इस्लामाबाद/नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल, 2025 को हुए भयावह आतंकी हमले ने एक बार फिर दक्षिण एशिया में तनाव की लहर दौड़ा दी है। इस नृशंस कृत्य में 26 निर्दोष लोग मारे गए थे, जिनमें बड़ी संख्या में पर्यटक शामिल थे। शांत और सुरम्य पहलगाम की वादियां उस दिन गोलियों की आवाज़ और चीखों से गूंज उठीं, जिसने एक बार फिर साबित कर दिया कि आतंकवाद की कोई सीमा नहीं होती और वह मानवता के दुश्मन हैं। यह हमला फरवरी 2019 में हुए पुलवामा हमले के बाद घाटी में सबसे घातक आतंकी घटना थी, जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच fragile संबंधों को और गहरा आघात पहुँचाया। इस हमले के बाद से, भारत में गहरा आक्रोश है और कार्रवाई की मांग ज़ोरों पर है, जबकि पाकिस्तान, हमेशा की तरह, defensive posture में आ गया है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को बचाने का प्रयास कर रहा है।
पहलगाम हमला: शांति और पर्यटन पर आघात
पहलगाम, अपनी breathtaking beauty और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, जो दुनिया भर के पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। अमरनाथ यात्रा का बेस कैंप होने के नाते भी इसका विशेष महत्व है। ऐसे स्थान पर किया गया आतंकी हमला सिर्फ एक सुरक्षा घटना नहीं है; यह शांतिपूर्ण जीवन जीने के अधिकार पर हमला है, पर्यटन-आधारित अर्थव्यवस्था पर हमला है, और उन लोगों पर हमला है जो कश्मीर की सुंदरता का अनुभव करने आते हैं। 26 लोगों की मौत, जिनमें बड़ी संख्या में निर्दोष पर्यटक शामिल थे, ने इस हमले की गंभीरता को और बढ़ा दिया। इस हमले ने एक बार फिर याद दिलाया कि सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद अभी भी इस क्षेत्र के लिए एक गंभीर खतरा बना हुआ है। भारत ने इस हमले की कड़ी निंदा की और इसे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों का काम बताया, जैसा कि अतीत में भी होता रहा है। इस हमले के बाद से, भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक स्तर पर तनाव साफ देखा जा रहा है। भारत सरकार ने पाकिस्तान से इस हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की मांग की है, लेकिन पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अपेक्षित रूप से इनकार और आरोप-प्रत्यारोप की रही है।
पाकिस्तान का इनकार और अंतरराष्ट्रीय जांच की पेशकश
पहलगाम हमले के बाद भारत से संभावित प्रतिक्रिया के डर से, पाकिस्तान में high alert की स्थिति देखी गई। सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ा दी गई थी और राजनीतिक बयानबाजियां तेज़ हो गई थीं। इस बढ़ते दबाव और तनाव के बीच, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करने और संभवतः भारत पर दबाव कम करने के प्रयास शुरू कर दिए। इसी क्रम में, रविवार को उन्होंने मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम से टेलीफोन पर बातचीत की।
इस बातचीत के दौरान, शहबाज शरीफ ने प्रमुख रूप से दो बातें कहीं: पहला, उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले में पाकिस्तान की किसी भी तरह की संलिप्तता से categorically इनकार किया। पाकिस्तान का यह रुख नया नहीं है; अतीत में हुए बड़े आतंकी हमलों के बाद भी पाकिस्तान हमेशा अपनी भूमिका से इनकार करता रहा है, जबकि भारत और अन्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास अक्सर ऐसे हमलों में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों की संलिप्तता के पुख्ता सबूत होते हैं। पाकिस्तान का यह इनकार उसके अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकवादी नेटवर्क को ढंकने का एक प्रयास माना जाता रहा है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात जो शहबाज शरीफ ने मलेशियाई प्रधानमंत्री से कही, वह थी पहलगाम घटना की “अंतरराष्ट्रीय, पारदर्शी, विश्वसनीय और तटस्थ जांच” के लिए पाकिस्तान की पेशकश को दोहराना। पाकिस्तान का दावा है कि ऐसी जांच से घटना के पीछे के “तथ्यों का पता चलेगा”। हालांकि, जैसा कि मूल समाचार लेख में भी implied था (“दुनिया को बरगलाने के लिए घटना के पीछे के तथ्यों का पता लगाने की बात कहते हुए”), भारत और कई अन्य विश्लेषक इस पेशकश को पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने और हमले में अपनी या अपने proxies की भूमिका से ध्यान भटकाने के एक प्रयास के रूप में देखते हैं। पाकिस्तान अतीत में भी अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग करता रहा है, खासकर जब उस पर आतंकवादी हमलों में संलिप्तता के आरोप लगे हों, लेकिन इन मांगों को अक्सर गंभीरता से नहीं लिया जाता क्योंकि पाकिस्तान खुद आतंकवाद का गढ़ माना जाता है और उसने अपनी धरती पर मौजूद आतंकवादी समूहों के खिलाफ विश्वसनीय कार्रवाई नहीं की है।
मलेशिया की शरण में पाकिस्तान?
