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डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट पर राजनीतिक हलचल: प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को घेरा

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भारतीय रुपये (INR) और अमेरिकी डॉलर (USD) के बीच बदलते मूल्य एक बार फिर से भारत में राजनीतिक चर्चा का मुख्य विषय बन गए हैं। हाल ही में, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर रुपये की कीमत में गिरावट के लिए निशाना साधा, जो अब रिकॉर्ड निम्न स्तर पर 86.4 प्रति डॉलर हो गई है। इस घटनाक्रम ने देश भर में आर्थिक नीतियों, ऐतिहासिक दृष्टिकोणों और मुद्रा मूल्यांकन के राजनीतिक प्रभाव पर बहस छेड़ दी है।

ऐतिहासिक संदर्भ और आर्थिक प्रवृत्तियाँ

एक देश की मुद्रा का मूल्य कई कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें व्यापार संतुलन, मुद्रास्फीति दर, विदेशी मुद्रा भंडार और राजनीतिक स्थिरता शामिल हैं। ऐतिहासिक रूप से, भारतीय रुपया प्रशंसा और अवमूल्यन दोनों के दौर से गुजर चुका है। डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान, रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले 58-59 INR/USD के बीच रहा। इस अवधि में भारत ने विभिन्न आर्थिक चुनौतियों का सामना किया, लेकिन महत्वपूर्ण सुधारों को भी लागू किया जिससे स्थिर आर्थिक वृद्धि हुई।

इसके विपरीत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्तमान प्रशासन ने अपने आर्थिक बाधाओं का सामना किया है, जिसमें COVID-19 महामारी, भू-राजनीतिक तनाव और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जैसी वैश्विक घटनाएँ शामिल हैं। इन कारकों ने रुपये पर अतिरिक्त दबाव डाला है, जिससे इसका वर्तमान अवमूल्यन हुआ है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और सार्वजनिक भावना

प्रियंका गांधी वाड्रा के हालिया पोस्ट ने रुपये के मूल्यांकन पर नरेंद्र मोदी की पिछली बयानबाजी और वर्तमान आर्थिक परिदृश्य के बीच विपरीत को उजागर किया। उन्होंने मोदी के पिछले बयानों को याद दिलाया, जिसमें उन्होंने रुपये की कीमत को सरकार की आबरू और दक्षता से जोड़ा था। वाड्रा ने प्रधानमंत्री की इस मुद्दे पर चुप्पी पर सवाल उठाया और उनसे सार्वजनिक रूप से रुपये की गिरावट के कारणों की व्याख्या करने की मांग की।

उनके पोस्ट में मीडिया रिपोर्ट्स का एक वीडियो संकलन भी शामिल था, जिसमें आर्थिक चुनौतियों और रुपये के अवमूल्यन के कारणों का विवरण दिया गया था। इस कदम ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर चर्चाएं शुरू कर दी हैं, जिसमें समर्थक और आलोचक दोनों ही सरकार की आर्थिक नीतियों पर अपने विचार प्रकट कर रहे हैं।

आर्थिक विशेषज्ञों के दृष्टिकोण

अर्थशास्त्री और वित्तीय विश्लेषक रुपये के अवमूल्यन पर विविध दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे हैं। कुछ इसका कारण अमेरिकी डॉलर की मजबूती को बताते हैं, जो कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक (फेडरल रिजर्व) के ब्याज दर बढ़ाने के प्रयासों के कारण है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए किया गया है। अन्य लोग कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि की ओर इशारा करते हैं, जिसने भारत के आयात बिल को बढ़ा दिया है, जिससे व्यापार संतुलन पर प्रभाव पड़ा है और रुपये पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

विदेशी मुद्रा व्यापारी भी विदेशी निधियों के भारतीय बाजारों से बहिर्वाह का उल्लेख कर रहे हैं। वैश्विक आर्थिक पुनर्प्राप्ति के अनिश्चितता और नए अमेरिकी प्रशासन द्वारा प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों की आशंका ने निवेशकों को सुरक्षित संपत्तियों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया है, जिससे डॉलर की मजबूती बढ़ गई है।

सरकार की प्रतिक्रिया और नीति उपाय

आलोचनाओं और आर्थिक चुनौतियों के जवाब में, भारतीय सरकार ने मुद्रा स्थिरीकरण और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। वित्त मंत्रालय ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के ongoing efforts को उजागर किया है। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फॉरेक्स बाजार में हस्तक्षेप किया है ताकि अत्यधिक अस्थिरता को कम किया जा सके और तरलता बनाए रखी जा सके।

सरकार ने दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के महत्व को भी रेखांकित किया है, जैसे कि बुनियादी ढांचे में सुधार, व्यापार सुगमता बढ़ाना और डिजिटलाइजेशन पहलों को लागू करना। ये उपाय एक अधिक लचीला और मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखते हैं जो वैश्विक अनिश्चितताओं का सामना कर सके।

सामान्य नागरिक पर प्रभाव

सामान्य भारतीय नागरिक के लिए, रुपये के अवमूल्यन का दैनिक जीवन पर सीधे प्रभाव पड़ता है। आयातित वस्तुएँ और सेवाएँ महंगी हो जाती हैं, जिससे ईंधन, इलेक्ट्रॉनिक्स और दवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है। यह मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ा सकता है, जिससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कम हो सकती है।

हालांकि, एक कमजोर रुपया निर्यात क्षेत्र के लिए संभावित लाभ भी ला सकता है। भारतीय वस्तुएं और सेवाएं वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य पर उपलब्ध होती हैं, जिससे निर्यात राजस्व में वृद्धि हो सकती है और सूचना प्रौद्योगिकी, वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योगों का समर्थन हो सकता है।

आगे की दिशा

जैसा कि भारत वैश्विक आर्थिक और घरेलू राजनीतिक स्थिति के जटिल परिदृश्य को नेविगेट करता है, रुपये का मूल्य देश की आर्थिक सेहत का एक महत्वपूर्ण संकेतक बना रहेगा। सरकारी नीतियों, वैश्विक बाजार प्रवृत्तियों और राजनीतिक चर्चाओं के बीच की अंतःक्रिया रुपये के मूल्यांकन के आसपास की कथा को आकार देती रहेगी।

आने वाले महीनों में, सभी की नजरें सरकार की प्रभावी नीति उपायों को लागू करने की क्षमता और रुपये के अवमूल्यन में योगदान देने वाले अंतर्निहित कारकों को संबोधित करने पर होंगी। इस बीच, राजनीतिक नेता, आर्थिक विशेषज्ञ और नागरिक अपने विचार और बहस जारी रखेंगे, जो कि भारत के लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है।


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