“शिक्षा”वह शेरनी है जो इसका दूध पिएगा तो दहाड़ेगा ” डॉ भीमराव अंबेडकर

डॉ भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के जनक एवं भारत देश के निर्माता में से एक थे। भीमराव रामजी अम्बेडकर (1891-1956) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू छावनी, मध्य प्रदेश में हुआ था। बॉम्बे विश्वविद्यालय के एल्फिंस्टन कॉलेज से स्नातक होने के बाद, डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया, 1916 और 1923 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और 1920 के दशक में दोनों संस्थानों में ऐसा करने वाले कुछ ही भारतीय छात्रों में से एक थे।डॉ भीमराव अंबेडकर ने 32 डिग्रियां हासिल कर रखी थी और उन्हें नौ भाषाओं का भी ज्ञान था।
इस साल उनकी 134वीं जयंती है। उनके सामाजिक और राजनीतिक विचारों ने भारतीय समाज और राजनीति को बहुत प्रभावित किया है ।उनके विचारों ने दलित, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों को शामिल करने में मदद की है।
आगरा से भी उनका बहुत गहरा नाता रहा है, वह अपने जीवनकाल में तीन बार आगरा आए। 18 मार्च 1956 को बाबा साहब ने आगरा में जनसभा को संबोधित करने के लिए आए थे। बिजली घर के पास चक्कीपाट स्थित बुद्ध विहार पहुंचे, जहां उनके साथ हजारों लाखों लोगों के भीड़ थी l उसी दिन उन्होंने कहा कि आज सबको एक नए धर्म की ओर लेकर जाएंगे, इसके बाद उन्होंने पीले रंग की भगवान बुद्ध की प्रतिमा को चक्कीपाट बुद्ध विहार में स्थापित स्वयं अपने हाथों से किया। यह पहला बुद्ध विहार है जिसमे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने स्थापित किया था ,वह मानते थे कि आगरा दलितों का सबसे बड़ा गढ़ है । उस समय उनका स्वास्थ्य भी कुछ ठीक नहीं चल रहा था जिस कारण उन्होंने 18 मार्च को रामलीला ग्राउंड में अपने समर्थकों को यह भी संदेश दिया कि अगर किसी तंबू का बंबू कमजोर हो जाए तो उसके स्थान पर दूसरा बंबू खड़ा कर देना चाहिए । उनके कहने का मतलब था कि अगर वे न रहे तो उनके स्थान पर किसी अन्य को मार्गदर्शन बना लेना लेकिन मेरे विचारों को समाज में यूं ही जागृत करते रहना।
डॉ भीमराव अंबेडकर सामाजिक और राजनीतिक विचार समानता, न्याय और स्वतंत्रता पर आधारित थे , उन्होंने जाति व्यवस्था सामाजिक भेदभाव और राजनीतिक असमानता के खिलाफ आवाज उठाई । उन्होंने भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा ,संपत्ति और अन्य अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं के सामाजिक और राजनीतिक उत्थान के लिए आवाज उठाई एवं भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना का समर्थन किया।
13 जनवरी 1957 को बाबा साहब के पुत्र यशवंत राय अंबेडकर ने चांदी के कलश में बाबा साहब की अस्थियां आगरा में चक्कीपाट स्थित बुद्ध विहार में लेकर आए जो की आज भी अस्थियां वहां स्थित है। 18 मार्च 1956 के दिन को बाबा साहब की यादें आज भी दलित समाज ने संजोए रखी है। 14 अक्टूबर 1956 में उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली ।
ऐसे महापुरुष सदियों में एक बार जन्म लेते हैं। उनको मेरा शत-शत नमन।

सोनी त्रिपाठी (काउंसलर) की कलम से
सदस्य सेंट्रल जेल आगरा
ब्रांड एंबेसडर नगर निगम आगरा