11 अप्रैल, 2025, किश्तवाड़
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के छात्रू उपमंडल के घने जंगलों में सुरक्षाबलों ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। शुक्रवार को एक तीव्र मुठभेड़ में तीन आतंकियों को मार गिराया गया, जो पाकिस्तान के सैफुल्लाह मॉड्यूल से जुड़े थे। यह वही मॉड्यूल है, जिसने पिछले साल डोडा में सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमला किया था। सेना, पुलिस, और सीआरपीएफ के संयुक्त अभियान में इलाके को पूरी तरह घेर लिया गया है, और अन्य आतंकियों की तलाश में तलाशी अभियान तेज कर दिया गया है। पैरा कमांडो, खोजी कुत्तों, और ड्रोन की मदद से जंगल के दुर्गम इलाकों में छिपे आतंकियों को खोजने की कोशिश की जा रही है। यह ऑपरेशन तब तक जारी रहेगा, जब तक सभी आतंकी ढेर नहीं हो जाते या उनकी गतिविधियां पूरी तरह खत्म नहीं हो जातीं। आइए, इस मुठभेड़ और इसके व्यापक परिदृश्य को विस्तार से समझते हैं।
मुठभेड़ की शुरुआत: खुफिया सूचना से ऑपरेशन तक
यह पूरी घटना तब शुरू हुई, जब सेना की व्हाइट नाइट कोर को विशिष्ट खुफिया सूचनाएं मिलीं कि किश्तवाड़ के छात्रू उपमंडल के नायदगाम जंगलों में कुछ आतंकी छिपे हुए हैं। इन आतंकियों के बारे में जानकारी थी कि वे पिछले 8-9 महीनों से इस इलाके में सक्रिय हैं और स्थानीय स्तर पर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की फिराक में हैं। सूचना के आधार पर 9 अप्रैल को सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस, और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने एक संयुक्त तलाशी अभियान शुरू किया।
शुक्रवार सुबह करीब 11 बजे सुरक्षाबलों ने जंगल में संदिग्ध गतिविधियां देखीं। जैसे ही जवानों ने आतंकियों को चुनौती दी, आतंकियों ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। सुरक्षाबलों ने तत्काल जवाबी कार्रवाई की, और इस मुठभेड़ में तीन आतंकियों को मार गिराया गया। मारे गए आतंकियों की पहचान अभी पूरी तरह से नहीं हो पाई है, लेकिन प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, ये सभी पाकिस्तान के सैफुल्लाह मॉड्यूल से जुड़े थे, जो जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमलों के लिए कुख्यात है।
सैफुल्लाह मॉड्यूल: एक खतरनाक नेटवर्क
सैफुल्लाह मॉड्यूल का नाम जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के संदर्भ में पहले भी सामने आ चुका है। यह मॉड्यूल जैश-ए-मोहम्मद (JeM) का एक हिस्सा माना जाता है, जो पाकिस्तान से संचालित होता है। इस मॉड्यूल ने 15 जुलाई, 2024 को डोडा जिले में सुरक्षाबलों पर एक घातक हमला किया था, जिसमें कई जवान शहीद हो गए थे। तब से यह मॉड्यूल सुरक्षाबलों के रडार पर था।
सूत्रों के अनुसार, मारे गए आतंकी पिछले कई महीनों से किश्तवाड़, डोडा, और रामबन के जंगलों में छिपे हुए थे। ये आतंकी स्थानीय युवाओं को भड़काने, हथियारों की तस्करी करने, और सुरक्षाबलों पर हमले की साजिश रचने में शामिल थे। मुठभेड़ में मिले हथियारों और गोला-बारूद से यह साफ है कि ये आतंकी किसी बड़े हमले की योजना बना रहे थे।
दुर्गम इलाका: चुनौतियों से भरा ऑपरेशन
छात्रू का जंगल इलाका अपनी भौगोलिक जटिलता के लिए जाना जाता है। ऊंचे पहाड़, घने जंगल, और नीचे बहती नदी इस क्षेत्र को आतंकियों के लिए एक आदर्श ठिकाना बनाते हैं। यह इलाका इतना दुर्गम है कि सामान्य तलाशी अभियान भी बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। बारिश और कोहरे ने भी सुरक्षाबलों के सामने मुश्किलें खड़ी कीं, लेकिन जवानों ने हिम्मत नहीं हारी।