शहबाज शरीफ ने अपनी बातचीत में मलेशिया को इस प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय जांच में शामिल होने का निमंत्रण दिया और कहा कि पाकिस्तान मलेशिया की भागीदारी का स्वागत करेगा। पाकिस्तान का मलेशिया से संपर्क साधना और उसे जांच में शामिल होने के लिए कहना कई रणनीतिक कारणों से हो सकता है। मलेशिया एक Muslim-majority country है और दक्षिण पूर्व एशिया में एक प्रभावशाली आवाज़ रखता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर मलेशिया का समर्थन पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर ऐसे समय में जब भारत के साथ उसके संबंध अत्यंत तनावपूर्ण हैं और उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से sympathy और समर्थन की आवश्यकता है।
पाकिस्तान शायद मलेशिया को एक ऐसे देश के रूप में देखता है जो इस मुद्दे पर तुलनात्मक रूप से तटस्थ रुख अपना सकता है या पाकिस्तान के दृष्टिकोण के प्रति अधिक सहानुभूति रख सकता है, खासकर जब पश्चिमी देशों ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के रिकॉर्ड पर सवाल उठाए हैं। मलेशिया को जांच में शामिल करने का प्रस्ताव देकर, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह पारदर्शिता के लिए तैयार है और सच्चाई का पता लगाना चाहता है, जबकि साथ ही वह एक ऐसे देश को शामिल कर रहा है जो उसके लिए कम आलोचनात्मक हो सकता है। यह पाकिस्तान की कूटनीतिक चाल का हिस्सा है ताकि भारत के दबाव का सामना किया जा सके और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी छवि को थोड़ा सुधारा जा सके, भले ही जमीन पर हकीकत कुछ और हो।
शहबाज शरीफ ने मलेशियाई समकक्ष अनवर इब्राहिम के साथ बातचीत के दौरान 22 अप्रैल के आतंकी हमले के बाद से दक्षिण एशिया में व्याप्त तनाव पर भी पाकिस्तान की चिंताओं को साझा किया। पाकिस्तान अक्सर क्षेत्र में तनाव बढ़ने के लिए भारत को दोषी ठहराता रहा है, खासकर जब भारत आतंकवादी हमलों का जवाब देने के लिए अपनी कार्रवाई का अधिकार जताता है। पाकिस्तान शायद मलेशिया के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संकेत देना चाहता है कि क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने की जिम्मेदारी सिर्फ भारत की नहीं है, बल्कि सभी हितधारकों की है, और पाकिस्तान शांति और बातचीत के लिए तैयार है (जबकि भारत “आक्रामक रुख” अपना रहा है)। यह narrative पाकिस्तान द्वारा लंबे समय से इस्तेमाल किया जाता रहा है ताकि अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को प्रोत्साहित किया जा सके और भारत को एकतरफा कार्रवाई करने से रोका जा सके।
भारत की कार्रवाई का डर
पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान में भारतीय कार्रवाई का डर स्पष्ट रूप से मौजूद है। 2016 में उरी हमले के बाद भारत द्वारा की गई Surgical Strike और 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट Air Strike ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत अब आतंकवादी हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा और ज़रूरत पड़ने पर सीमा पार जाकर भी कार्रवाई कर सकता है। पहलगाम हमले की गंभीरता और इसमें मारे गए पर्यटकों की संख्या को देखते हुए, पाकिस्तान को आशंका है कि भारत इस बार और भी मज़बूत प्रतिक्रिया दे सकता है। यह डर ही शहबाज शरीफ को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रिय होने और खुद को हमले से दूर दिखाने के लिए प्रेरित कर रहा है। मलेशिया जैसे देशों से संपर्क साधना इसी भय का परिणाम है, ताकि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता या दबाव के माध्यम से भारत को संभावित सैन्य कार्रवाई से रोका जा सके। पाकिस्तान जानता है कि सीधा टकराव उसके लिए महंगा साबित हो सकता है, खासकर जब उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही struggling है।
अंतरराष्ट्रीय जांच: जटिलताएं और विश्वसनीयता
पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय जांच की पेशकश जटिलताओं से भरी है और इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं। किसी भी अंतरराष्ट्रीय जांच के लिए भारत की सहमति आवश्यक होगी, जो शायद ही मिले। भारत का मानना है कि पाकिस्तान अपनी धरती पर आतंकवादी समूहों को पनाह देता है और उनका समर्थन करता है, और ऐसे में पाकिस्तान द्वारा प्रस्तावित किसी भी जांच का परिणाम पक्षपातपूर्ण होने की संभावना है। भारत का रुख स्पष्ट रहा है कि आतंकवाद एक द्विपक्षीय मुद्दा है जिसे पाकिस्तान को स्वयं अपने देश में Address करना चाहिए, न कि इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाकर डाइल्यूट करना।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय जांच की प्रक्रिया लंबी और complicated हो सकती है। इसमें विभिन्न देशों के विशेषज्ञों को शामिल करना, घटनास्थल का दौरा करना, सबूत इकट्ठा करना और गवाहों के बयान लेना शामिल होगा। ऐसे में, पाकिस्तान का शायद उद्देश्य इस प्रक्रिया को खींचना और हमले से जुड़े असली तथ्यों को छुपाना हो। अंतरराष्ट्रीय जांच के नाम पर समय हासिल करना और सबूतों को नष्ट करना भी एक संभावना हो सकती है।
मलेशिया की भूमिका भी यहाँ महत्वपूर्ण है। मलेशिया और पाकिस्तान के संबंध आम तौर पर सौहार्दपूर्ण रहे हैं। अतीत में, मलेशिया ने कुछ मुद्दों पर पाकिस्तान का समर्थन भी किया है, जिससे भारत के साथ उसके संबंधों में तनाव आया है। यह देखना होगा कि मलेशिया इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है। क्या वह पाकिस्तान की पेशकश को स्वीकार करेगा और जांच में शामिल होने के लिए सहमत होगा? या वह भारत की संवेदनशीलता और क्षेत्र की जटिलताओं को समझते हुए इस मामले से दूर रहेगा? मलेशिया का निर्णय इस क्षेत्र की कूटनीति पर भी असर डाल सकता है।
तनाव और अनिश्चितता
पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध अत्यंत तनावपूर्ण बने हुए हैं। भारत ने हमले की कड़ी निंदा की है और पाकिस्तान से जवाबदेही तय करने की मांग की है। पाकिस्तान ने अपनी संलिप्तता से इनकार किया है और अंतरराष्ट्रीय जांच की पेशकश की है, जिसे भारत शायद ही स्वीकार करे। इस स्थिति में, क्षेत्र में तनाव बढ़ने की संभावना बनी हुई है।
भारत के पास कई विकल्प हैं, जिनमें कूटनीतिक दबाव बढ़ाना, पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना, और ज़रूरत पड़ने पर सैन्य कार्रवाई करना शामिल है। भारत की प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करेगी कि उसे हमले में पाकिस्तान स्थित तत्वों की संलिप्तता के कितने पुख्ता सबूत मिलते हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रुख क्या रहता है।
पाकिस्तान के लिए स्थिति चुनौतीपूर्ण है। उसे एक तरफ भारत की संभावित कार्रवाई का डर है, और दूसरी तरफ उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी छवि बचाने की कोशिश करनी है। शहबाज शरीफ द्वारा मलेशिया से संपर्क साधना इसी pressure का परिणाम है। पाकिस्तान को अपनी धरती पर मौजूद आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय कार्रवाई करने की ज़रूरत है, तभी क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित हो सकती है। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को राज्य नीति के रूप में इस्तेमाल करना बंद नहीं करता, तब तक ऐसे हमले होते रहेंगे और क्षेत्र में तनाव बना रहेगा।
झूठे राग और वास्तविक खतरे
पहलगाम आतंकी हमला एक दुखद घटना है जिसने कई जानें ले लीं और क्षेत्र में तनाव बढ़ा दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का इस हमले में अपने देश की संलिप्तता से इनकार करना और अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग करना, जैसा कि भारत का आरोप है, दुनिया को बरगलाने का एक और प्रयास प्रतीत होता है। पाकिस्तान का रिकॉर्ड आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में संदिग्ध रहा है, और उसकी पेशकश पर विश्वास करना मुश्किल है जब तक कि वह अपनी धरती पर मौजूद आतंकवादी नेटवर्क को dismantle करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता। मलेशिया जैसे देशों से मदद मांगना पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को बचाने और भारत के दबाव का सामना करने की कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है।
क्षेत्र में शांति और स्थिरता तभी आ सकती है जब पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे। पहलगाम हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यह खतरा वास्तविक और गंभीर है। भारत अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध है। आने वाले दिन दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि भारत की प्रतिक्रिया और पाकिस्तान के अगले कदम यह निर्धारित करेंगे कि क्षेत्र में तनाव किस दिशा में जाएगा। फिलहाल, पाकिस्तान का झूठा राग और भारत की कार्रवाई का डर क्षेत्र में अनिश्चितता बनाए हुए है।