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पाकिस्तान ने चली थी चाल, भारत के पक्ष में पलटी बाजी: सिंधु जल संधि पर फैसला

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नई दिल्ली, 22 जनवरी 2025, 11:18 AM IST: भारत ने मंगलवार को विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के फैसले का स्वागत किया, जिसमें कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद सिंधु जल संधि के तहत आते हैं। भारत सरकार ने इसे अपने रुख और संधि की व्याख्या की पुष्टि के रूप में देखा है, क्योंकि वह पाकिस्तान के अनुरोध पर चल रही समानांतर और ‘अवैध रूप से गठित’ मध्यस्थता अदालत की कार्यवाही को मान्यता नहीं देती है और न ही उसमें भाग लेती है।

भारत ने निर्णय का स्वागत किया

तटस्थ विशेषज्ञ के फैसले पर एक आधिकारिक बयान में सरकार ने यह भी कहा कि वह सिंधु जल संधि के संशोधन और समीक्षा के लिए पाकिस्तान के संपर्क में है। पिछले साल भारत ने संधि की समीक्षा की मांग के कारणों में से एक के रूप में सीमा पार आतंकवाद का हवाला दिया था। सरकार ने कहा, “भारत 1960 की सिंधु जल संधि के अनुच्छेद एफ के पैराग्राफ 7 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ के निर्णय का स्वागत करता है। यह निर्णय भारत के इस रुख की पुष्टि करता है कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में तटस्थ विशेषज्ञ को भेजे गए सभी सात प्रश्न, संधि के तहत उनकी योग्यता के अंतर्गत आने वाले मतभेद हैं।”

पाकिस्तान के रुख से नाराज था भारत

भारत इस बात से नाराज था कि विश्व बैंक द्वारा दोनों देशों से परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियों पर गौर करने के लिए पारस्परिक रूप से सहमत तरीका खोजने के लिए कहने के बावजूद इस्लामाबाद ने इस मुद्दे को हल करने के लिए एकतरफा रूप से एक समानांतर प्रक्रिया की मांग की थी। सरकार ने कहा कि यह भारत की ‘स्थायी और सैद्धांतिक’ स्थिति रही है कि केवल तटस्थ विशेषज्ञ ही संधि के तहत इन मतभेदों का फैसला करने के लिए सक्षम हैं। इसने कहा, “अपनी स्वयं की क्षमता को बरकरार रखते हुए, जो भारत के विचार से मेल खाती है, तटस्थ विशेषज्ञ अब अपनी कार्यवाही के अगले (गुण-दोष) चरण में आगे बढ़ेंगे। यह चरण सातों मतभेदों में से प्रत्येक के गुण-दोष पर अंतिम निर्णय के साथ समाप्त होगा।”

संधि की पवित्रता और अखंडता बनाए रखने की प्रतिबद्धता

सरकार ने कहा, “संधि की पवित्रता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध होने के कारण भारत तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखेगा ताकि मतभेदों को संधि के प्रावधानों के अनुरूप हल किया जा सके, जो समान मुद्दों पर समानांतर कार्यवाही का प्रावधान नहीं करता है। इसी कारण से, भारत अवैध रूप से गठित मध्यस्थता अदालत की कार्यवाही को मान्यता नहीं देता है और न ही उसमें भाग लेता है।”

सिंधु जल संधि का महत्व

सरल शब्दों में समझें तो भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक समझौता है, जिसे सिंधु जल संधि कहते हैं। इस संधि के तहत, कुछ नदियों का पानी भारत को और कुछ का पाकिस्तान को मिलता है। सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक महत्वपूर्ण समझौता है, जिसने दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के प्रबंधन और बंटवारे को सुनिश्चित किया है। इस संधि का उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण जल वितरण और विवाद समाधान के लिए एक स्थायी तंत्र प्रदान करना है।

किशनगंगा और रतले परियोजनाओं पर विवाद

अब, भारत जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले नदियों पर दो बिजली परियोजनाएं बना रहा है। पाकिस्तान को लगता है कि इन परियोजनाओं से उसे मिलने वाले पानी पर असर पड़ेगा। इसलिए, उसने विश्व बैंक से शिकायत की। विश्व बैंक ने एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया, जिसने कहा कि यह मामला उसकी योग्यता के अंतर्गत आता है। भारत इस फैसले से खुश है क्योंकि वह हमेशा से यही कहता आया है। भारत का मानना है कि सिंधु जल संधि के तहत केवल तटस्थ विशेषज्ञ ही इस मामले का फैसला कर सकता है। पाकिस्तान ने एक अलग अदालत में भी मामला दायर किया था, लेकिन भारत उस अदालत को मान्यता नहीं देता। भारत का कहना है कि वह संधि के नियमों का पालन करेगा और तटस्थ विशेषज्ञ के साथ मिलकर इस मामले को सुलझाएगा।

तटस्थ विशेषज्ञ का निर्णय

तटस्थ विशेषज्ञ ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में मतभेद संधि की योग्यता के अंतर्गत आते हैं। इस निर्णय से भारत का रुख और मजबूत हुआ है और उसने इसे अपनी व्याख्या की पुष्टि के रूप में देखा है। भारत ने कहा कि केवल तटस्थ विशेषज्ञ ही इन मतभेदों का फैसला करने के लिए सक्षम हैं और उसने अवैध रूप से गठित मध्यस्थता अदालत की कार्यवाही को मान्यता नहीं दी है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

पाकिस्तान ने किशनगंगा और रतले परियोजनाओं पर आपत्तियां जताई थीं और इन परियोजनाओं को लेकर मतभेदों का समाधान चाहा था। हालांकि, पाकिस्तान की एकतरफा प्रक्रिया की मांग के बावजूद, तटस्थ विशेषज्ञ ने यह स्पष्ट किया कि यह मामला उसकी योग्यता के अंतर्गत आता है। इससे पाकिस्तान की स्थिति कमजोर हुई है और भारत का रुख मजबूत हुआ है।

भारत की स्थिति

भारत ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि वह सिंधु जल संधि के अनुच्छेद एफ के पैराग्राफ 7 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ के निर्णय का स्वागत करता है। भारत ने यह भी कहा कि वह संधि के प्रावधानों के अनुरूप मतभेदों को हल करने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखेगा। भारत ने स्पष्ट किया कि वह संधि की पवित्रता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और अवैध रूप से गठित मध्यस्थता अदालत की कार्यवाही को मान्यता नहीं देता है।

भविष्य की दिशा

तटस्थ विशेषज्ञ अब अपनी कार्यवाही के अगले चरण में आगे बढ़ेंगे, जिसमें सातों मतभेदों में से प्रत्येक के गुण-दोष पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। यह चरण समाप्त होने के बाद, दोनों देशों के बीच विवाद का समाधान संभव हो सकेगा। भारत ने कहा है कि वह तटस्थ विशेषज्ञ के निर्णय का पालन करेगा और संधि के नियमों के तहत मतभेदों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत ने विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के फैसले का स्वागत किया है, जिसमें किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में मतभेदों को संधि की योग्यता के अंतर्गत माना गया है। पाकिस्तान के विरोध के बावजूद, भारत ने स्पष्ट किया है कि केवल तटस्थ विशेषज्ञ ही इन मतभेदों का फैसला करने के लिए सक्षम हैं। इस फैसले से भारत की स्थिति मजबूत हुई है और संधि की पवित्रता और अखंडता को बनाए रखने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की गई है। दोनों देशों के बीच जल विवाद का समाधान अब तटस्थ विशेषज्ञ की प्रक्रिया के माध्यम से संभव हो सकेगा।

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