अजमेर दरगाह विवाद: सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए नई चुनौती
अजमेर। सूफी संत ख्वाजा मुईन उद्दीन चिश्ती की अजमेर स्थित दरगाह, जिसे “ख्वाजा गरीब नवाज” के नाम से जाना जाता है, केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में आस्था का केंद्र है। यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक रही है। यहां सभी धर्मों और वर्गों के लोग अपनी श्रद्धा व्यक्त करने आते हैं। लेकिन हाल ही में, दरगाह परिसर में शिव मंदिर होने के दावे को लेकर दायर याचिका ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के साथ-साथ अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से जवाब मांगा है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए कोर्ट के निर्णय का सभी वर्गों को बेसब्री से इंतजार है। हालांकि, इस विवाद ने खासतौर पर मुस्लिम समुदाय के भीतर चिंता की लहर पैदा की है।
हिन्दुस्तानी बिरादरी संस्था के अध्यक्ष और भारत सरकार द्वारा सम्मानित डॉ. सिराज कुरैशी ने इस मामले पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह याचिका सांप्रदायिक सौहार्द्र को कमजोर करने की एक कोशिश हो सकती है, जिसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका और सांप्रदायिक सौहार्द्र
डॉ. कुरैशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देने वाली छवि की सराहना की। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का नेतृत्व केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई मुस्लिम देशों में भी सराहा गया है। खाड़ी देशों ने उन्हें कई उच्चतम सम्मान प्रदान किए हैं, जो उनकी स्वीकार्यता और उनके प्रयासों का प्रमाण है।
प्रधानमंत्री मोदी हर साल ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर चादर भेजने की परंपरा का निर्वहन करते रहे हैं। यह कदम उनके द्वारा सांप्रदायिक सौहार्द्र और धार्मिक एकता को प्रोत्साहित करने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। डॉ. कुरैशी ने कहा कि उनकी कार्यशैली विभिन्न समुदायों के बीच एकता और विकास को प्रोत्साहित करती है।
सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने की अपील
डॉ. कुरैशी ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि वे इस विवाद को गंभीरता से लें और समाज में विभाजनकारी विचारधारा फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि समाज प्रेम, भाईचारे और एकता की मिसाल बना रहे।
दरगाह का ऐतिहासिक महत्व
ख्वाजा मुईन उद्दीन चिश्ती की दरगाह सैकड़ों वर्षों से सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक रही है। यह दरगाह न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू समुदाय के श्रद्धालुओं को भी आकर्षित करती है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर आते हैं। प्रधानमंत्री द्वारा दरगाह पर चादर भेजने की परंपरा ने इस स्थल की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को और अधिक बढ़ा दिया है।
संवैधानिक समाधान की आवश्यकता
दरगाह परिसर में शिव मंदिर होने के दावे और याचिका की मंजूरी ने विवाद को जन्म दिया है। डॉ. कुरैशी ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे को सुलझाने का काम न्यायालय और संविधान पर छोड़ देना चाहिए। किसी भी विवाद का समाधान ऐसा होना चाहिए, जो भारत की सांप्रदायिक एकता और धार्मिक सद्भाव को प्रभावित न करे।
सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल
यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह जैसी सांप्रदायिक सौहार्द्र की प्रतीक स्थलों की पवित्रता बनी रहे। भारत ने हमेशा अपने बहुलवादी चरित्र और सहिष्णुता के कारण विश्व भर में पहचान बनाई है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सांप्रदायिक एकता के प्रयासों को बल मिला है। उम्मीद है कि आने वाले समय में यह मुद्दा सकारात्मक दिशा में हल होगा और देश की गंगा-जमुनी तहजीब को और मजबूत करेगा।
इस मामले में सभी वर्गों और समुदायों से शांति और समझदारी बनाए रखने की अपील की जाती है, ताकि भारत में भाईचारा और एकता की परंपरा कायम रहे।