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- आसमान में उड़ान भरना अच्छा है, पर उड़ने के लिए जमीन सख्त और समतल हो
विश्व गुरु बनने से पहले जमीनी हकीकत जांचें परखें
बृज खंडेलवाल
2 जनवरी 2025
सच में कुछ ज्यादा ही हो गया है विश्व गुरु बनने का जुनून। वंदे भारत एक्सप्रेस जैसे मोदी सरकार छोटे स्टेशनों को बाय बाय कहती आगे बढ़ी जा रही है, लेकिन इस तरह की विकास यात्रा अधूरी और असंतुलित ही रहेगी, सिर्फ अपर मिडिल क्लास, पूंजीपति ही इस व्यवस्था के असली पार्टनर्स बने रहेंगे, कॉमन मैन सिर्फ लाभार्थी।
सभी राजनैतिक दल इस वक्त रेवड़ी बांटन प्रतियोगिता में लगे हैं जिनका उद्देश्य सिर्फ वोट खरीदकर सत्ता हथियाना है। या अर्थ शास्त्र के मुताबिक देश को उपजाऊ कंज्यूमर मार्केट बनाना है। पसीने की कमाई से ही आत्म सम्मान आता है, जमीर जागता है। भारत में सरकारें और नेता बने हैं दानवीर भामा शाह, और भिखारी सारी जनता।
विश्वगुरु बनने का सपना जितना ऊँचा है, ज़मीनी सच्चाई उतनी ही कड़वी। बुलेट ट्रेन जैसे चमचमाते प्रोजेक्ट्स से असंतुलित विकास की बेमेल तस्वीर उभरती है, जहाँ आम आदमी सिर्फ तमाशाई बनकर रह गया है।
फ्रीबीज की राजनीति हर पार्टी का शगल बन चुकी है। वोटों की खरीद-फरोख्त और उपभोक्तावादी मानसिकता ने देश को आत्मनिर्भर बनने से रोक रखा है।
अब वक्त आ गया है कि सरकार ऊँचे ख्वाबों के बजाय छोटे लेकिन जरूरी मुद्दों पर ध्यान दे। शौचालय निर्माण की पहल अच्छी थी, लेकिन इनका सही उपयोग और रखरखाव सुनिश्चित करना ज़रूरी है। स्वच्छता सिर्फ अभियान से नहीं, ठोस क्रियान्वयन से आएगी।
सड़कों की स्थिति पर भी ध्यान देना होगा। गड्ढे, खराब ट्रैफिक सिग्नल और जाम की समस्या आज भी आम हैं। सड़कें सिर्फ चमचमाती नहीं, टिकाऊ और सुरक्षित होनी चाहिए।
सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता और सुविधा का विस्तार नागरिकों का अधिकार है। इसी तरह, शिक्षा व्यवस्था को ग्रासरूट लेवल पर मजबूत करना ज़रूरी है। बेहतर स्कूल, योग्य शिक्षक और आधुनिक सुविधाएं ही एक शिक्षित समाज की नींव रख सकती हैं।
आखिरकार, स्वच्छ वायु और सुरक्षित पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतें अभी भी अधूरी हैं। पर्यावरण और पानी जैसे मुद्दों पर ध्यान देना असली विकास का पैमाना है।
मोदी सरकार को चाहिए कि ऊँचे सपनों से पहले ज़मीनी हकीकत को समझे। विकास तभी सार्थक होगा, जब हर नागरिक के जीवन में सुधार महसूस हो।
सोशलिस्ट विचारक राम किशोर कहते हैं कि “शौचालय निर्माण एक उचित कदम था, लेकिन भारत को अब इनका नियमित उपयोग और रखरखाव सुनिश्चित करना होगा। स्वच्छता के लिए यह अनिवार्य है कि शौचालयों की साफ-सफाई हो, उन्हें सही ढंग से मेंटेन किया जाए और नागरिकों को इनकी उपयोगिता के प्रति जागरूक किया जाए। अगर हम अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को हल करना चाहते हैं, तो हमें स्थानीय स्तर पर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।”
रिवर एक्टिविस्ट डॉ देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं कि “सड़कें, जो हर नागरिक की दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, उनकी स्थिति का भी ध्यान रखना आवश्यक है। सड़कें सही स्थिति में होनी चाहिए, मरम्मत नियमित होना चाहिए, पेंट अच्छा होना चाहिए, और ट्रैफिक सिग्नल पूरी तरह से काम करने चाहिए। ट्रैफिक कैमरे भी जरूरी हैं ताकि सड़क पर अनुशासन बना रहे। आज भी कई शहरों में जाम की समस्याएं आम हैं, जो न केवल समय की बर्बादी करती हैं बल्कि लोगों की मानसिकता पर भी असर डालती हैं।”
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सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी नटराजन का मानना है कि “सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं एक अन्य क्षेत्र है जिस पर सरकार को ध्यान देना होगा। अस्पतालों की नियमित ऑडिटिंग की जानी चाहिए, ताकि उनकी कमियों का पता चल सके और उनमें सुधार किया जा सके। सुविधाओं का विस्तार और गुणवत्ता को बढ़ाना आवश्यक है। नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को देखकर संतोष होना चाहिए, खासकर जब उनका जीवन इस पर निर्भर करता है।”
“शिक्षा का बुनियादी ढांचा भी दुरुस्त होना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों की बेसिक सुविधाओं का विकास और उनका समय के अनुसार ढलना आवश्यक है। हमें ग्रासरूट्स स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना होगा। पढ़ाई का स्तर सुधारने से ही हम उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं,” पब्लिक कॉमेंटेटर प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट लॉयर अंकुर कहते हैं “पुलिस व्यवस्था में भी सुधार की आवश्यकता है। आम आदमी को न्याय तुरंत और कम खर्च में मिले, यह एक लोकतांत्रिक समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए। स्थानीय प्रशासन को भी अपने काम में पारदर्शिता और जवाबदेही दिखानी चाहिए।”
मोदी जी, कृपया जरा नीचे देखें। आम आदमी से जुड़ी समस्याओं को अपने एजेंडे में शामिल करें। स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों की कार्यशैली को बेहतर बनाना होगा ताकि जनमानस सरकार के प्रति संतुष्ट हो सके।