Shopping cart

Magazines cover a wide array subjects, including but not limited to fashion, lifestyle, health, politics, business, Entertainment, sports, science,

TnewsTnews
  • Home
  • Spiritual
  • जय-विजय के श्राप और राक्षस कुल में जन्म की कथा
Spiritual

जय-विजय के श्राप और राक्षस कुल में जन्म की कथा

Email :175

पौराणिक कथाओं में जय-विजय की कथा बहुत प्रसिद्ध है। वैकुंठ के द्वारपाल जय और विजय को ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों द्वारा श्राप दिया गया था, जिसके कारण उन्हें तीन बार धरती पर राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा। आइए, जानते हैं पूरी कहानी।

श्राप का कारण

जय और विजय भगवान विष्णु के प्रिय द्वारपाल थे। एक बार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार वैकुंठ पहुंचे। उन्होंने भगवान विष्णु के दर्शन करना चाहा, लेकिन जय-विजय ने उन्हें रोक दिया और कहा कि इस समय किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
इससे चारों कुमार क्रोधित हो गए और जय-विजय को श्राप दिया कि वे जन्म और मृत्यु के चक्र में बंध जाएं और धरती पर जन्म लें।

भगवान विष्णु का मार्गदर्शन

जय-विजय श्राप सुनकर दुखी हो गए और रोने लगे। उनके विलाप को सुनकर भगवान विष्णु बाहर आए और पूरी बात सुनी। भगवान विष्णु ने कहा कि श्राप को समाप्त करना संभव नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव को सीमित किया जा सकता है।
उन्होंने जय-विजय को दो विकल्प दिए:

  1. सात बार भक्त के रूप में जन्म लें।
  2. तीन बार शत्रु के रूप में जन्म लें और मेरे हाथों मारे जाएं।
    जय-विजय ने तीन बार शत्रु के रूप में जन्म लेना चुना ताकि वे जल्दी श्राप से मुक्त होकर वैकुंठ लौट सकें।

पहला जन्म: हिरणाक्ष और हिरण्यकश्यपु

सतयुग में जय-विजय ने हिरणाक्ष और हिरण्यकश्यपु के रूप में जन्म लिया।

  • हिरणाक्ष ने धरती को समुद्र में डुबो दिया। विष्णु ने वाराह अवतार लेकर उसका वध किया।
  • हिरण्यकश्यपु ने भगवान भक्तों को सताया और अपने पुत्र प्रह्लाद को भी कष्ट दिया। विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर उसका अंत किया।

दूसरा जन्म: रावण और कुम्भकर्ण

त्रेता युग में जय-विजय ने रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्म लिया।

  • रावण ने अपने पराक्रम से धरती, स्वर्ग, और पाताल में हाहाकार मचा दिया।
  • कुम्भकर्ण अपनी असीम शक्ति और अनोखी नींद के लिए जाना गया।
    इन दोनों का अंत भगवान विष्णु ने राम अवतार में किया।

तीसरा जन्म: शिशुपाल और दंतवक्र

द्वापर युग में जय-विजय ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लिया।

  • शिशुपाल कृष्ण की बुआ का पुत्र था और बचपन से ही कृष्ण का विरोधी बन गया।
  • दंतवक्र ने भी अधर्म का मार्ग चुना।
    दोनों का अंत भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में किया।

श्राप से मुक्ति

तीन बार भगवान विष्णु के हाथों मृत्यु प्राप्त करने के बाद जय-विजय श्राप से मुक्त हो गए और पुनः वैकुंठ में भगवान विष्णु के द्वारपाल बन गए।

कथा का संदेश

यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान की लीला अनंत और अद्भुत है। जय-विजय जैसे भक्तों को भी अपने कर्म और श्राप का फल भोगना पड़ा, लेकिन उनका विश्वास और समर्पण उन्हें अंततः भगवान के पास लौटा लाया।

img

+917579990777 pawansingh@tajnews.in

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts