कलाकार: राजकुमार राव, वामिका गब्बी, सीमा पाहवा, संजय मिश्रा, जाकिर हुसैन, रघुवीर यादव, इश्तियाक खान, विनीत कुमार, नलनीश नील आदि।
लेखक व निर्देशक: करण शर्मा
निर्माता: दिनेश विजन
रिलीज: 23 मई 2025
‘भूल चूक माफ’ फिल्म वाराणसी के एक गलत चित्रण और कमजोर पटकथा के साथ दर्शकों को सिनेमाघरों में बांधे रखने में विफल रही है। फिल्म की बनारस की पृष्ठभूमि मुंबई के किसी स्टूडियो में तैयार की गई लगती है, जहां के पात्रों का आचरण बनारस की वास्तविक संस्कृति से मेल नहीं खाता। एक पंडित जी का खीर में लौंग का तड़का लगाना और बेटे का गाय को ‘पूरनपोली’ खिलाने की बात करना, जैसी चीजें स्थानीयता से पूरी तरह कटी हुई लगती हैं। राजकुमार राव का 40 वर्षीय किरदार, जो खुद को 25 साल का साबित करने की कोशिश कर रहा है, बेतुका लगता है।

टाइम लूप का बेजान फॉर्मूला और अविश्वसनीय कहानी
फिल्म की कहानी एक टाइम लूप में फंसे हीरो रंजन पर आधारित है, जो अपनी शादी से ठीक एक दिन पहले की तारीख में अटका हुआ है। यह कांसेप्ट नेटफ्लिक्स की ‘नेकेड’ और अंग्रेजी फिल्म ‘ग्राउंडहॉग डे’ से प्रेरित लगता है, लेकिन फिल्म इसे प्रभावी ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाती। इंटरवल से पहले की कहानी, जो ट्रेलर में दिखाई गई है, दो बनारसी लड़का-लड़की के घर से भागने और पुलिस द्वारा पकड़े जाने की है। लड़के का दो महीने में सरकारी नौकरी पाने का वादा और यूपी पुलिस व बेटियों के पिताओं का इस पर विश्वास करना, अविश्वसनीय लगता है।

दिनेश विजन चूके, राजकुमार राव बेमेल
फिल्म निर्माता दिनेश विजन के लिए यह एक अवसर था कि वे सरकारी नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे देश के करोड़ों युवाओं की कहानी को प्रभावी ढंग से दिखाते, लेकिन उन्होंने इसे गंवा दिया। फिल्म के लिए 25-26 साल के ऐसे अभिनेता की आवश्यकता थी, जिसने निजी जीवन में भी नौकरी पाने के संघर्ष को जिया हो, लेकिन राजकुमार राव को जबरदस्ती इस किरदार में फिट किया गया है। फिल्म के संवादों में ‘बकैती’ जैसे शब्दों का गलत इस्तेमाल भी अखरता है, जिससे लेखक करण शर्मा की काशी की समझ पर सवाल उठता है।

कमजोर अभिनय और किरदारों का अभाव
हीरोइन वामिका गब्बी का किरदार तितली प्यार की गहराई को समझ नहीं पाता, और उनके क्लोजअप शॉट्स की कमी निर्देशक-अभिनेत्री के बीच की ट्यूनिंग पर सवाल खड़े करती है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर, यह लड़की अपने बॉयफ्रेंड को पाल रही है और उसके लिए रिश्वत का जुगाड़ कर रही है, जबकि लड़का रोज गाय के गोबर में कूद रहा है। मिश्रा और तिवारी परिवारों की बनारस की कोई पृष्ठभूमि नहीं है। जाकिर हुसैन और रघुवीर यादव जैसे वरिष्ठ कलाकारों को भी ढंग के सीन नहीं मिले। हालांकि, सीमा पाहवा अपने छोटे से किरदार में भी प्रभाव छोड़ती हैं। नलनीश नील दर्जी के किरदार में कुछ हंसी लाने में सफल रहते हैं।

कमजोर सिनेमैटोग्राफी और संगीत
सिनेमैटोग्राफर सुदीप चटर्जी के नाम के बावजूद, काशी को केवल ड्रोन शॉट्स से ही दिखाया गया है, बाकी की शूटिंग मुंबई में हुई लगती है। एडिटर मनीष प्रधान को कमजोर पटकथा वाली फिल्म को दो घंटे में समेटने के लिए श्रेय दिया जा सकता है। फिल्म के गाने कमजोर हैं, और तनिष्क बागची के संगीत से बेहतर केतन का बैकग्राउंड म्यूजिक है। फिल्म में आखिर में ‘चोर बजारी’ जैसे पुराने गाने का इस्तेमाल करना, संगीत की कमी को दर्शाता है। कुल मिलाकर, ‘भूल चूक माफ’ एक ऐसी फिल्म है जिसे सिनेमाघरों के बजाय ओटीटी पर ही रिलीज किया जाना चाहिए था, क्योंकि यह दर्शकों को दो घंटे तक बांधे रखने में असफल रहती है।