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गधापाड़ा रेलवे मालगोदाम पर कानूनी संकट: सिटी फॉरेस्ट का भविष्य अधर में

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आगरा। गधापाड़ा (बेलनगंज) स्थित रेलवे मालगोदाम की लगभग नौ हेक्टेयर जमीन पर आवासीय प्रोजेक्ट लाने की उत्सुकता गणपति बिल्डर के लिए अब बड़ी मुसीबत बन गई है। इस परियोजना के रास्ते में कई कानूनी रुकावटें आ गई हैं। सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) की सिफारिशों के अनुसार, यदि सुप्रीम कोर्ट ने इसे मान लिया, तो गधापाड़ा जैसे घनी आबादी वाले एरिया में सिटी फॉरेस्ट आकार लेगा। पर्यावरणविद डॉ. शरद गुप्ता इस मामले की प्रबल पैरोकारी कर रहे हैं। सिटी फॉरेस्ट ने आकार लिया, तो यह आगरा के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा।
सीईसी की सिफारिशें सुप्रीम कोर्ट ने मानीं तो रेलवे मालगोदाम का आवासीय प्रोजेक्ट कठिनाइयों में फंसेगा

रेल लैंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (RLDA) ने पहले यह जमीन एक अन्य बिल्डर को 99 साल की लीज पर दी थी, जिसे बाद में गणपति इंफ्रास्ट्रक्चर ने हासिल कर लिया। वैध कब्जा मिलने से पहले ही बिल्डर ने जमीन पर कार्य शुरू कर दिया, जिससे वहां खड़े पेड़ों को नुकसान पहुंचा।

गणपति बिल्डर ने कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए मालगोदाम में प्रवेश किया और वहां खड़े पेड़ों को रातोंरात जेसीबी से नष्ट कर दिया। स्थानीय निवेशकों के साथ बैठकें कीं और मालगोदाम के गेट के पास बड़े-बड़े होर्डिंग भी लगाए। स्थानीय रेलवे अधिकारियों ने बिल्डर की अवैध गतिविधियों पर आंखें मूंद लीं। रेलवे मालगोदाम पर तैनात आरपीएफ के जवान हट गए और पेड़ों को तहस-नहस किया जाता रहा, लेकिन अधिकारियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यह संभव नहीं लगता कि रेलवे अधिकारियों को इस घटना की भनक तक नहीं लगी हो।

सीईसी के निर्देशों के बाद कानूनी कार्रवाई

सीईसी की सख्ती के बाद, बिल्डर ने आवासीय प्रोजेक्ट के होर्डिंग्स तो हटा लिए लेकिन परियोजना का प्रचार सूक्ष्म रूप से जारी रखा। रेलवे ने पुलिस में मुकदमा तब दर्ज कराया जब सीईसी की बैठक में जवाब तलब किया गया। सीईसी के निर्देश पर ही मामला दर्ज हुआ।

सीईसी ने बिल्डर को पेड़ काटने का दोषी माना और सिफारिश की कि मालगोदाम परिसर में ही 2.3 हेक्टेयर जमीन पर सिटी फॉरेस्ट विकसित किया जाए। इसके अलावा काटे गए पेड़ों के एवज में किसी दूसरी जगह पर 2300 नए पेड़ लगाने की बात भी कही है और इसका पूरा खर्चा बिल्डर से वसूलने की बात कही गई है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी की सिफारिशें मान लीं, तो परियोजना के लिए उपलब्ध जमीन में कमी हो जाएगी, जिससे आवासीय प्रोजेक्ट में कठिनाई आएगी। 2.3 हेक्टेयर जमीन पर सिटी फॉरेस्ट विकसित करने के बाद आवासीय प्रोजेक्ट की भूमि कम पड़ जाएगी। एडीए को निर्देश दिए गए हैं कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले का निपटारा नहीं कर देता, तब तक मालगोदाम परिसर में कोई भी निर्माण कार्य न होने दिया जाए। इस निर्देश के बाद, एडीए गणपति बिल्डर द्वारा प्रस्तुत नक्शे को तब तक हाथ नहीं लगाएगा जब तक यह मामला सुलझ नहीं जाता।

पर्यावरण प्रेमियों की प्रतिक्रिया

गधापाड़ा मालगोदाम की जमीन बिल्डर को आवासीय प्रोजेक्ट के लिए लीज पर देने की जानकारी सामने आने के बाद शहर के पर्यावरण प्रेमियों का ध्यान इस ओर गया था। रिवर कनेक्ट कैंपेन के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार बृज खंडेलवाल ने मालगोदाम की जमीन पर आवासीय प्रोजेक्ट का विरोध करते हुए यहां सिटी फॉरेस्ट विकसित करने की आवाज उठाई थी। बृज खंडेलवाल का तर्क था कि मालगोदाम की जमीन आगरा शहर की जमीन है, जिसे ब्रिटिश काल में मालगोदाम के लिए दे दिया गया था। अब जबकि यह जमीन रेलवे के उपयोग में नहीं आ रही है तो उसे यह जमीन आगरा शहर को ही लौटा देनी चाहिए।