सेना ने इस अभियान में पैरा कमांडो को भी उतारा है, जो अपनी विशेष युद्ध तकनीकों के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, खोजी कुत्तों और ड्रोन का इस्तेमाल करके जंगल के हर कोने को खंगाला जा रहा है। एसएसपी किश्तवाड़ आमोद अशोक नागपुरे ने बताया कि जंगल में और आतंकियों के छिपे होने की आशंका है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि इस क्षेत्र को पूरी तरह आतंकमुक्त किया जाए। इसके लिए हम हर संभव संसाधन का उपयोग कर रहे हैं।”
जंगल में तलाशी: अन्य आतंकियों की खोज
मुठभेड़ के बाद सुरक्षाबलों ने पूरे इलाके को घेर लिया है। यह माना जा रहा है कि जंगल में अभी भी कुछ आतंकी छिपे हो सकते हैं, जो प्राकृतिक गुफाओं या घने पेड़ों का सहारा ले रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, ये आतंकी रात के अंधेरे में भागने की कोशिश कर सकते हैं, जिसके लिए सुरक्षाबलों ने रात में भी निगरानी बढ़ा दी है। थर्मल इमेजिंग डिवाइस और नाइट विजन उपकरणों का उपयोग करके आतंकियों के ठिकानों को ढूंढा जा रहा है।
किश्तवाड़, डोडा, और रामबन रेंज के डीआईजी श्रीधर पाटिल ने कहा, “हमारा ऑपरेशन तब तक जारी रहेगा, जब तक इस क्षेत्र में एक भी आतंकी जिंदा है। हमारी प्राथमिकता है कि स्थानीय लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और आतंकी खतरे को पूरी तरह खत्म किया जाए।” उन्होंने यह भी बताया कि मारे गए आतंकियों के पास से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद हुआ है, जिससे यह साफ है कि वे किसी बड़ी साजिश का हिस्सा थे।
जोफड़ में भी तलाशी: एक समानांतर अभियान
किश्तवाड़ के छात्रू में मुठभेड़ के साथ-साथ उधमपुर के जोफड़ क्षेत्र में भी एक तलाशी अभियान चल रहा है। 9 अप्रैल को जोफड़ के कुलतियां जंगल में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच करीब तीन घंटे तक मुठभेड़ हुई थी। इस दौरान आतंकी अंधेरे का फायदा उठाकर भाग निकले। इसके बाद से सुरक्षाबल और रामनगर थाना पुलिस इस क्षेत्र में लगातार तलाशी अभियान चला रहे हैं।
माना जा रहा है कि जोफड़ में छिपे आतंकी भी जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हो सकते हैं। पुलिस ने इस क्षेत्र में ड्रोन और खोजी कुत्तों की मदद से जंगल के हर हिस्से को खंगाला है। रामनगर थाना के प्रभारी पूर्व सिंह ने बताया कि आतंकियों के भागने की संभावना को देखते हुए आसपास के गांवों में भी निगरानी बढ़ा दी गई है। स्थानीय लोगों से भी अपील की गई है कि वे किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी तुरंत पुलिस को दें।
आतंकवाद का इतिहास: किश्तवाड़ का संदर्भ
किश्तवाड़ जिला पिछले कुछ वर्षों में आतंकी गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और सीमा से निकटता इसे आतंकियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बनाती है। 2024 में किश्तवाड़ और डोडा में कई आतंकी हमले हुए, जिनमें सुरक्षाबलों और नागरिकों को निशाना बनाया गया। खास तौर पर, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले साल जुलाई में डोडा में हुए हमले ने सुरक्षाबलों को इस क्षेत्र में और सतर्क कर दिया था। तब से सेना और पुलिस ने आतंकी नेटवर्क को तोड़ने के लिए कई ऑपरेशन चलाए हैं। छात्रू की यह मुठभेड़ उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह ऑपरेशन न केवल आतंकियों को खत्म करने के लिए है, बल्कि स्थानीय लोगों में सुरक्षा का भरोसा जगाने के लिए भी जरूरी है।
सुरक्षाबलों की रणनीति: तकनीक और साहस का मेल
इस अभियान में सुरक्षाबलों ने तकनीक और साहस का शानदार मेल दिखाया है। ड्रोन, थर्मल इमेजिंग, और नाइट विजन डिवाइस जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग करके आतंकियों के ठिकानों को चिह्नित किया जा रहा है। साथ ही, पैरा कमांडो की मौजूदगी ने इस ऑपरेशन को और प्रभावी बनाया है। ये कमांडो विशेष रूप से जंगल युद्ध और आतंकवाद-रोधी अभियानों के लिए प्रशिक्षित होते हैं।
खोजी कुत्तों ने भी इस अभियान में अहम भूमिका निभाई है। ये कुत्ते न केवल आतंकियों के छिपने के स्थान को ढूंढने में मदद करते हैं, बल्कि विस्फोटक सामग्री और हथियारों का पता लगाने में भी सक्षम हैं। सेना ने स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर इस अभियान को एक समन्वित रूप दिया है, जिससे ऑपरेशन की सफलता की संभावना और बढ़ गई है।
स्थानीय लोगों की भूमिका
किश्तवाड़ के स्थानीय लोग इस अभियान में सुरक्षाबलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। आतंकी गतिविधियों से त्रस्त इस क्षेत्र के लोग शांति और विकास चाहते हैं। कई बार स्थानीय लोगों ने सुरक्षाबलों को आतंकियों की गतिविधियों की जानकारी दी है, जिसके आधार पर इस तरह के ऑपरेशन चलाए गए हैं। डीआईजी श्रीधर पाटिल ने स्थानीय लोगों से अपील की है कि वे किसी भी संदिग्ध व्यक्ति या गतिविधि की सूचना तुरंत प्रशासन को दें।
हालांकि, आतंकी कई बार स्थानीय लोगों को डराने-धमकाने की कोशिश करते हैं। पिछले साल किश्तवाड़ में दो ग्राम रक्षा गार्ड्स की हत्या इसका उदाहरण है। ऐसे में सुरक्षाबलों का यह अभियान न केवल आतंकियों को खत्म करने के लिए है, बल्कि स्थानीय लोगों में विश्वास बहाल करने के लिए भी जरूरी है।
आगे की चुनौतियां
हालांकि इस मुठभेड़ में तीन आतंकियों को मार गिराया गया है, लेकिन चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। जंगल का विशाल और दुर्गम इलाका आतंकियों के लिए छिपने की जगह प्रदान करता है। इसके अलावा, बारिश और खराब मौसम ने भी तलाशी अभियान को जटिल बना दिया है। सुरक्षाबलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी आतंकी इस इलाके से बचकर न निकल पाए।
साथ ही, आतंकियों के पास से मिले हथियार और गोला-बारूद की जांच से यह पता लगाना जरूरी है कि उनका नेटवर्क कितना बड़ा है। क्या ये आतंकी किसी बड़े हमले की साजिश रच रहे थे? क्या उनका कोई स्थानीय समर्थन था? इन सवालों के जवाब इस अभियान की अगली दिशा तय करेंगे।
निष्कर्ष: शांति की ओर एक कदम
किश्तवाड़ के छात्रू जंगल में हुई इस मुठभेड़ ने एक बार फिर सुरक्षाबलों की बहादुरी और प्रतिबद्धता को साबित किया है। तीन आतंकियों को मार गिराना न केवल एक सामरिक जीत है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। सेना, पुलिस, और सीआरपीएफ का यह संयुक्त अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक यह क्षेत्र पूरी तरह आतंकमुक्त नहीं हो जाता। स्थानीय लोगों का समर्थन और सुरक्षाबलों का साहस इस लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार है।
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