विश्वविद्यालय का गजब कारनामा: सामूहिक नकल का मामला, 2000 छात्राओं के रूप में छात्र बनाए गए
आगरा: डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कॉलेजों में परीक्षा के दौरान की गई बड़ी हेराफेरी ने सबको चौंका दिया। मैनपुरी के दो और मथुरा के एक कॉलेज ने स्वकेंद्र व्यवस्था का फायदा उठाकर परीक्षा के दौरान सामूहिक नकल करने की योजना बनाई। तीन परीक्षा केंद्रों पर यह खेल पकड़ा गया, और तीनों केंद्रों को निरस्त कर दिया गया।
परीक्षा के दौरान हेराफेरी का खुलासा
21 नवंबर से शुरू हुई डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की सेमेस्टर परीक्षा में पांचवें दिन बड़ा खेल सामने आया। परीक्षा के दौरान छात्राओं के लिए स्वकेंद्र की व्यवस्था को लेकर मैनपुरी के दो और मथुरा के एक कॉलेज ने अभूतपूर्व हेराफेरी की। कॉलेज संचालकों ने 2000 छात्रों को छात्राओं के रूप में दिखा दिया और उन्हें स्वकेंद्र व्यवस्था के तहत परीक्षा दिलवाने की साजिश रची।
इस घटना का पता तब चला, जब परीक्षा के दौरान तीनों पालियों में छात्रों और छात्राओं की संख्या में असमान अंतर देखा गया। पहली, दूसरी और तीसरी पाली की परीक्षा में छात्रों की संख्या में बड़ा अंतर था, जो कि असामान्य था। इसके बाद, डाटा की जांच की गई और मामले का पर्दाफाश हुआ।
कैसे हुआ पर्दाफाश?
इस जांच के दौरान, परीक्षा केंद्रों के सीसीटीवी कैमरों की निगरानी की गई। सोमवार को सीसीटीवी की ऑनलाइन जांच के दौरान पाया गया कि तीनों केंद्रों पर छात्राओं के नाम के आगे “फीमेल” लिखा हुआ था, लेकिन वहां मौजूद अधिकांश छात्र लड़के थे। परीक्षा में हिस्सा ले रहे छात्रों के नाम भी “फीमेल” के रूप में दर्ज थे, जबकि असल में वे छात्र थे। इसके अलावा, सीसीटीवी फुटेज में यह भी देखा गया कि एक परीक्षा कक्ष में छात्र बैठकर परीक्षा दे रहे थे, जबकि वहां छात्राओं की परीक्षा होनी चाहिए थी।
यह स्थिति गंभीर संदिग्धता पैदा करती है और यह संभावना जताई जा रही है कि इस हेराफेरी का उद्देश्य सामूहिक नकल कराना था। छात्रों को छात्राओं के रूप में दिखाकर उनका इस्तेमाल नकल करने के लिए किया जा सकता था।
तीन परीक्षा केंद्रों को निरस्त किया गया
जैसे ही इस खेल का खुलासा हुआ, विश्वविद्यालय प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई की। मैनपुरी के मेजर अंगद सिंह महाविद्यालय और एसबीडी कॉलेज ऑफ साइंस एंड एजूकेशन, मथुरा के गुलकंदी लालाराम महाविद्यालय, पतलौनी मथुरा के परीक्षा केंद्रों को निरस्त कर दिया गया। अब इन तीनों केंद्रों पर परीक्षा नहीं होगी। इसके अलावा, इस मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
परीक्षा केंद्रों का असमान डेटा
इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब यह देखा गया कि तीनों पालियों में परीक्षा देने वालों की संख्या में असमान अंतर था। पहली पाली में तृतीय सेमेस्टर की परीक्षा में 20-25 छात्राएं, दूसरी पाली में पंचम सेमेस्टर में 120 छात्राएं और तीसरी पाली में प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में 150 छात्राएं थीं। लेकिन इन आंकड़ों में असंगति थी और यह असमानता तत्काल संदेह पैदा करती है।
जब डाटा की गहन जांच की गई, तो पाया गया कि जितने छात्र थे, उनके नाम के आगे “फीमेल” लिखा हुआ था, जो एक बड़ी चूक थी। जांच के बाद यह सामने आया कि इन छात्राओं की संख्या कम थी, लेकिन इस नंबर को बढ़ाने के लिए लड़कों को छात्राओं के रूप में दर्ज किया गया था।
नए परीक्षा केंद्रों पर होगी परीक्षा
अब इन तीनों परीक्षा केंद्रों के निरस्त होने के बाद, विश्वविद्यालय ने नए केंद्रों पर परीक्षा आयोजित करने का निर्णय लिया है। इन नए केंद्रों पर छात्राओं और छात्रों के लिए समान रूप से व्यवस्था की जाएगी और पूरी तरह से पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी।
प्रशासन का बयान
इस मामले पर परीक्षा नियंत्रक डॉ. ओम प्रकाश ने कहा कि “हमने मामले का गंभीरता से संज्ञान लिया है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह परीक्षा प्रक्रिया में हुई एक बड़ी चूक है, लेकिन हम जल्द ही इसका समाधान करेंगे और सभी छात्रों को बिना किसी अन्याय के परीक्षा का अवसर प्रदान करेंगे।”
नकल पर नियंत्रण की आवश्यकता
यह घटना यह भी दर्शाती है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नकल पर नियंत्रण रखना कितना जरूरी है। परीक्षा के दौरान किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी न केवल छात्रों के लिए नुकसानकारी होती है, बल्कि यह पूरे शिक्षा तंत्र की विश्वसनीयता को भी ठेस पहुंचाती है। इस प्रकार की घटनाएं यह भी दर्शाती हैं कि शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और कठोर निगरानी की आवश्यकता है, ताकि नकल और अनुशासनहीनता जैसी समस्याओं पर काबू पाया जा सके।
आगे की कार्रवाई
इस मामले में विश्वविद्यालय ने अब तक जांच शुरू कर दी है और अगले कुछ दिनों में रिपोर्ट आने के बाद कड़ी कार्रवाई की जाएगी। विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस घटना के जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे। इसके साथ ही अन्य कॉलेजों के डाटा की भी जांच की जा रही है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की गड़बड़ियों से बचा जा सके।
निष्कर्ष
यह घटना न केवल परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल उठाती है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में हेराफेरी और अनुशासनहीनता की गंभीरता को भी उजागर करती है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को चाहिए कि वे परीक्षा के दौरान सख्त निगरानी रखें और किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी को रोकने के लिए प्रभावी उपायों को लागू करें। ऐसे मामलों में तत्काल और कठोर कार्रवाई से यह संदेश जाएगा कि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को सहन नहीं किया जाएगा।