल्मों ने अपनी पहुंच और प्रभाव को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।”
नई टेक्नोलॉजी, और तमाम ट्रांसलेशन ऐप्स, हिंदी के फैलाव, और प्रसार में मदद कर रहे हैं।
लेखक के बारे में
बृज खंडेलवाल, (1972 बैच, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन,) पचास वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता और शिक्षण में लगे हैं। तीन दशकों तक IANS के सीनियर कॉरेस्पोंडेंट रहे, तथा आगरा विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान के पत्रकारिता विभाग में सेवाएं दे चुके हैं। पर्यावरण, विकास, हेरिटेज संरक्षण, शहरीकरण, आदि विषयों पर देश, विदेश के तमाम अखबारों में लिखा है, और ताज महल, यमुना, पर कई फिल्म्स में कार्य किया है। वर्तमान में रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक हैं।