आगरा। प्रशासन की अनदेखी से नाराज किसानों का आंदोलन रविवार को और तेज हो गया। तीन किसान नेताओं ने संजय प्लेस स्थित सीडीओ ऑफिस पर प्रदर्शन करते हुए अपने सिर मुंडवा लिए। किसान नेता श्याम सिंह चाहर ने अन्न त्यागने के बाद अब जल का भी त्याग कर दिया है। उनकी तबीयत बिगड़ने पर मेडिकल जांच हुई, लेकिन उन्होंने अस्पताल में भर्ती होने से मना कर दिया।
विरोध प्रदर्शन का नौवां दिन
किसानों का धरना नौ दिन से जारी है। भूख हड़ताल पर बैठे श्याम सिंह चाहर, छीतरिया, और दाताराम तोमर को सात दिन हो चुके हैं। श्याम सिंह चाहर ने जल का त्याग करते हुए रविवार को दूसरे दिन में प्रवेश किया।
प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि प्रशासन उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं ले रहा है। श्याम सिंह चाहर ने स्पष्ट किया कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होतीं, वे न अन्न ग्रहण करेंगे और न जल।
सिर मुंडवाकर जताया विरोध
रविवार को प्रदर्शन स्थल पर किसान नेता श्याम सिंह चाहर, चौधरी दिलीप सिंह और बुजुर्ग छीतरिया ने अपने सिर मुंडवाकर विरोध जताया। प्रदर्शनकारियों ने इसे प्रशासन के खिलाफ अपनी नाराजगी का प्रतीक बताया।
चौधरी दिलीप सिंह ने कहा,
“सहकारिता विभाग में 4.12 करोड़ रुपये के 21 सहकारी समितियों में हुए घोटाले की जांच पूरी हो चुकी है। फिर भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में देरी हो रही है।”
सहकारिता घोटाले पर कार्रवाई की मांग
धरने पर बैठे किसानों ने सहकारिता विभाग के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि घोटाले में कई उच्च अधिकारी शामिल हैं। उन्होंने ग्रामीण सुरक्षा आवासीय समिति के सचिव केपी यादव पर रिपोर्ट दर्ज करने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की।
नरेंद्र सिंह चाहर ने कहा,
“घोटाले में शामिल दोषी अधिकारी एआर रविंद्र कुमार को सिर्फ लखनऊ मुख्यालय से संबद्ध किया गया है। उन्हें निलंबित कर जेल भेजना चाहिए था।”
प्रदर्शनकारियों की बढ़ती संख्या
धरने में रविवार को और अधिक किसान शामिल हुए। उपस्थित लोगों में सोनू, रामू चौधरी, गजेन्द्र शर्मा, सुभाष चौधरी, राहुल छोंकर, विजेंद्र सिंह एडवोकेट, किशन कुमार, दीपू चाहर, यशपाल सिंह, नरेंद्र फौजदार, नारायण सिंह, बासुदेव कुशवाह, मनोज कुमार, प्रदीप शर्मा, बाबूलाल, बबलू सिंह, सोनवीर और धर्मपाल सिंह प्रमुख थे।
प्रशासन पर दबाव बढ़ा
किसानों ने साफ कर दिया है कि उनकी मांगे पूरी होने तक आंदोलन जारी रहेगा। उनका कहना है कि विरोध के ये स्वरूप उनकी मजबूरी है। प्रशासन की चुप्पी उनके आक्रोश को बढ़ा रही है।
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