पर्यावरणविद डॉ. शरद गुप्ता इस मामले को लेकर सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। उनकी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी के पास भेज दिया। सीईसी की तीन बैठकें हुईं। हर बैठक में डॉ. शरद गुप्ता ने रेलवे मालगोदाम की जमीन का उपयोग शहरवासियों के हित में करने पर जोर दिया था। सीईसी सदस्यों के पूछने पर डॉ. गुप्ता ने सुझाव दिया था कि यहां एक हिस्से में सिटी फॉरेस्ट विकसित कर दिया जाए।

खेल के मैदानों की आवश्यकता

डॉ. शरद गुप्ता ने सीईसी की बैठकों में कहा था कि हमारे शहर के बच्चों के खेल के मैदान छीन लिए गए हैं। उन्होंने पीएसी ग्राउंड, आगरा कॉलेज खेल मैदान, आरबीएस कॉलेज खेल मैदान समेत कई अन्य का जिक्र करते हुए बताया कि मेट्रो परियोजना की वजह से बच्चों के खेलने की जगह नहीं बची है, इसलिए मालगोदाम की जमीन पर खेलने का मैदान और एक हिस्से में सिटी फॉरेस्ट विकसित किया जाए। अब सीईसी ने जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को दी है, उसमें मालगोदाम की कुल जमीन में से 2.3 हेक्टेयर जमीन पर सिटी फॉरेस्ट विकसित करने की सिफारिश की गई है। सीईसी की इस सिफारिश को अगर सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया तो गधापाड़ा (बेलनगंज) जैसे घनी आबादी वाले एरिया में सिटी फॉरेस्ट आकार लेगा, जो आगरा के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय धरोहर साबित होगा।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का महत्त्व

आज सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि यह सुनवाई न केवल गणपति बिल्डर के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह यह भी तय करेगा कि ताज ट्रिपेजियम जोन में पर्यावरण संरक्षण के नियमों का कैसे पालन किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अन्य मामलों के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

डालमिया और माथुर फॉर्म हाउस के मामले

सुप्रीम कोर्ट में आज ही छटीकरा-वृंदावन मार्ग स्थित डालमिया फॉर्म हाउस से सैकड़ों पेड़ों को काटे जाने के मामले की भी सुनवाई होनी है। आगरा के दयालबाग स्थित माथुर फॉर्म हाउस से हरे पेड़ काटने का मामला भी आज ही सुनवाई के लिए नियत है। इन दोनों ही मामलों में उत्तर प्रदेश वन विभाग अपनी अनुपालन आख्या पहले ही सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर चुका है। ये तीनों ही मामले ताज ट्रिपेजियम जोन के अंतर्गत आते हैं, जहां सर्वोच्च अदालत ने ही हरे पेड़ काटने पर रोक लगा रखी है। इन तीनों ही मामलों को आगरा के पर्यावरणविद डॉ. शरद गुप्ता सुप्रीम कोर्ट लेकर गए हैं। डालमिया और माथुर फॉर्म हाउस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वन विभाग से तीन महीने के अंदर अनुपालन आख्या मांगी थी, जो वन विभाग प्रस्तुत कर चुका है।

गधापाड़ा रेलवे मालगोदाम की सच्चाई बाहर ले आई सीईसी

गधापाड़ा स्थित रेलवे मालगोदाम परिसर से हरे पेड़ काटे जाने के मामले में सच्चाई को बाहर न आने देने के लिए लाख जतन किए गए, लेकिन सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) सच को बाहर ले ही आई। सीईसी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है, जिस पर आज ही सर्वोच्च अदालत सुनवाई करेगी। सीईसी की रिपोर्ट से रेलवे के अधिकारियों और गणपति बिल्डर की मिलीभगत भी उजागर हो गई है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट सीईसी की रिपोर्ट पर क्या रुख अपनाता है।

पूछने पर गणपति बिल्डर की ओर से साफ मना कर दिया गया था कि उन्होंने मालगोदाम से पेड़ नहीं काटे हैं। बिल्डर ने आशंका जताई थी कि आसपास के लोगों ने काट लिए होंगे। इस पर सीईसी की बैठक में बिल्डर को जेसीबी से पेड़ उखाड़े जाने का वीडियो दिखाकर कहा गया था कि क्या लोकल लोग जेसीबी लाकर पेड़ उखाड़ेंगे। अब जबकि सीईसी की रिपोर्ट सामने आ चुकी है, उसमें साफ-साफ कहा गया है कि मालगोदाम परिसर से हरे पेड़ों को नष्ट किए जाने के पीछे बिल्डर ही है। इसके लिए रेलवे के अधिकारियों को बराबर का दोषी बताया गया है। सीईसी ने माना है कि रेलवे अधिकारियों की शह के बगैर बिल्डर बिना वैध कब्जे के मालगोदाम में नहीं घुस सकता। सीईसी की रिपोर्ट से एक बात और

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