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मोदी ने आखिरकार यमुना की पीड़ादायक पुकार सुनी,प्रदूषण से मुक्ति और पुनरुद्धार की उम्मीद बढ़ीं

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यमुना नदी की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने नदी की सफाई और शुद्धिकरण के लिए एक बड़ा कार्यक्रम प्राथमिकता के तौर पर शुरू करने का मन बना लिया है। इससे आगरा, मथुरा और वृंदावन समेत ब्रज मंडल के निवासियों में नई उम्मीद जगी है।

दिल्ली में यमुना नदी का लगभग 80% पानी प्रदूषित हो चुका है। औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज, निर्माण मलबा और जहरीले नाले नदी को और प्रदूषित कर रहे हैं। अगर दिल्ली सरकार यमुना की सफाई के लिए ठोस कदम उठाए तो यह गंभीर समस्या धीरे-धीरे हल हो सकती है।

सदियों से भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का प्रतीक रही यमुना नदी अब प्रदूषण और उपेक्षा का शिकार है। कभी अपने स्वच्छ जल से धरती को पोषित करने वाली यह नदी गंदगी और अतिक्रमण के कारण अपनी पहचान खो चुकी है। इसके किनारों पर बसी बस्तियों और औद्योगिक अपशिष्टों ने इसे और प्रदूषित कर दिया है। इसकी सतह पर तैरती प्लास्टिक की थैलियाँ और इसका गंदा पानी इसकी दुर्दशा की कहानी बयां करता है। नदी की लहरें अब आहें भरती हुई प्रतीत होती हैं, मानो मदद की गुहार लगा रही हों।

यमुना नदी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है, जो लाखों लोगों के लिए प्रमुख जल स्रोत के रूप में काम करती है। इसके अलावा, इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत है।

पर्यावरणविद डॉ देवाशीष भट्टाचार्य के मुताबिक, “आज यह नदी प्रदूषण, अवैध खनन और कुप्रबंधन के कारण संकट में है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश के इलाकों में औद्योगिक और सीवेज के कचरे ने नदी के पानी को पीने लायक नहीं बना दिया है। रासायनिक कचरे और गंदगी ने नदी की जैव विविधता को भी प्रभावित किया है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है, बल्कि नदी पर निर्भर लाखों लोगों के जीवन पर भी असर पड़ रहा है।”

यमुना के किनारों पर स्थित फैक्ट्रियाँ और उद्योग अवैध रूप से नदी में जहरीला कचरा डाल रहे हैं। इसके अलावा, अवैध खनन के कारण जल स्तर में गिरावट आई है और तटीय क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव बढ़ गया है।

रिवर कनेक्ट कैंपेन से जुड़े चतुर्भुज तिवारी कहते हैं, “यदि इन मुद्दों को समय रहते संबोधित नहीं किया गया, तो यमुना नदी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। इस मुद्दे को हल करने के लिए कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।” रिवर एक्टिविस्ट्स चाहते हैं कि सबसे पहले, नदी में प्रदूषण को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए। उद्योगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नदी में दूषित पानी न डालें। इसके लिए, जल उपचार संयंत्रों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए और उनका रखरखाव प्रभावी ढंग से किया जाना चाहिए। नदी के तटीय क्षेत्रों में कचरे को हटाने और नदी के प्राकृतिक आवास को पुनर्जीवित करने के लिए नियमित सफाई अभियान चलाए जाने चाहिए।

अवैध खनन को रोकने के लिए सख्त कानून लागू किए जाने चाहिए और जल संरक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। लोगों को घरेलू कचरे का उचित तरीके से निपटान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शहरी क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

इसके अतिरिक्त, कचरे को सीधे नदी में जाने से रोकने के लिए पुनर्चक्रण पर जोर दिया जाना चाहिए। यमुना नदी को बचाने के लिए सरकार को जन भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए।

यमुना भक्त ज्योति खंडेलवाल कहती हैं कि लोगों को नदी की सफाई और संरक्षण में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। यमुना नदी को पुनर्जीवित करना सिर्फ़ सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है, यह हम सबका सामूहिक कर्तव्य है। यह नदी हमारी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है और इसे बचाने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे।

सोशल एक्टिविस्ट पद्मिनी अय्यर कहती हैं कि अगर आज हम यमुना नदी को बचाने पर ध्यान नहीं देंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ इसके अस्तित्व को महसूस नहीं कर पाएंगी। यमुना नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार, प्रशासन और नागरिकों के सामूहिक प्रयासों की ज़रूरत है। तभी नदी अपने पुराने गौरव को वापस पा सकेगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सकेगी।

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