आगरा में स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई लापरवाही ने अस्पतालों के लाइसेंस जारी करने में गंभीर सवाल खड़े किए हैं। जब अस्पतालों की जांच और सत्यापन का मामला था, तब स्वास्थ्य विभाग ने बिना किसी मानक की जांच किए ही अस्पतालों को लाइसेंस जारी कर दिए। इस प्रक्रिया में न केवल चिकित्सकीय मानकों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि अस्पतालों में प्रशिक्षित डॉक्टर और स्टाफ की कमी भी सामने आई है। इसके अलावा, अग्निशमन से संबंधित व्यवस्थाएं भी खामोश पाई गई हैं। ये सभी स्थितियाँ काफी गंभीर हैं, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं में मामूली लापरवाही भी लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर सकती है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, कुल 1320 चिकित्सकीय संस्थान पंजीकृत हैं, जिनमें 482 अस्पताल, 138 पैथोलॉजी लैब, और 700 क्लीनिक तथा रेडियो डायग्नोस्टिक सेंटर शामिल हैं। एक घटनाक्रम ने इस पूरे मामले को उजागर किया, जब झांसी मेडिकल कॉलेज में एक आग की घटना में नवजातों की मृत्यु हो गई, जिसके बाद अस्पतालों के निरीक्षण का सिलसिला शुरू हुआ। अब तक 25 अस्पतालों का निरीक्षण किया जा चुका है, और इन निरीक्षणों में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।
इनमें से 14 अस्पतालों के पास अग्निशमन विभाग की एनओसी नहीं थी, जबकि 12 अस्पतालों में चिकित्सक का अभाव था। यद्यपि अस्पतालों की स्वीकृत संख्या के अनुसार, कुछ अस्पतालों में बेड की संख्या भी स्वीकृत से कहीं अधिक पाई गई। इसके अलावा, तीन अस्पतालों में बिना अनुमति के आईसीयू और एनआईसीयू चलाए जा रहे थे, जो कानून के खिलाफ हैं। इन सभी समस्याओं ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए हैं, खासकर जब यह पता चला कि यमुनापार क्षेत्र स्थित लोकहितम अस्पताल में अवैध पैथोलॉजी लैब भी संचालित थी। इस तरह की घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा अस्पतालों की मानकों पर की गई जांच में घोर लापरवाही बरती गई है।
इस मुद्दे पर भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) की उपाध्यक्ष डॉ. सीमा सिंह का कहना है कि चिकित्सकीय मानकों और अग्निशमन व्यवस्थाओं में किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। वे यह भी मांग करती हैं कि यदि जांच के दौरान कोई कमी पाई जाए तो अस्पतालों को सुधारने का पर्याप्त अवसर दिया जाए। उनका यह भी कहना है कि जांच के नाम पर चिकित्सकों का शोषण नहीं होना चाहिए और उनसे ऐसे सुधार की उम्मीद की जानी चाहिए, जो मानव जीवन की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सके।
स्वास्थ्य विभाग की ओर से इस पूरे मामले पर कड़ी कार्रवाई की योजना बनाई जा रही है। सीएमओ डॉ. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि अस्पताल संचालकों को नोटिस भेजकर 15 दिन का समय दिया गया है, जिसमें वे अपने अस्पतालों में उपकरणों को ठीक करने, अग्निशमन विभाग से एनओसी लेने और अन्य व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए कदम उठा सकें। यदि इस अवधि के भीतर सुधार नहीं किया गया, तो पुनः निरीक्षण किया जाएगा और यदि गड़बड़ी पाई जाती है, तो अस्पतालों के लाइसेंस को निलंबित कर दिया जाएगा।
स्वास्थ्य विभाग ने जो कार्रवाई की योजना बनाई है, वह आवश्यक है ताकि अस्पतालों की मानक प्रक्रिया को सुनिश्चित किया जा सके और लोगों की जान को बचाया जा सके। इस तरह की घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि अस्पतालों को सही तरीके से चलाने के लिए न केवल मानकों का पालन करना आवश्यक है, बल्कि उनका निरीक्षण भी बेहद महत्वपूर्ण है। यदि स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में और सख्त कदम उठाए, तो ऐसे घटनाक्रमों से बचा जा सकता है और अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
आगरा में हुई इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इससे यह भी साबित होता है कि बिना सख्त निरीक्षण और सत्यापन के अस्पतालों को लाइसेंस देना पूरी तरह से गलत है। अस्पतालों में डॉक्टरों और प्रशिक्षित स्टाफ की कमी, अग्निशमन व्यवस्थाओं का अभाव, और बिना अनुमति के चल रहे आईसीयू और एनआईसीयू जैसी समस्याओं को लेकर स्वास्थ्य विभाग को और अधिक सतर्क और जवाबदेह होना चाहिए। यह उम्मीद की जाती है कि स्वास्थ्य विभाग अपने कार्यों में सुधार करेगा और इस तरह की लापरवाही से बचने के लिए गंभीर कदम उठाएगा।
चिकित्सकीय मानकों का पालन केवल अस्पतालों के लिए नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है। नागरिकों की जान की सुरक्षा स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिक जिम्मेदारी है। इस तरह की घटनाओं से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।