दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय: प्रशासनिक मुद्दे और सुधार की अपेक्षाएं
दयालबाग मानद विश्वविद्यालय (Deemed University) का शिक्षा क्षेत्र में योगदान सराहनीय रहा है। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) के निर्देशों का पालन विश्वविद्यालय द्वारा गंभीरता से किया जाता है। इसके बावजूद, कुछ प्रशासनिक मुद्दों ने हाल ही में सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा का ध्यान आकर्षित किया है, जो विश्वविद्यालय के कामकाज और उसकी नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं।
प्रमुख मुद्दे और सिविल सोसाइटी की अपेक्षाएं
- प्रेसिडेंट और प्रशासनिक पदों की नियुक्ति में अनियमितता:
नियमानुसार विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट का पद अलग होना चाहिए। लेकिन दयालबाग विश्वविद्यालय में ऐसा नहीं है। कुलसचिव और कोषाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नियमानुसार अधिकतम आयु 62 वर्ष निर्धारित है। बावजूद इसके, इन पदों पर क्रमशः 62 और 77 वर्ष के अवैतनिक अधिकारियों को नियुक्त किया गया है। - निदेशक पद की स्थिति:
13 अगस्त 2023 को निदेशक का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, यूजीसी की नियमावली के अनुसार, वरिष्ठ प्रोफेसर को कार्यवाहक निदेशक नियुक्त किया जाना चाहिए था। इसके विपरीत, एक जूनियर प्रोफेसर को निदेशक पद पर रखा गया है, जो नियमों के स्पष्ट उल्लंघन का संकेत है। - शैक्षणिक मानकों का उल्लंघन:
डीम्ड विश्वविद्यालय के लिए नॉन-डिग्री और ऑफ-कैंपस कोर्स चलाना प्रतिबंधित है। इसके बावजूद, विश्वविद्यालय इन नियमों को पूरी तरह अनदेखा कर रहा है। यह उच्च शिक्षा के मानकों के साथ समझौते जैसा है। - अनुदान और पारदर्शिता का अभाव:
भारत सरकार द्वारा दयालबाग विश्वविद्यालय को सौ करोड़ रुपये से अधिक का अनुदान दिया गया है। सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा का मानना है कि इस राशि का उपयोग पारदर्शिता और प्रभावी ढंग से होना चाहिए। इसके लिए एक राजपत्रित अधिकारी को प्रशासन से संबद्ध किया जाना चाहिए। - नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन:
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में यूजीसी के निर्धारित मानकों को प्रभावी बनाना अनिवार्य है। दयालबाग विश्वविद्यालय का वर्तमान प्रशासन इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभाता नहीं दिख रहा है। - समीक्षा और सुधार की मांग:
सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा ने निदेशक (उच्च शिक्षा), प्रयागराज से इन मुद्दों का गंभीरता से संज्ञान लेने और सुधारात्मक कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने अपेक्षा जताई है कि निदेशक महोदय इन मामलों पर जानकारी प्राप्त कर इसे अन्य शिक्षण संस्थानों के लिए भी उदाहरण बनाएंगे।
निष्कर्ष
दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय का इतिहास शिक्षा के क्षेत्र में गौरवशाली है। लेकिन वर्तमान प्रशासनिक मुद्दे विश्वविद्यालय की साख और शिक्षा के मानकों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। यूजीसी और उच्च शिक्षा निदेशालय से अपेक्षा है कि वे इन मुद्दों की जांच करें और शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
सुझाव
- विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ढांचे को यूजीसी की नई नियमावली के अनुसार पुनर्गठित किया जाए।
- निदेशक पद पर योग्य और अनुभवशील अधिकारी की नियुक्ति की जाए।
- अनुदान के उपयोग की निगरानी के लिए स्वतंत्र और अधिकार संपन्न समिति का गठन किया जाए।
- नॉन-डिग्री और ऑफ-कैंपस कोर्स के संचालन पर तुरंत रोक लगाई जाए।
यह आवश्यक है कि दयालबाग विश्वविद्यालय, अपनी परंपरा और प्रतिष्ठा को बनाए रखते हुए, प्रशासनिक पारदर्शिता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्राथमिकता दे।